भारत में बच्चों के टीकाकरण की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है. द लैंसेट में 25 जून 2025 को प्रकाशित ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी के अनुसार, 2023 में भारत में 1.44 मिलियन बच्चे "जीरो डोज" श्रेणी में हैं, यानी उन्हें अभी तक कोई भी टीका नहीं मिला. यह अध्ययन दर्शाता है कि वैश्विक टीकाकरण प्रयासों में ठहराव आ गया है, जिससे भारत और दक्षिण एशिया के बच्चे डिप्थीरिया, टेटनस, काली खांसी, खसरा और पोलियो जैसी घातक बीमारियों के खतरे में हैं.
टीकाकरण में प्रगति रुकी
1980 से 2023 के बीच टीकाकरण कवरेज में उल्लेखनीय प्रगति हुई, लेकिन 2010 के बाद यह गति धीमी पड़ गई. 2023 तक वैश्विक स्तर पर 15.7 मिलियन बच्चों को डीटीपी (डिप्थीरिया, टेटनस, पर्टुसिस) टीके की पहली खुराक नहीं मिली, जिसमें भारत का योगदान दूसरा सबसे बड़ा है. 2010 से 2019 के बीच 204 में से 100 देशों में खसरे के टीके की कवरेज घटी, जबकि 36 उच्च-आय वाले देशों में से 21 में कम से कम एक टीके की कवरेज में कमी आई.
कोविड-19 का प्रभाव
कोविड-19 महामारी ने टीकाकरण की चुनौतियों को और गंभीर कर दिया. 2020 से 2023 के बीच, लगभग 15.6 मिलियन बच्चों को डीटीपी की तीनों खुराक या खसरे का टीका नहीं मिला. अध्ययन के वरिष्ठ लेखक जोनाथन मोसर ने कहा, “पिछले 50 वर्षों के विशाल प्रयासों के बावजूद, प्रगति सर्वव्यापी नहीं रही. बड़ी संख्या में बच्चे टीकाकरण से वंचित हैं.” उन्होंने आगे कहा, “नियमित टीकाकरण सबसे प्रभावी और लागत-कुशल स्वास्थ्य हस्तक्षेपों में से एक है, लेकिन वैश्विक असमानताएं, महामारी की चुनौतियां और टीका विरोधी भ्रामक सूचनाओं ने प्रगति को बाधित किया है.”
भारत के लिए चुनौती
भारत में 1.44 मिलियन शून्य-खुराक वाले बच्चे वैश्विक सूची में नाइजीरिया के बाद दूसरे स्थान पर हैं. दक्षिण एशिया में 13% ऐसे बच्चे हैं, जो इस संकट की गंभीरता को दर्शाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में स्थानीय और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील टीकाकरण कार्यक्रमों की जरूरत है.
भविष्य के लिए रणनीति
अध्ययन की मुख्य लेखिका एमिली हाउजर ने कहा, “कम कवरेज वाले क्षेत्रों में टीका वितरण और स्वीकार्यता बढ़ाने की चुनौती अब सबसे बड़ी है. सशस्त्र संघर्ष, आर्थिक अनिश्चितता, जलवायु संकट और टीका विरोधी भ्रामक सूचनाएं इस समस्या को बढ़ा रही हैं.” अध्ययन में 2030 के वैश्विक टीकाकरण लक्ष्यों को पूरा करने के लिए समानता में क्रांतिकारी सुधार की जरूरत पर बल दिया गया है.