menu-icon
India Daily

Akhanda 2 Review: कमाल के डायलॉग, धांसू एक्शन…'धुरंधर' को पछाड़ने आ गई है 'अखंडा-2'; पढ़े रिव्यू

अखंड 2 एक ऐसी फिल्म है जहां लॉजिक और रियलिज्म थिएटर के बाहर खड़े रह जाते हैं और बोयापति श्रीनु और बालकृष्ण मिलकर दर्शकों को अपने खास मास एक्शन, दिव्यता और ओवर द टॉप एंटरटेनमेंट की दुनिया में खींच लेते हैं.

auth-image
Edited By: Babli Rautela
Akhanda 2 Review -India Daily
Courtesy: Social Media

अखंड 2 की शुरुआत बोयापति श्रीनु की आवाज के साथ होती है जहां वह कहते हैं, बाबू रेडी बाबू, कैमरा शुरू करो, एक्शन. इस पल में एक बात साफ हो जाती है कि इस फिल्म में लॉजिक की जगह नहीं है और फिजिक्स तो पहले ही थिएटर से बाहर जा चुका है. यह बोयापति की वह दुनिया है जहां सब कुछ ओवर द टॉप होता है और यही उनका कॉन्फिडेंस दर्शकों को आकर्षित करता है. इस फिल्म में बालकृष्ण केवल एक किरदार नहीं निभाते, वह इंसान भी हैं, कहानी भी, और जरूरत पड़ने पर सुपरहीरो भी.

कहानी एक ऐसे पड़ोसी देश को दिखाती है जो भारत की आध्यात्मिक पहचान यानी सनातन धर्म को कमजोर करने की साजिश रच रहा है. महाकुंभ में बायोवॉरफेयर ऑपरेशन के जरिए देश पर हमला किया जाता है. एंटीडोट बनाने की जिम्मेदारी गलती से 16 साल की तेज दिमाग वाली लड़की जननी पर आ जाती है, जिसका IQ 266 है. जब खतरा बढ़ता है, अखंडा एक बार फिर लौटते हैं और जननी की रक्षा के साथ साथ पूरे देश को इस संकट से बचाने की जिम्मेदारी उठाते हैं. इसके बाद शुरू होता है दिव्यता, शक्ति और ओवर द टॉप एक्शन का तूफान.

कैसी है बालकृष्ण की अखंडा?

जैसे ही अखंडा की एंट्री होती है, फिल्म पूरी तरह बोयापति मोड में आ जाती है. यहां अखंडा बंदूकें मोड़ते हैं, त्रिशूल से हेलीकॉप्टर रोकते हैं, एक मुक्के से पचास लोगों को उड़ाते हैं और यह साबित करते हैं कि इस दुनिया में कानून व्यवस्था नहीं बल्कि अखंडा की इच्छा चलती है.

एक स्नो चेज सीन में विलेन जितनी क्रिएटिव तरह से चूकते हैं, वह खुद ही फिल्म को मनोरंजक बना देता है. हर एक्शन ब्लॉक में दस बारह आइडिया एक साथ आते हैं. कुछ मजेदार, कुछ बिल्कुल अजीब, लेकिन सभी मनोरंजन से भरे हुए. बोयापति की नो लॉजिक एक्शन कोरियोग्राफी अब खुद एक जॉनर बन चुकी है. चाहें आप इसे ट्रोल करें या इस पर मीम बनाएं, लेकिन इसे नजरअंदाज करना मुश्किल है.

ड्रामा जहां इमोशन नहीं, सिर्फ ऊंचे डायलॉग

फिल्म सनातन धर्म की भावना, परंपराओं और जियोपॉलिटिकल मुद्दों को जोड़ने की कोशिश करती है, लेकिन वर्ल्ड बिल्डिंग इतनी ओवरड्रामेटिक है कि असली भावनाएं खो जाती हैं. ड्रामा कहानी की गहराई पर नहीं, बल्कि मास मिथक की पिच पर चलता है जो इसे हल्का बना देता है. DRDO लैब स्कूल जैसी लगती है, आर्मी उलझन में नजर आती है, और सबसे बड़ा खतरा अखंडा के एक लेक्चर से हल हो जाता है. बोयापति की दुनिया में प्रधानमंत्री से लेकर सेना तक हर कोई अखंडा का उत्साहित दर्शक है.

फिल्म में कई जगह कॉमेडी खुद बन जाती है. उदाहरण के लिए, जब एक अधिकारी को बताया जाता है कि उसका बेटा युद्ध में मारा गया और कारण बताया जाता है, एक भारतीय सैनिक के एक मुक्के से. इस तरह की लाइनें फिल्म की मास अप्रोच को और भी मनोरंजक बना देती हैं.

थमन का संगीत बना फिल्म की जान

अगर फिल्म को किसी चीज ने संभाला है, तो वह थमन का बैकग्राउंड स्कोर है. डमरू की थाप, मंत्र, परकशन और भारी बीट्स फिल्म को बड़ी बना देते हैं. थमन न होते तो आधी फिल्म भार से गिर जाती.

  • बालकृष्ण अखंडा के रूप में पूरी तरह नियंत्रण में हैं. उनकी स्क्रीन प्रेजेंस और डायलॉग डिलीवरी फिल्म को ऊर्जा देती है.
  • हर्षाली मल्होत्रा अपने रोल में मासूमियत और गंभीरता दोनों लाती हैं.
  • आदि पिनिसेट्टी सबसे प्रभावशाली हैं, भले उनका स्क्रीन टाइम कम हो.