हिंदू धर्म में शुभ काम और किसी अनुष्ठान के बाद भंडारे का आयोजन किया जाता है. वहीं, सिख धर्म में भी लंगर छकाया जाता है. हालांकि, लंगर या भंडारा ईश्वर का भोग लगाने के बाद बांटा जाता है, लेकिन फिर भी इसको सभी लोग नहीं खा सकते हैं. यह गरीब, वंचित और आर्थिक रूप से कम समर्थ लोगों के लिए कराया जाता है. भंडारे में लोगों को खाना खिलाया जाता है, जो आर्थिक रूप से संपन्न नहीं हैं.
अधिकतर लोग भंडारे को प्रसाद मानकर ग्रहण कर लेते हैं, लेकिन भंडारे का यह प्रसाद सभी के लिए नहीं होता है. इस प्रसाद को खाने से आपको कुछ समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है.
शास्त्रों के अनुसार भंडारा गरीबों को पेट भर खाना खिलाने के लिए रखा जाता है. इस भंडारे में आर्थिक रूप से संपन्न या समर्थ व्यक्तियों को भोजन नहीं करना चाहिए. अगर कोई समर्थ व्यक्ति भंडारे में भोजन करता है तो माना जाता है कि उसने गरीबों का हक मारा है. ऐसा करने से आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति पाप का भागीदार हो जाता है. भगवान श्रीकृष्ण के मित्र सुदामा ने भी श्रीकृष्ण के हिस्से के चने खा लिए थे, जिस कारण उनको गरीबी का जीवन जीना पड़ा था, क्योंकि उन्होंने किसी का हक मारा था.
शास्त्रों के मुताबिक अगर कोई समर्थ व्यक्ति भंडारे में खाना खाता है तो उसके जीवन में समस्याओं का अंबार लगने लगता है. ऐसे व्यक्ति के घर पर धन का अभाव होने लगता है. इसके साथ ही ऐसे लोगों से माता लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं.
अगर आपको मजबूरी में भंडारा खाना पड़े तो आपको वहां पर बिना दान-पुण्य किए नहीं आना चाहिए. अगर आपके पास उस समय धन न हो तो आपको श्रमदान करना चाहिए. जैसे आप गरीबों को खाना खिलाने में मदद कर सकते हैं या फिर उनके जूठे बर्तनों को उठाकर सही जगह पर रख देना चाहिए. अपनी क्षमता के अनुसार दान-पुण्य करके आपको भी लंगर या भंडारे में सहयोग करना चाहिए.
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