Automobile Budget 2025: दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाजार भारत का ऑटोमोबाइल उद्योग, उपभोक्ता वरीयताओं में बदलाव, स्थिरता लक्ष्यों और बदलती सरकारी नीतियों के कारण एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है. जैसे-जैसे बजट 2025 नज़दीक आ रहा है, इस क्षेत्र के हितधारकों को लंबे समय से चली आ रही चुनौतियों का समाधान करने और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए सुधारों की उच्च उम्मीदें हैं.
डेलॉयट के पार्टनर और कंज्यूमर इंडस्ट्री लीडर राजीव सिंह के अनुसार, जीएसटी श्रेणियों का सरलीकरण और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने जैसे कुछ उपाय ऑटोमोबाइल क्षेत्र के खिलाड़ियों की आगामी केंद्रीय बजट से सबसे जरूरी उम्मीदें हैं.
सरकारी सब्सिडी और 5 प्रतिशत की कम जीएसटी दर की बदौलत इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को अपनाने की प्रक्रिया में तेज़ी आ रही है. हालांकि, हाइब्रिड वाहनों को पूर्ण विद्युतीकरण की दिशा में एक मध्यवर्ती कदम माना जाता है, लेकिन उन पर 28 प्रतिशत का कर लगाया जाता है, जिससे वे उपभोक्ताओं के लिए कम आकर्षक हो जाते हैं.
उद्योग जगत के नेता हाइब्रिड वाहनों के लिए जीएसटी में कटौती का आग्रह कर रहे हैं ताकि उन्हें अधिक किफायती बनाया जा सके, खासकर उन क्षेत्रों में जहां चार्जिंग पॉइंट जैसे ईवी इंफ्रास्ट्रक्चर अभी भी अविकसित हैं. इस तरह के उपाय से जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करते हुए हरित विकल्पों की ओर संक्रमण को आसान बनाया जा सकता है.
ऑटो घटकों के लिए जटिल जीएसटी वर्गीकरण निर्माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण बाधा बनी हुई है. एक सुव्यवस्थित नामकरण अनुपालन को आसान बना सकता है, मुकदमेबाजी को कम कर सकता है और क्षेत्र में दक्षता को बढ़ावा दे सकता है. ईवी निर्माताओं को एक उलट शुल्क संरचना के कारण भी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जहां तैयार उत्पाद की तुलना में इनपुट पर अधिक जीएसटी दरें लगती हैं.
सरलीकृत रिफंड प्रक्रिया और पूंजीगत वस्तुओं पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) की अनुमति देने से नकदी प्रवाह में सुधार हो सकता है. उत्पादन लागत कम हो सकती है, विशेष रूप से पूंजी-गहन ईवी स्टार्टअप्स के लिए.
यद्यपि उत्पादन-सम्बंधित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना ने सफलतापूर्वक निवेश आकर्षित किया है, किन्तु कठोर घरेलू मूल्य संवर्धन मानदंड और विलंबित वितरण इसमें बाधाएं हैं.
इन मानदंडों में ढील देने तथा समय पर भुगतान सुनिश्चित करने से अधिक भागीदारी को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे विनिर्माता उत्पादन बढ़ाने तथा नई प्रौद्योगिकियों में निवेश करने में सक्षम होंगे.
35,000 डॉलर से ज़्यादा कीमत वाले आयातित इलेक्ट्रिक वाहनों पर कम सीमा शुल्क की पेशकश करने वाली मौजूदा योजना को प्रतिबंधात्मक माना जाता है. कम कीमत वाले वाहनों को शामिल करने के लिए इसके दायरे को व्यापक बनाने से ज्यादा वैश्विक निर्माता आकर्षित हो सकते हैं, जिससे प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा और उपभोक्ताओं को किफायती इलेक्ट्रिक वाहन विकल्प मिल सकेंगे.
बजट 2025 में सक्रिय सुधारों के साथ, ऑटोमोबाइल क्षेत्र स्थिरता की ओर अपने परिवर्तन को तेज कर सकता है. भारत को ऑटोमोटिव नवाचार में वैश्विक नेता के रूप में स्थापित कर सकता है.