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India Daily

अरावली पहाड़ियों को लेकर क्यों मचा हंगामा.... कहां से आया 100 मीटर ऊंचाई का फॉर्मुला, जो बना विवाद की जड़?

सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा स्वीकार कर ली है, जिसके बाद पर्यावरण संरक्षण पर बहस तेज हो गई है.

Anuj
Edited By: Anuj
Aravali Mountains

नई दिल्ली: भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में शामिल अरावली पहाड़ियां एक बार फिर चर्चा में हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के आधार पर अरावली की परिभाषा तय की है. इस फैसले के बाद पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने चिंता जताई है कि इससे कुछ क्षेत्रों को कानूनी सुरक्षा से बाहर किया जा सकता है. हालांकि, सरकार का कहना है कि इससे खनन या निर्माण को खुली छूट नहीं मिलेगी और पारिस्थितिकी संतुलन प्रभावित नहीं होगा.

अरावली जंगल सफारी पर रोक

अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को अरावली क्षेत्र में प्रस्तावित जंगल सफारी परियोजना पर कोई काम न करने का निर्देश दिया था. यह परियोजना 10 हजार एकड़ में प्रस्तावित थी. सेवानिवृत्त वन अधिकारियों और पर्यावरण समूहों ने इसे पर्यावरण के लिए खतरा बताते हुए चुनौती दी थी.

दिल्ली रिज की सुरक्षा

मई में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के वसंत कुंज क्षेत्र में रिज इलाके में निर्माण को लेकर सख्ती दिखाई थी. अदालत ने दिल्ली सरकार, एमसीडी और एक निजी बिल्डर से जवाब मांगा था. रिज क्षेत्र को दिल्ली का फेफड़ा माना जाता है और यह अरावली का अहम हिस्सा है.

अवैध खनन पर एनजीटी की सख्ती

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने हरियाणा में अरावली क्षेत्र में हुए अवैध खनन पर नाराजगी जताई. एनजीटी ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया कि वसूले गए जुर्माने की राशि से प्रभावित भूमि का पुनर्वास और सुधार किया जाए.

वन भूमि की बहाली का मामला

साल 2022 में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगर बानी गांव की वन भूमि को लेकर केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था. याचिका में कहा गया कि वन भूमि निजी हाथों में चली गई, जिससे अरावली की पारिस्थितिकी को नुकसान हुआ है.

नई परिभाषा और विवाद

सुप्रीम कोर्ट द्वारा 100 मीटर ऊंचाई के आधार पर अरावली की परिभाषा तय किए जाने के बाद विरोध प्रदर्शन हुए. पर्यावरणविदों को आशंका है कि निचले इलाके असुरक्षित हो सकते हैं. हालांकि, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने स्पष्ट किया कि इससे खनन को कोई राहत नहीं मिलेगी.

अरावली पहाड़ियों को लेकर अहम फैसला

देश की शीर्ष अदालत ने नवंबर 2025 में अरावली पहाड़ियों को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है. अदालत ने पूरे अरावली क्षेत्र के लिए एक समान परिभाषा को मंजूरी दी है. इस नई परिभाषा के अनुसार, आसपास की जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची किसी भी भू-आकृति को अरावली पहाड़ी माना जाएगा. और साथ ही अगर ऐसी दो या उससे अधिक पहाड़ियां एक-दूसरे से 500 मीटर की दूरी के भीतर हैं, तो उन्हें मिलकर अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा माना जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या निर्देश दिए

इस फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि जब तक पूरे अरावली क्षेत्र के लिए एक टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल खनन योजना तैयार नहीं हो जाती, तब तक नए खनन पट्टे जारी नहीं किए जाएंगे. अदालत का मानना है कि बिना ठोस योजना के खनन से पर्यावरण को गंभीर नुकसान हो सकता है.

90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा सुरक्षित रहेगा

सरकार ने इस फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि राजस्थान में यही व्यवस्था साल 2006 से लागू है और इसके अच्छे परिणाम सामने आए हैं. अब इसे पूरे अरावली क्षेत्र में एकसमान रूप से लागू किया जा रहा है. सरकार का दावा है कि इस नई व्यवस्था से अरावली का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा सुरक्षित रहेगा और अवैध खनन पर रोक लगाने में मदद मिलेगी.

हालांकि, पर्यावरण विशेषज्ञों और विपक्षी दलों ने इस फैसले पर गहरी चिंता जताई है. उनका कहना है कि इस नई परिभाषा से अरावली की कई छोटी पहाड़ियां, जिनकी ऊंचाई 10 से 50 मीटर के बीच है. कानूनी संरक्षण से बाहर हो सकती हैं. ये छोटी पहाड़ियां भी पर्यावरण के लिए उतनी ही जरूरी हैं, जितनी बड़ी पहाड़ियां.

'गंभीर परिणाम हो सकते है'

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन इलाकों में खनन और निर्माण गतिविधियां बढ़ीं, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं. इससे थार रेगिस्तान का विस्तार तेज हो सकता है, भूजल स्तर और नीचे जा सकता है और दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में वायु प्रदूषण की समस्या और बढ़ सकती है. अरावली पहाड़ियां उत्तर भारत की जलवायु को संतुलित रखने में अहम भूमिका निभाती हैं और रेगिस्तान को फैलने से रोकने की प्राकृतिक दीवार की तरह काम करती हैं.

#SaveAravalli अभियान ने पकड़ा जोर

इन्हीं चिंताओं के चलते #SaveAravalli अभियान ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है. पर्यावरण कार्यकर्ता और आम नागरिक अरावली को पूरी तरह सुरक्षित रखने की मांग कर रहे हैं. अब आने वाला समय ही बताएगा कि सुप्रीम कोर्ट की यह नई परिभाषा वास्तव में अरावली के संरक्षण को मजबूत करेगी या फिर इससे खनन और विकास गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा.