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'AQI और फेफड़ों की बीमारियों के बीच कोई सीधा संबंध नहीं', सरकार के दावे पर क्या बोले एक्सपर्ट

वायु प्रदूषण और फेफड़ों की बीमारियों के संबंध पर सरकारी दावे को विशेषज्ञ ने खारिज कर दिया है. डॉक्टरों का कहना है कि विज्ञान स्पष्ट है और मौजूदा प्रदूषण स्तर गंभीर स्वास्थ्य खतरा पैदा कर रहे हैं.

Kuldeep Sharma
Edited By: Kuldeep Sharma
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Courtesy: social media

नई दिल्ली: देश में बढ़ते वायु प्रदूषण और उसके स्वास्थ्य प्रभावों पर बहस तेज होती जा रही है. सरकार के इस दावे पर कि उच्च एयर क्वालिटी इंडेक्स और फेफड़ों की बीमारियों के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है, अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं. 

यूके की नेशनल हेल्थ सर्विस से जुड़े वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट और ग्लोबल हेल्थ एलायंस के चेयरमैन डॉ. रजय नारायण का कहना है कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं, बल्कि विज्ञान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

सरकार के दावे पर विशेषज्ञ की आपत्ति

डॉ. रजय नारायण ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह कहना गलत है कि बढ़ा हुआ AQI फेफड़ों की बीमारियों से सीधे तौर पर जुड़ा नहीं है. उनके अनुसार, वैज्ञानिक शोध और वैश्विक अनुभव इसके विपरीत बताते हैं. लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेना श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचाता है और हृदय से जुड़ी समस्याओं का खतरा भी बढ़ाता है.

NAAQS और WHO मानकों का अंतर

डॉ. नारायण के मुताबिक, भारत सरकार नेशनल एंबिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स यानी NAAQS का पालन करती है, जिसमें PM2.5 का स्तर लगभग 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर स्वीकार्य माना गया है. इसके उलट विश्व स्वास्थ्य संगठन कहीं अधिक सख्त मानक तय करता है. WHO के अनुसार यह स्तर दैनिक या वार्षिक आधार पर 5 से 15 के बीच होना चाहिए.

प्रदूषण स्तर कितने खतरनाक

विशेषज्ञ का कहना है कि मौजूदा हालात बेहद चिंताजनक हैं. कई शहरों में प्रदूषण का स्तर सरकार द्वारा तय मानकों से भी 10, 15 या 20 गुना अधिक रिकॉर्ड किया जा रहा है. ऐसे में यह कहना कि इसका स्वास्थ्य पर सीधा असर नहीं पड़ता, वैज्ञानिक तथ्यों की अनदेखी करना है. लंबे समय तक यह स्थिति बनी रही तो बीमारियों का बोझ और बढ़ेगा.

दुनिया क्या कर रही है

डॉ. रजय नारायण ने जोर देकर कहा कि भारत को वही रास्ता अपनाना चाहिए, जो दुनिया के अधिकांश देश अपना रहे हैं. विकसित देशों ने सख्त उत्सर्जन नियम, स्वच्छ ऊर्जा और प्रदूषण नियंत्रण पर गंभीरता से काम किया है. वहां नीति निर्माण में शोध और आंकड़ों को आधार बनाया जाता है, न कि तात्कालिक राजनीतिक सुविधाओं को.

समाधान की दिशा और चेतावनी

विशेषज्ञों का मानना है कि अब समय आ गया है जब भारत को भी अपने वायु गुणवत्ता मानकों की समीक्षा करनी चाहिए. विज्ञान आधारित नीतियां, कड़े नियम और उनके सख्त पालन के बिना हालात नहीं सुधरेंगे. डॉ. नारायण की चेतावनी साफ है- यदि अभी कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में फेफड़ों और हृदय रोगों का संकट और गहरा सकता है.