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क्या ट्रैफिक पुलिसकर्मी आपके बाइक की चाबी निकाल सकते हैं? यहां जान लें नियम

Traffic Rules: क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि किसी ट्रैफिक पुलिस ने आपकी बाइक की चाबी निकाल ली हो? अगर हां, तो आपको बता दें कि कोई भी ट्रैफिक पुलिसकर्मी ऐसा नहीं कर सकता है. आप इसके खिलाफ शिकायत भी दर्ज कर सकते हैं. इससे जुड़े क्या नियम हैं, चलिए जानते हैं.

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Traffic Rules
Courtesy: Canva

Traffic Rules: कई बार ऐसा होता है कि बाइक ड्राइव करने के दौरान पुलिस आपको रोक लेती है. शायद आपने कोई ट्रैफिक नियम तोड़ा होगा. बाइक वाले रोकने पर रुक भी जाते हैं. लेकिन इस दौरान कई बार पुलिस वाले बाइक की चाबी भी निकाल लेते हैं. अगर आपके साथ कभी ऐसा होता है तो बता दें कि ये नियमों के खिलाफ है. नियमों के अनुसार, कॉन्स्टेबल को न तो आपको अरेस्ट करने का अधिकार है और न ही व्हीकल सीज करने का. इसके अलावा ट्रैफिक पुलिस आपको बिना किसी बात के परेशान भी नहीं कर सकते हैं. 

दरअसल, इंडियन मोटर व्हीकल एक्ट 1932 के तहत, अगर कोई अधिकारिक ASI लेवल का है तो वो ही ट्रैफिक नियम उल्लंघन पर आपका चालान काट सकता है. ट्रैफिक कॉन्स्टेबल इन अधिकारियों की मदद के लिए मौजूद होते हैं. ऐसे में वो किसी की भी गाड़ी का चालान नहीं काट सकते हैं. जानकारी के अनुसार, मोटर व्हीकल एक्ट 1988 में वाहन चेकिंग के दौरान पुलिस कर्मचारी को चाबी निकालने का अधिकार नहीं दिया जाता है. 

ट्रैफिक नियमों को लेकर इन बातों का रखें ख्याल: 

1. अगर कोई अधिकारी आपका चालान काट रहे हैं तो उनके पास चालान बुक या मशीन होनी चाहिए जिससे वो चालान काट पाए. बिना इसके चालान नहीं किया जा सकता है.

2. चालान काटने के लिए ट्रैफिक पुलिस का यूनिफॉर्म में होना बेहद जरूरी है. साथ ही यूनिफॉर्म पर नाम और बकल नंबर भी होना जरूरी है. 

3. अगर ट्रैफिक पुलिस का हेड कॉन्स्टेबल है तो वो 100 रुपये का ही फाइन काट सकता है. इससे ज्यादा फाइन काटने के लिए ASI या SI का होना जरूरी है. 

4. कई भी ट्रैफिक कॉन्स्टेबल आपकी गाड़ी की चाबी नहीं निकाल सकता है. आप चाहें तो इसकी शिकायत भी कर सकते हैं. 

5. अगर आप कार या बाइक ड्राइव कर रहे हैं तो आपके पास सारे जरूरी कागजात होने चाहिए. अगर बिना किसी डॉक्यूमेंट के आपको पकड़ा जाता है तो आप पर चालान किया जा सकता है.

6. अगर अभी पैसे नहीं हैं तो फाइन बाद में भी भरा जा सकता है. इस स्थिति में कोर्ट चालान दिया जाता है जिसे आपको कोर्ट जाकर भी भरना पड़ता है.