महाभारत के अमर चरित्र कर्ण को कौन नहीं जानता. कर्ण अद्वितीय धनुर्धर था. वह युद्ध कौशल में अर्जुन जैसा था. बड़े से बड़े योद्धा उसके सामने लड़ने से डरते थे. उसके गुरु परशुराम थे. अगर उसे शाप न मिला होता और वह दानी स्वभाव का न होता तो कुरुक्षेत्र के रण में अर्जुन उसका वध नहीं कर पाते. कर्ण अपने वचनों में फंसता रहा, अपनी विद्या भूलता रहा और अपना जीवन गंवा बैठा.
कर्ण की सबसे बड़ी गलती यह थी उसने अपने गुरु से ही छल किया था. कौरव और पांडवों के पितामह भीष्म के गुरु भी परशुराम थे. भीष्म ने अपने भाई विचित्रवीर्य से विवाह के लिए काशी नरेश की तीन पुत्रियों को हर लिया था. अंबा, अंबिका और अंबालिका को उन्होंने बलपूर्वक काशी नरेश से छीन लिया था. दोनों तो विवाह के लिए राजी हो गईं लेकिन अंबा ने इनकार कर दिया. अंबा किसी और से प्रेम करती थी.
कैसे पड़ी कर्ण के वध की नींव?
भीष्म प्रेमी के पास ले गए लेकिन उसने इनकार किया. परशुराम ने भीष्म से कहा कि तुम इसे स्वीकार कहो. भीष्म ने अपने गुरु की आज्ञा नहीं मानी और कहा कि मैं अविवाहित रहने के लिए संकल्प कर चुका हूं. परशुराम ने कहा युद्ध करो तब मुझसे. भीष्म और परशुराम के बीच भीषण युद्ध चला. दोनों एक-दूसरे पर विजय नहीं पा सके. अपने शिष्य के युद्ध कौशल पर परशुराम खुश तो हुए लेकिन उन्होंने शाप दे दिया कि कभी किसी क्षत्रिय को शिक्षा नहीं देंगे.
इस गलती की वजह से मिला था कर्ण को शाप
कर्ण क्षत्रिय था. एक दिन परशुराम सो रहे थे. वे कर्ण की गोदी में सोए थे. तभी एक बिच्छू ने कर्ण को काट लिया. कर्ण के जंघे से खून बहने लगा. जब गीला लगा तो परशुराम की तंद्रा टूटी. उन्होंने कर्ण से पूछा कि तुम हटे क्यों नहीं. उसने बताया कि वह ब्राह्मण नहीं है और परशुराम ने क्रोधित होकर शाप दे दिया. उन्होंने कहा कि जब इस विद्या की जरूरत होगी, तब तुम्हें कुछ नहीं याद रहेगा.
आखिर गुरु का शाप सच साबित हुआ. कहते हैं कि महाभारत युद्ध के 17वें दिन कर्ण मारा गया. युद्ध करते-करते कर्ण का पहिया जमीन में धंस गया. जैसे ही वह नीचे उतरकर उसे सही करना चाहा, अपनी विद्या भूल गया. इतने में अर्जुन ने दिव्यास्त्र साधकर उसे मार डाला. जीवन में जब विद्या की सबसे जरूरत थी, वह भूल चुका था.