हाल ही में बिहार के कुछ जिलों में की गई स्टडी ने सभी को चौंका दिया है. इस रिसर्च में मां के दूध के सैंपल में यूरेनियम यानी U 238 की मौजूदगी पाई गई है, जिसके बाद लोगों के मन में यह सवाल उठने लगा कि क्या मां का दूध बच्चों के लिए खतरनाक हो सकता है. सोशल मीडिया पर यह मुद्दा तेजी से फैलते ही घबराहट बढ़ने लगी, लेकिन देश के टॉप वैज्ञानिकों ने इस चिंता को काफी हद तक दूर कर दिया है.
यह स्टडी बिहार के उन जिलों में की गई थी जहां पहले भी ग्राउंडवाटर में यूरेनियम के संकेत मिले थे. इनमें भोजपुर, बेगूसराय, खगड़िया, कटिहार और नालंदा शामिल हैं. अक्टूबर 2021 से जुलाई 2024 के बीच 40 माताओं के ब्रेस्टमिल्क के सैंपल लिए गए और सभी में अलग अलग मात्रा में यूरेनियम पाया गया.
दिल्ली एम्स के बायोकेमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर डॉ अशोक शर्मा ने बताया कि स्टडी में 17 से 35 साल की माताओं के दूध का विश्लेषण किया गया. यूरेनियम की जांच नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च हाजीपुर में की गई. स्टडी में दूध में पाए गए यूरेनियम का स्तर 0 से 5.25 माइक्रोग्राम प्रति लीटर के बीच था. यह स्तर WHO के मानक 30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से काफी कम है. यानी रिपोर्ट के मुताबिक स्तर इतना कम है कि किसी गंभीर स्वास्थ्य खतरे की आशंका नहीं है.
डॉक्टरों का कहना है कि अगर दूध में यूरेनियम की मात्रा अधिक हो जाए तो यह बच्चे की याददाश्त, आईक्यू, शारीरिक विकास और किडनी पर असर डाल सकता है. बहुत ज्यादा स्तर होने पर कैंसर का जोखिम भी बढ़ सकता है. लेकिन मौजूदा स्टडी में मात्रा इतनी कम मिली है कि इससे नुकसान की संभावना बेहद कम है. डॉक्टरों का कहना है कि, यह स्टडी लोगों को डराने के लिए नहीं है. बल्कि जागरूक करने के लिए है. बच्चों के लिए स्तनपान सबसे सुरक्षित और सबसे बेहतर पोषण है.
स्टडी में पाया गया कि शरीर में गए ज्यादातर यूरेनियम को किडनी यूरिन के जरिए बाहर निकाल देती है. दूध में जो मात्रा मिली है वह WHO के मानक से छह गुना कम है. यानी वैज्ञानिकों के अनुसार फिलहाल घबराने की कोई जरूरत नहीं है. यूरेनियम धरती की मिट्टी, चट्टानों और पानी में प्राकृतिक रूप से मौजूद एक रेडियोधर्मी धातु है. इसका उपयोग मुख्य रूप से परमाणु ऊर्जा और हथियार बनाने में होता है. कुछ जगहों पर ग्राउंडवाटर में प्राकृतिक रूप से यूरेनियम की मात्रा अधिक हो सकती है.