मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद सभी की निगाहें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के केंद्रीय नेतृत्व पर टिकी हुई हैं कि वह राज्य में अगला कदम क्या उठाएगी. राष्ट्रपति शासन के बाद पूरे राज्य में सुरक्षा बढ़ा दी गई है. यह निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि भाजपा अपने पूर्वोत्तर प्रभारी संबित पात्रा और विधायकों के बीच कई दौर की चर्चा के बावजूद मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार पर आम सहमति बनाने में विफल रही थी.
मणिपुर में भाजपा सरकार का नेतृत्व कर रहे एन बीरेन सिंह ने लगभग 21 महीने की जातीय हिंसा के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. हिंसा की घटनाओं में अब तक 250 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाना भाजपा की ओर से शासन करने में उसकी अक्षमता की देर से की गई स्वीकारोक्ति है.
मणिपुर में बढ़ती हिंसा और कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए, केंद्र सरकार ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का फैसला लिया. इस फैसले के बाद राज्य में प्रशासन सीधे राष्ट्रपति के अधीन चला गया है. यह कदम राज्य में शांतिपूर्ण माहौल सुनिश्चित करने और सुरक्षा बलों को पूरी स्वतंत्रता प्रदान करने के उद्देश्य से उठाया गया था.
अब सवाल यह उठता है कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व मणिपुर की स्थिति को लेकर आगे किस दिशा में कदम उठाएगा. राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बावजूद, राज्य सरकार को लेकर विवाद और विरोध के स्वर कम नहीं हुए हैं. भाजपा को यह सुनिश्चित करना होगा कि मणिपुर में शांति स्थापित हो और वहां के लोग स्थिरता महसूस करें.
विपक्षी दलों ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की घोषणा को लेकर सरकार पर हमला बोला है. उनका कहना है कि यह कदम केंद्र सरकार की नाकामी को उजागर करता है और यह राज्य के लोगों के साथ अन्याय है. विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने मणिपुर में जातीय हिंसा के कारणों का समाधान करने के बजाय उसे और बढ़ावा दिया है.
भा.ज.पा. को इस बात का ध्यान रखना होगा कि मणिपुर में शांति स्थापना के लिए उनके अगले कदम ठोस और प्रभावी हों. इसके अलावा, भाजपा को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि राज्य में जातीय तनावों का समाधान निकाला जाए और वहां के लोगों की चिंताओं का समाधान किया जाए. केंद्रीय नेतृत्व को विपक्ष और जनता की आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ सकता है, इसलिए उन्हें सही रणनीति के तहत निर्णय लेने होंगे.
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन के बाद भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के अगले कदम राज्य की राजनीति और सरकार के लिए अहम साबित होंगे. अब यह देखना होगा कि भाजपा कैसे मणिपुर में शांति और स्थिरता स्थापित करने में सफल होती है और आगामी चुनावों में जनता के बीच अपनी स्थिति मजबूत कर पाती है या नहीं.