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Shyam Benegal Death: भारतीय सिनेमा के दिग्गज निर्देशक श्याम बेनेगल का निधन, 90 की उम्र में ली अंतिम सांस

Shyam Benegal Death: भारत के प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल का निधन हो गया. वह 90 वर्ष के थे और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे. उनके निधन की खबर उनकी बेटी पिया बेनेगल ने दी. पिया ने बताया कि यह दुखद घटना एक दिन तो घटनी ही थी, और अब श्याम बेनेगल नहीं रहे.

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Edited By: Gyanendra Sharma
Shyam Benegal
Courtesy: social media

भारत के प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल का निधन हो गया. वह 90 वर्ष के थे और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे. उनके निधन की खबर उनकी बेटी पिया बेनेगल ने दी . पिया ने बताया कि यह दुखद घटना एक दिन तो घटनी ही थी, और अब श्याम बेनेगल नहीं रहे.

बेनेगल को भारत सरकार ने 1976 में पद्म श्री और 1991 में पद्म भूषण से सम्मानित किया था. श्याम बेनेगल भारतीय सिनेमा के उन दिग्गज निर्देशकों में से एक थे जिन्होंने अपनी फिल्मों से समाज को एक नया दृष्टिकोण दिया. उनकी फिल्में हमेशा सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को छूने के लिए प्रसिद्ध रही हैं. "जुबैदा", "अंकुर", "मंडी", "नमक हलाल", और "वटिका" जैसी फिल्मों के जरिए उन्होंने भारतीय सिनेमा की एक नई दिशा दी. 

श्याम बेनेगल की फिल्में

श्याम बेनेगल का जन्म 1939 में हुआ था. वे एक ऐसे फिल्म निर्माता थे जिनकी शैली ने सिनेमा की दुनिया में न केवल समकालीन विषयों को उजागर किया, बल्कि भारतीय समाज की गहरी वास्तविकताओं को भी दिखाया. उनकी फिल्मों ने मुख्यधारा के सिनेमा से हटकर एक नई लहर शुरू की जिसे बाद में 'नई हिंदी सिनेमा' या 'आर्ट फिल्म' के रूप में पहचाना गया.

अंकुर (1974), उनकी पहली प्रमुख फिल्म थी जो एक सामाजिक बदलाव के प्रतीक के रूप में सामने आई. यह फिल्म भारतीय गांवों के भीतर जातिवाद और सामाजिक विषमताओं पर केंद्रित थी. इसके बाद "जुबैदा" (2001) और "मंडी" (1983) जैसी फिल्में आईं, जिन्होंने भारतीय संस्कृति, राजनीति, और समाज के जटिल पहलुओं को बड़े पर्दे पर प्रस्तुत किया. श्याम बेनेगल की फिल्में कभी भी केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं रहती थीं, बल्कि वे दर्शकों को सोचने और समझने पर मजबूर करती थीं. 

भारतीय सिनेमा के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले गए

श्याम बेनेगल को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले थे जिनमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी शामिल था. उन्होंने भारतीय सिनेमा के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठान को भी बढ़ाया. उनकी फिल्मों को ना केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी सराहा गया और इनकी गहरी, सोच-समझ वाली कहानी और निर्देशन ने उन्हें एक अलग पहचान दिलाई.