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गंगा क्यों करती थीं अपने बच्चों की 'हत्या,' कैसे राजा शांतनु ने बचाई थी भीष्म पितामह जान?

देवलोक की गंगा और राजा शांतनु एक-दूसरे के प्रेम में पड़ गए थे. एक शाप की वजह से गंगा को धरती पर आना पड़ा. उन्होंने राजा शांतनु के 7 बच्चों को नदी में फेंक दिया था. क्या है इसकी कहानी, पढ़ें.

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Ganga
Courtesy: Creative Image

एक बार राजा शांतनु अपने पूर्व जन्म में स्वर्ग गए थे. वहां देव लोक की देवी गंगा को देखकर वे प्रेम में पड़ गए थे. गंगा भी देवराज इंद्र के सामने शांतनु को एक-टक देखती रहीं. इंद्र ने कहा कि अगले जन्म में तुम्हारा इनसे विवाह होगा. शांतनु ने जब भरतवंश में जन्म लिया तो एक दिन शिकार के लिए गंगा नदी के तट पर भटक गए. जंगल के बीच उन्होंने देखा कि नदी में एक स्त्री बैठी हुई है. वे उस पर दिल हार बैठे. राजा शांतनु यह भूल गए थे कि स्वर्ग में उन्होंने गंगा को विवाह का वचन दिया है.

गंगा से जब उन्होंने अपना प्रेम जाहिर किया तो गंगा ने स्वीकार कर लिया. गंगा ने एक शर्त रख दी कि शादी तभी करूंगी जब तुम वचन दो कि मेरे किसी काम पर तुम कभी नहीं टोकोगे. राजा शांतनु प्रेम में पड़कर गंगा की यह शर्त मान बैठे. गंगा और उनका दांपत्य जीवन सुखमय बीत रहा था. 

जब पहले बेटे को नदी की ओर लेकर निकलीं गंगा

एक दिन गंगा ने कहा वे गर्भ से हैं. राजा शांतनु और उनकी प्रजा आनंद में डूब गई. उन्हें लगा कि अब हस्तिनापुर को नया युवराज मिलने वाला है. समय बीता, जब गंगा ने अपने पुत्र को जन्म दिया तो राजा शांतनु खुश हो गए. यह खुशी ज्यादा देर तक नहीं ठहरी.

गंगा धीरे-धीरे महल से निकलकर नदी की ओर बढ़ने लगीं. वे चलती चली गईं और आवाक होकर शांतनु उन्हें देखते रहे. गंगा ने अपने बेटे को नदी में फेंक दिया. उनका सारा उल्लास शोक में बदल गया. शांतनु वचनबद्ध थे, उन्होंन कुछ नहीं पूछा.

एक के बाद एक 7 पुत्रों को नदी में फेंक आईं गंगा

कुछ दिन बाद गंगा फिर गर्भ से हुईं. उनका दूसरा बेटा हुआ. उसे भी गंगा ने नदी में विसर्जित कर दिया. तीसरा हुआ तो उसका भी यही हश्र हुआ. एक के बाद एक गंगा अपने 7 पुत्रों को नदी में विसर्जित करती चली गईं. शांतनु गहरे विषाद में चले गए. गंगा की शर्त उन पर भारी पड़ रही थी. उनकी उम्र भी बीत रही थी. प्रौढ़ा अवस्था में आकर राजा शांतनु को लगा कि वे संतानहीन न रह जाएं. गंगा एक बार फिर गर्भ से हुईं. कुछ दिनों बाद देवव्रत पैदा हुए. भीष्म के बचपन का नाम देवव्रत था. गंगा उन्हें भी लेकर नदी की ओर बढ़ने लगीं. 

राजा शांतनु इस बार चीख पड़े. उन्होंने गंगा को टोक दिया कि यह अनर्थ क्यों कर रही हो. गंगा के धरती से वापस देव लोक जाने का समय भी हो गया था. उन्होंने कहा मैंने जिन बच्चों को नदी में फेंका, वे सामान्य बच्चे नहीं थे. वे 7 वसु थे और शाप की वजह से मनुष्य योनि में आए थे. मैंने उनकी हत्या नहीं, उन्हें शाप से मुक्त किया है. 

क्यों अपने बच्चों को नदी में बहाती थीं गंगा?

गंगा ने कहा कि एक बार दयु नाम के वसु ने महर्षि वशिष्ठ की कामधेनु का हरण कर लिया था. महर्षि वशिष्ठ क्रोधित हुए और कहा कि तुमने मानवों की तरह धृष्टता की है इसलिए शाप देता हूं कि मनुष्य योनि में तुम पैदा हो जाए. तुम आठ वसु धरती पर मनुष्य होकर पैदा हो. जीवन मृत्यु का दुख देखो. मैंने वशिष्ठ के इस शाप से उन्हें मुक्ति दिलाई है. वे अब स्वच्छंद स्वर्ग का सुख भोगेंगे.

कैसे बची भीष्म पितामह की जान?
महाराज शांतनु ने टोका तो गंगा ने भीष्म को छोड़ दिया. उन्होंने कहा कि तुम अपने पिता शांतनु के साथ धरती पर ही रहो. शांतनु के टोकने पर ही देवव्रत की जान बची. उन्होंने भीष्म से कहा कि जब तुम पुकारोगे तो मैं तुम्हारे पास उपस्थित हो जाऊंगी. गंगा इस तरह वचन टूटने पर स्वर्ग लोक लौट गईं और शांतनु और देवव्रत अकेले रह गए. राजा शांतनु ने इस तरह से अपने बेटे की जान बचा ली.