Rishi Parashar-Satyavati: बचपन से ही हम महाभारत की कई कहानियां सुनते आए हैं. आज हम आपको ऋषि पाराशर और सत्यवती की प्रेम कहानी के बारे में बताएंगे. ऋषि पराशर महान ऋषि वशिष्ठ के पौत्र और शक्तिमुनि और अद्यश्यंती के पुत्र थे. ऋषि पराशर के पास दिव्य और अलौकिक शक्तियां थी. कई खूंखार राक्षसों को उन्होंने मार गिराया था. वहीं, शरीर एक अप्सरा मे जन्म दिया था. अप्सरा को मछली रहने का श्राप दिया गया था जिसकी वजह से सत्यवती के शरीर मछली की महक आती रहती थी. एक केवट ने सत्यवती का पालन-पोषण किया था.
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, ऋषि पराशर यमुना पार करने के लिए नाव में बैठे हुए थे. उस नाव को सत्यवती चला रही थी. ऋषि पराशर सत्यवती की सुंदरता को देखकर मोहित हो गए थे. इस दौरान ऋषि पराशर ने सत्यवती के सामने सहवास का प्रस्ताव रख दिया. सत्यवती ने सहवास के लिए हां कर दी थी लेकिन उन्होंने ऋषि को कहा था कि अगर कुछ शर्तों को पूरा करते हैं तो वह उनके साथ सहवास के लिए तैयार हो जाएंगी.
सत्यवती ने पहली शर्त ऱखती की सहवास करते दौरान कोई नहीं देखना चाहिए. ऋषि ने शर्त को मानकर अपनी दिव्य शक्ति से आसपास घने कोहरे बना दिया. दूसरी शर्त थी कि सहवास के बाद सकी कौमार्यता भंग नहीं होनी चाहिए. ऐसे में ऋषि उसे आश्वासन दिया कि उसकी कौमार्यता वापस आ जाएगी. वहीं, सत्यवती की आखिरी शर्त थी वह उसके शरीर में मछली की गंध से मुक्त कर दें. इस शर्त को पूरा करने के लिए ऋषि ने गंध गायब कर दी और उसके शरीर से फूलों की महक आने लगी.
इसके बाद ऋषि पाराशर और सत्यवती के बीच सहवास हुआ और उसने एक लड़के को जन्म दिया. सत्यवती का पुत्र आगे जाकर महर्षि वेदव्यास के नाम से पहचाने जाने लगा. बता दें, महाभारत की रचना वेदव्यास ने ही की थी.
ऐसा कहा जाता है कि सत्यवती का पुत्र जन्म लेने के तुरंत बाद बड़ा हो गया था. जिसके बाद वह सुनसान द्वीप पर तपस्या करने चला गया था. सत्यवती का पुत्र का रंग तपस्या के दौरान काला हो गया था जिसके वजह से कृष्ण द्वैपायन नाम से पहचानने लगे थे. द्वैपायन ने बाद में वेदों का वर्णन किया था जिसकी वजह से उन्हें वेदव्यास के नाम से पहचाने जाने लगा. बता दें, महाभारत की रचना वेदव्यास ने ही की थी. इसके बाद सत्यवती की शादी राजा शांतनु से हो गई थी जिसके बाद वह हस्तिनापुर की रानी बन गई थी.
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