नई दिल्ली: एमबीबीएस में दाखिला लेने का सपना देखने वाले लाखों छात्रों के लिए यह जानकारी बेहद अहम है. मेडिकल सीटों की संख्या, उनकी उपलब्धता और काउंसलिंग के बाद खाली रह जाने वाली सीटें हर साल चर्चा का विषय बनती हैं. इस बार भी केंद्र सरकार ने संसद में एमबीबीएस और मेडिकल पीजी सीटों से जुड़ा पूरा आंकड़ा पेश किया है, जिससे यह साफ हो गया है कि सीटें बढ़ने के बावजूद कुछ जगहें अब भी खाली रह जाती हैं.
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी न सिर्फ छात्रों बल्कि अभिभावकों और कोचिंग जगत के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है. सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में सीटों का अनुपात, राज्यों के बीच असमानता और काउंसलिंग प्रक्रिया की सीमाएं इस रिपोर्ट के जरिए सामने आई हैं. खास बात यह है कि चार चरणों की काउंसलिंग के बाद भी 72 एमबीबीएस सीटें रिक्त रह गईं.
केंद्र सरकार के अनुसार शैक्षणिक सत्र 2025-26 में देशभर में एमबीबीएस की कुल 1,28,875 सीटें उपलब्ध हैं. इनमें 65,193 सीटें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में और 63,682 सीटें प्राइवेट व डीम्ड यूनिवर्सिटी कॉलेजों में हैं. इसके अलावा मेडिकल पीजी की कुल 80,291 सीटें हैं, जिनमें 17,707 डीएनबी, डीआरएनबी, एफएनबी और पोस्ट एमबीबीएस डिप्लोमा सीटें शामिल हैं.
ऑल इंडिया कोटा के तहत चार राउंड की काउंसलिंग प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी 72 एमबीबीएस सीटें खाली रह गईं. इनमें 26 सीटें सरकारी मेडिकल कॉलेजों की हैं, जबकि 46 सीटें डीम्ड यूनिवर्सिटी से जुड़ी हुई हैं. यह स्थिति दिखाती है कि काउंसलिंग प्रक्रिया के बावजूद कुछ सीटें छात्रों की प्राथमिकता में नहीं आ पातीं या फीस और लोकेशन जैसे कारणों से खाली रह जाती हैं.
सरकार ने लोकसभा में राज्यवार एमबीबीएस सीटों का विस्तृत आंकड़ा भी रखा है. यह सूची सरकारी और निजी दोनों कॉलेजों की स्थिति को स्पष्ट करती है.
यह जानकारी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने लोकसभा में भाऊसाहेब राजाराम वाकचौरे के सवाल के जवाब में दी. प्रश्नों में सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों की कुल सीटें, आवेदनों की संख्या, रिक्त सीटों की स्थिति और उन्हें भरने के लिए उठाए जा रहे कदमों का ब्योरा मांगा गया था. सरकार ने बताया कि स्थिति की समीक्षा लगातार की जा रही है.
इसी बीच केंद्र सरकार भविष्य में जेईई मेन, नीट और सीयूईटी जैसी परीक्षाओं के पैटर्न में बदलाव पर भी विचार कर रही है. कोचिंग पर निर्भरता कम करने और डमी स्कूलों की समस्या से निपटने के लिए 11वीं कक्षा में ही इन परीक्षाओं को आयोजित करने जैसे प्रस्तावों पर चर्चा चल रही है. इससे मेडिकल प्रवेश प्रक्रिया में बड़ा बदलाव संभव है.