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यमी का अपने ही भाई यमराज पर आ गया था दिल, करना चाहती थी शादी, जानें यमुना की उत्पत्ति से क्या है संबंध?

यम ने यमी के इस त्याग को देखा और गहरे दुखी हुए. उन्होंने संकल्प लिया कि वे धर्मराज बनकर मानव जाति के कर्मों का लेखा-जोखा रखेंगे. इस प्रकार, यमी ने जीवन देने वाली नदी का रूप लिया और यम मृत्यु के मार्गदर्शक बन गए. उनकी यह कथा प्रेम और धर्म के बीच के संतुलन की मिसाल है.

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Edited By: Reepu Kumari
Yam and Yami
Courtesy: AI

Rigveda: भारतीय पुराणों में एक ऐसी कथा है, जो सुनने वाले को हैरान भी करती है और सोचने पर मजबूर भी. यह कहानी है सूर्य और उनकी पत्नी संज्ञा के पुत्र यम और उनकी जुड़वां बहन यमी की. सृष्टि के प्रारंभिक समय में, जब धरती पर जीवन का अस्तित्व भी नहीं था, तब यमी अपने भाई यम से गहरे आकर्षित हो गई. वह उनके गंभीर स्वभाव, निष्पक्षता और जिम्मेदारी से मोहित थी. यमी का मानना था कि उनके और यम के मिलन से एक नई मानव जाति की शुरुआत हो सकती है. यही सोचकर उसने अपने भाई से विवाह और संतान उत्पत्ति का प्रस्ताव रखा.

यमी की दृष्टि में यह केवल व्यक्तिगत प्रेम का विषय नहीं था, बल्कि सृष्टि की आवश्यकता थी. वह चाहती थी कि दोनों मिलकर इस खाली धरती को प्रेम और जीवन से भर दें. लेकिन यम, जो धर्म के मार्ग के रक्षक माने जाते हैं, इस प्रस्ताव को सुनकर चुप रह गए. वह जानते थे कि भाई-बहन के बीच विवाह धर्म और नैतिकता के विरुद्ध है. इसलिए उन्होंने यमी के प्रेम को सम्मान देते हुए भी उसे अस्वीकार कर दिया. यम ने स्पष्ट कहा कि उनका रिश्ता पवित्र है, लेकिन यह वह प्रेम नहीं जो सृष्टि की नींव रख सके.

यम को मनाने की कोशिश

इसके बाद भी यमी ने कई दिनों तक यम को मनाने की कोशिश की. उसने तर्क दिया कि चूंकि संसार अभी शून्य है, इसलिए उनके मिलन से जो जीवन पनपेगा, वह पाप नहीं होगा. परंतु यम अपने निर्णय पर अडिग रहे. अंततः जब यमी ने देखा कि यम का मन नहीं बदलेगा, तो उसकी आंखों से बहते आंसू धरती पर गिरकर एक पवित्र नदी बन गए-यमुना. उसने प्रण किया कि वह यमुना बनकर बहती रहेगी और हर जीव को जीवन देती रहेगी.

यमी ने जीवन देने वाली नदी का रूप लिया और यम बनें मृत्यु के मार्गदर्शक 

यम ने यमी के इस त्याग को देखा और गहरे दुखी हुए. उन्होंने संकल्प लिया कि वे धर्मराज बनकर मानव जाति के कर्मों का लेखा-जोखा रखेंगे. इस प्रकार, यमी ने जीवन देने वाली नदी का रूप लिया और यम मृत्यु के मार्गदर्शक बन गए. उनकी यह कथा प्रेम और धर्म के बीच के संतुलन की मिसाल है.

ऋग्वेद 10.10 में इसका जिक्र

यम और यमी की यह कहानी केवल भावनाओं का संघर्ष नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों और धर्म की गहराई को भी दर्शाती है. ऋग्वेद 10.10 में वर्णित 'यम-यमी संवाद' इसका सबसे प्राचीन प्रमाण है, जहां यमी का प्रस्ताव और यम का उत्तर एक प्रतीकात्मक दार्शनिक अर्थ लिए हुए है. आज भी, जब यमुना की लहरें बहती हैं, तो वे यमी के अधूरे प्रेम और त्याग की गाथा सुनाती हैं, और जब यम की छाया मृत्यु के रूप में आती है, तो वह धर्म की अटलता का स्मरण कराती है.