बिहार में इस बार मतदाताओं की संख्या में गिरावट देखी जा रही है, जो कि 2005 के बाद पहली बार हो रहा है. निर्वाचन आयोग के अनुसार, राज्य में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के तहत अब तक करीब 72.4 मिलियन (7 करोड़ 24 लाख) फॉर्म इकट्ठा हुए हैं. यह आंकड़ा पिछले चुनावों की तुलना में काफी कम है, जिससे यह साफ संकेत मिल रहे हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या घट सकती है.
24 जून 2025 तक बिहार में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या की तुलना में यह संख्या 6.5 मिलियन (8%) कम है. वहीं, 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में दर्ज मतदाताओं की तुलना में यह 4.8 मिलियन (6.2%) और 2020 में हुए राज्य विधानसभा चुनाव के मुकाबले 1.2 मिलियन (1.6%) कम है. यानी चुनाव आयोग के ताजा आंकड़े यह इशारा कर रहे हैं कि राज्य में मतदाता सूची में असामान्य गिरावट हो रही है.
बिहार में 2004 के बाद से यह पहला मौका होगा जब मतदाताओं की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है. हालांकि 2005 के फरवरी और अक्टूबर में हुए दो विधानसभा चुनावों के बीच मतदाताओं की संख्या 52.7 मिलियन से घटकर 51.3 मिलियन रह गई थी, जो कि 2.5% की कमी थी। उस समय भी राज्य में SIR के बाद ऐसी स्थिति सामने आई थी. इससे यह स्पष्ट होता है कि यह घटना नई नहीं है, लेकिन फिर भी दुर्लभ जरूर है.
यह पहली बार नहीं है जब SIR के बाद मतदाता सूची में गिरावट दर्ज की गई हो. 2003 के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के बाद 2005 में भी मतदाताओं की संख्या में गिरावट देखी गई थी. जबकि उस समय बिहार में उच्च प्रजनन दर के चलते 2001 से 2011 के बीच वयस्क आबादी में 28.5% की वृद्धि हुई थी. इसके बावजूद मतदाता संख्या में गिरावट इस ओर इशारा करती है कि राज्य से बड़ी मात्रा में पलायन एक अहम कारण हो सकता है.
निर्वाचन आयोग ने बताया है कि 1 अगस्त से 1 सितंबर तक का समय दावे और आपत्तियों के लिए तय किया गया है. इस दौरान जिन लोगों के नाम सूची से छूट गए हैं, वे फिर से अपना नाम जुड़वाने का आवेदन दे सकते हैं. यानी इस गिरावट को आंशिक रूप से सुधारा जा सकता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि यह गिरावट मतदाता सूची के सत्यापन और सफाई अभियान का परिणाम हो सकती है, जिसमें डुप्लीकेट, मृत और स्थानांतरित मतदाताओं को सूची से हटाया गया है. वहीं, बड़ी संख्या में युवा अब भी मतदाता सूची में नाम नहीं जुड़वा पाए हैं या बाहर जाकर बसे हैं.
चुनाव आयोग द्वारा अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित की जाएगी. अगर तब तक मतदाताओं की संख्या में कोई बड़ा सुधार नहीं होता, तो यह बिहार के चुनावी इतिहास में एक बड़ी और दुर्लभ घटना मानी जाएगी. बिहार जैसे जनसंख्या बहुल राज्य में मतदाताओं की संख्या में गिरावट सामान्य नहीं है. लेकिन सत्यापन प्रक्रिया, पलायन और सामाजिक बदलावों के चलते ऐसा हो रहा है. अब देखना यह है कि दावा-आपत्ति की प्रक्रिया के बाद कितने नए नाम जुड़ते हैं और यह आंकड़ा फिर से ऊपर जाता है या नहीं.