लोकसभा चुनाव में इस बार जम्मू-कश्मीर की सीटों पर चुनाव काफी अलग होने वाला है. नए सिरे से हुए परिसीमन के बाद सीटों की संख्या तो 5 ही हैं लेकिन समीकरण बदले नजर आ रहे हैं. एक तरफ कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को मिलाकर 3-3 सीटों पर समझौता किया है. वहीं, महबूबा मुफ्ती की पीपल्ड डेमोक्रैटिक पार्टी अकेली पड़ गई है. ऐसे में अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट पर खुद महबूबा मुफ्ती ही चुनाव में उतरी हैं और उनका सामना नेशनल कॉन्फ्रेंस के मियां अल्ताफ से होना है. परिसीमन से पहले की अनंतनाग सीट पर महबूबा मुफ्ती खुद दो बार इसी सीट से सांसद भी रही हैं, ऐसे में वह एक बार फिर जीत का दावा कर रही हैं.
इस बार चर्चाएं थीं कि महबूबा मुफ्ती की पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ेंगी. हालांकि, आखिर में बात बिगड़ गई और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अनंतनाग-राजौरी सीट से अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर दिया. इसी सीट से गुलाम नबी आजाद भी चुनाव लड़ने वाले थे लेकिन अब वह पीछे हट गए हैं. फिलहाल, बीजेपी ने भी इस सीट को लेकर चुप्पी साध रखी है और किसी उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया है.
इस लंबी चौड़ी लोकसभा सीट में 11 विधानसभा सीटें दक्षिण कश्मीर की हैं औरक सात जम्मू के राजौरी और पुंछ की हैं. दक्षिण कश्मीर में बीजेपी का जनाधार न होने के चलते पार्टी इस सीट पर अब तक उदासीन ही दिख रही है. इस सीट पर लगभग 30 प्रतिशत हिंदू मतदाता हैं. बीजेपी ने बीते कुछ सालों में हिंदू बाहुल्य क्षेत्रों में जमकर पसीना भले बहाया है लेकिन अभी भी वह यहां कमजोर नजर आ रही है. इस क्षेत्र में गुज्जर-बक्करवाल और पहाड़ी समुदाय के लोग भी खूब हैं और बीजेपी उन्हीं के भरोसे कुछ उम्मीदें तलाश सकती है.
नए परिसीमन के तहत इस सीट पर 7 विधानसभा सीटों के लिए लगभग साढ़े सात लाख नए वोटर जुड़े हैं. इन गुज्जर-बक्करवाल समुदाय के लोगों को आरक्षण मिलने के बाद से यहां के समीकरण भी बदले हैं. हालांकि, अभी भी 10.07 लाख कश्मीर के तो 7.36 लाख वोटर जम्मू के हैं. पिछले कई सालों से कश्मीर में मतदान का प्रतिशत कम रहा है जिसके चलते अगर जम्मू संभाग में वोटिंग ज्यादा होती है तो बीजेपी की किस्मत खुल सकती है.
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस सीट से प्रभावशाली गुर्जर नेता और पूर्व मंत्री मियां अल्ताफ को चुनाव में उतारा है. वहीं, बीजेपी अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद से किए गए कामों, आरक्षण से जुड़े फैसलों और नए समीकरणों में अपनी राह देख रही है. वह हिंदू वोटरों को एकजुट रखकर इस सीट पर नई इबारत लिखने की उम्मीद लगाए बैठी है. वहीं, पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती एक बार फिर अपनी पारंपरिक सीट पर दांव लगा रही हैं ताकि वह अपने वर्चस्व को साबित कर सकें जिससे आने वाले समय में विधानसभा चुनाव जब भी हों उनकी पार्टी जनता को जवाब दे सके.
वैसे तो इन नतीजों को अनंतनाग-राजौरी का नतीजा नहीं कहा जा सकता लेकिन 2019 में जिस अनंतनाग सीट पर चुनाव हुआ था वहां से नेशनल कॉन्फ्रेंस के हसनैन मसूदी ने जीत हासिल की थी. कांग्रेस के गुलाम अहमद मीर दूसरे तो महबूबा मुफ्ती तीसरे नंबर पर रही थीं. बता दें कि कश्मीर घाटी में पिछले कई चुनावों में मतदान प्रतिशत बेहद कम रहा है जिसके चलते इस सीट पर सिर्फ 40 हजार वोट पाकर भी हसनैन मसूदी चुनाव जीत गए थे.
बता दें कि जम्मू-कश्मीर की पांच सीटों पर पांच अलग-अलग चरणों में वोट डाले जाएंगे. सबसे पहले 19 अप्रैल को उधमपुर सीट पर, 26 अप्रैल को जम्मू सीट पर, अनंतनाग-राजौपीर में 7 मई को, श्रीनगर सीट पर 13 मई को और बारामूली सीट पर 20 मई को वोट डाले जाएंगे. लद्दाख की इकलौती लोकसभा सीट पर 20 मई को वोटिंग होगी और सभी के नतीजे एकसाथ 4 जून को ही आएंगे.