His Story of Itihaas Review: हिज स्टोरी ऑफ इतिहास एक ऐसी फिल्म है जो न केवल भारतीय इतिहास की गलतियों को उजागर करती है, बल्कि कॉलोनियल विचारधारा से प्रभावित शिक्षा व्यवस्था पर भी करारा प्रहार करती है. यह फिल्म एक साहसी कदम है, जो दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि स्कूलों में पढ़ाया जाने वाला इतिहास कितना सच है. डायरेक्टर मनप्रीत सिंह धामी और उनकी पूरी टीम को बधाई, जिन्होंने एक महीने से भी कम समय में इस विचारोत्तेजक फिल्म को पूरा किया.
फिल्म की कहानी नमित (सुबोध भवे) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक साधारण फिजिक्स टीचर है. उसकी पत्नी गृहिणी है और बेटी एक नामी स्कूल में पढ़ती है. कहानी तब मोड़ लेती है, जब नमित को अपनी बेटी की इतिहास की किताबों में गलतियां दिखती हैं. इन किताबों में मुगल शासकों को महान और स्वतंत्रता सेनानियों को आतंकवादी बताया गया है. नमित इस गलत इतिहास को सुधारने की मुहिम शुरू करता है. क्या वह इस सिस्टम को बदल पाता है? यह फिल्म का मूल सवाल है. फिल्म भारत के समृद्ध और प्राचीन इतिहास को सामने लाती है. यह दिखाती है कि जब ग्रीक, रोम या मिस्र जैसी सभ्यताएं भी नहीं थीं, तब भारत में उपनिषद, विज्ञान, गणित, खगोलशास्त्र और कला के सिद्धांत विकसित हो चुके थे. फिल्म एक बड़ा सवाल उठाती है: 'वास्को डा गामा ने 1498 में किस भारत की खोज की थी?' यह सवाल दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है.
मनप्रीत सिंह धामी का निर्देशन इस फिल्म की आत्मा है. उन्होंने असल जिंदगी के इतिहास कार्यकर्ता नीरज अत्री से प्रेरणा लेकर इस कहानी को गढ़ा. स्क्रीनप्ले तथ्यों और भावनाओं का बेहतरीन मिश्रण है. यह फिल्म न तो प्रचार जैसी लगती है और न ही उबाऊ. यह मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा पर सवाल उठाती है. धामी ने कहा, 'यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक सवाल है कि हमें क्या पढ़ाया गया और हमने क्या माना.'
सुबोध भवे ने नमित के किरदार को शानदार ढंग से निभाया. उनकी गंभीरता और जुनून स्क्रीन पर झलकता है. योगेंद्र टिक्कू का अभिनय लाजवाब है, जो हर दृश्य में गहराई लाते हैं. आकांक्षा पांडे, किशा अरोड़ा और अंकुल विकल भी अपने किरदारों में पूरी तरह फिट हैं. सभी कलाकारों ने कहानी को जीवंत किया है.
हिज स्टोरी ऑफ इतिहास एक ऐसी फिल्म है, जो औपनिवेशिक और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा लिखे गए गलत इतिहास को चुनौती देती है. यह बताती है कि कैसे मुगल शासकों को 'गोल्डन पीरियड' का हीरो बनाया गया, जबकि मराठा, सिख गुरु और दक्षिण के हिंदू शासकों को हाशिए पर रखा गया. यह फिल्म दर्शकों को अपने बच्चों के साथ देखनी चाहिए, ताकि वे स्कूलों में पढ़ाए जा रहे इतिहास पर सवाल उठा सकें.
फिल्म चाणक्य के वाक्य को याद दिलाती है: 'जो राष्ट्र अपना इतिहास भूलता है, वह स्वयं इतिहास बनने में देर नहीं करता.' यह सवाल उठाती है कि आखिर सरकारें आज तक गलत इतिहास को क्यों नहीं सुधार रही हैं?