Niyoga Method Of Hindu Religion: हिंदू धर्म में अगर पति संतान उत्पन्न करने में असमर्थ है या फिर उसकी मृत्यु हो चुकी है तो उसकी पत्नी या विधवा को नियोग विधि से संतान पैदा करने का अधिकार होता है. इस विधि का उपयोग महाभारत काल में भी किया गया था.
महाभारत काल में भी इस विधि का जिक्र पाया गया है. पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक हस्तिनापुर के राजा शांतनु और गंगा के पुत्र देवव्रत ने कभी विवाह न करने और पूरी उम्र कुंवारा रहने की भीष्म प्रतिज्ञा ली थी. इसके बाद उनके पिता का विवाह मत्स्य सुंदरी सत्यवती से हुआ था. सत्यवती के केवट पिता ने शांतनु से यह शर्त रखी थी कि सत्यवती का पुत्र ही हस्तिनापुर की राजगद्दी पर बैठेगा.
शांतनु और सत्यवती के दो पुत्र विचित्रवीर्य और चित्रांगद हुए थे. जब ये दोनों बाल्य अवस्था में थे, उसी समय शांतनु का स्वर्गवास हो गया था.इस कारण इन पुत्रों का लालन-पोषण भीष्म ने ही किया. भीष्म ने चित्रांगद के बड़े होने पर उन्हें राजगद्दी पर बैठा दिया, लेकिन गंधर्वों से युद्ध करते समय चित्रांगद मृत्यु को प्राप्त हो गए थे. इसके बाद विचित्रवीर्य को हस्तिनापुर नरेश बनाया गया. विचित्रवीर्य को राज्य सौंपने के बाद भीष्म ने उनके विवाह के लिए काशीराज की तीन कन्याओं अंबा, अम्बिका और अंबालिका का उनके स्वयंवर से हर लाए थे. जब अंबा ने भीष्म को बताया कि वे राजा शाल्व से प्रेम करती हैं तो भीष्म ने उनको राजा शाल्व के पास भेज दिया. यही अंबा बाद में शिखंडी रूप में आई थीं.
वहीं, दूसरी ओर विचित्रवीर्य का विवाह अंबा और अंबालिका के साथ हो गया. विचित्रवीर्य अपनी दोनों रानियों के साथ भोग-विलास में रत रहते थे, लेकिन इसके बाद भी उनके कोई संतान नहीं थी. इसके बाद विचित्रवीर्य क्षय रोग से पीड़ित हो गए और मृत्यु को प्राप्त हुए.
दोनों पुत्रों की मृत्यु के पश्चात माता सत्यवती को वंश नष्ट होने की चिंता सताने लगी. इस पर उन्होंने भीष्म से कहा कि पुत्र तुम विचित्रवीर्य की दोनों रानियों से पुत्र उत्पन्न करो, लेकिन भीष्म ने कहा कि माता मैंने विवाह न करने की प्रतिज्ञा ली है और इसे मैं किसी भी हालत में भंग नहीं कर सकता हूं.
जब माता सत्यवती का विवाह शांतनु से नहीं हुआ था,तब एक बार पराशर ऋषि को नाव चलाने वाली एक सुंदर स्त्री सत्यवती दिखी. उनको सत्यवती को देखते ही प्रेम हो गया. ऋषि पराशर ने सत्यवती से संबंध स्थापित करने की इच्छा जताई. इस पर सत्यवती राजी तो हुईं पर उन्होंने उनसे वरदान मांगा कि उनका कन्या भाव जीवनभर खत्म न हो और यौवन जीवन पर्यन्त बरकरार रहे, इसके साथ ही शरीर से मत्स्य गंध भी दूर हो जाए. ऋषि पराशर ने सत्यवती को वरदान दिया. सत्यवती के साथ संबंध स्थापित होने से सत्यवती ने वेदव्यास को जन्म दिया, जिन्होंने आगे चलकर महाभारत महाकाव्य लिखा. इस कारण वेदव्यास भीष्म के सौतेले भाई थे. जब माता सत्यवती ने वेदव्यास को बुलावा भेजा तो वे वहां आ गए.
ऋषि वेदव्यास से माता सत्यवती ने कहा कि वे नियोग विधि के माध्यम से विचित्रवीर्य की विधवाओं अंबिका और अंबालिका से पुत्र पैदा करें. इस पर जब वेद व्यास ने अंबिका के साथ संबंध बनाए तो अंबिका ने आंखें बंद कर ली थीं. इस कारण अंबिका ने नेत्रहीन पुत्र धृतराष्ट्र को जन्म दिया. इसके बाद सत्यवती ने दोबारा अंबिका को वेदव्यास के पास भेजा, जिससे वे स्वस्थ संतान को जन्म दें तो उन्होंने अपनी दासी को अपने रूप में सजाकर वेदव्यास के पास भेज दिया. इस कारण दासी से विदुर का जन्म हुआ. जो एक ज्ञानी योद्धा बने. इसके बाद सत्यवती ने अंबालिका को वेदव्यास के पास भेजा तो वे उनको देखकर शर्म से पीली हो गईं तो उनसे पांडु का जन्म हुआ. इस कारण पांडु भी पीलिया से ग्रसित थे.
अगर कोई पति संतान पैदा करने में असमर्थ है या फिर उसकी अकाल मृत्यु हो गई है तो पत्नी केवल संतान प्राप्ति के लिए अपने पति की आज्ञा से और अगर विधवा है तो अपने पिता की आज्ञा लेकर दूसरे पुरुष के साथ संबंध स्थापित करती है और संतान को जन्म देती है.
सिर्फ धृतराष्ट और पांडु ही नहीं पांडव भी नियोग विधि से पैदा हुए थे. इसमें कुंती ने देवताओं के साथ नियोग विधि द्वारा धर्म से युद्धिष्ठिर, इंद्र से अर्जुन और पवन देव से भीम को राजा पांडु की आज्ञा लेकर प्राप्त किया था. वहीं, उनकी दूसरी पत्नी माद्री ने अश्विनी कुमारों से नकुल और सहदेव को प्राप्त किया था.
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