Jitiya Vrat Katha: आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाने वाला जितिया व्रत इस साल 14 सितंबर 2025 को रखा जाएगा. यह व्रत खासतौर पर माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य के लिए करती हैं. इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास रखकर भगवान की आराधना करती हैं और पौराणिक कथाओं का पाठ करती हैं. कहा जाता है कि इस व्रत को पूरी निष्ठा और नियम से करने पर संतान को दीर्घायु और आशीर्वाद प्राप्त होता है.
जितिया व्रत से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन से संबंधित है. जब वे अपने पिता की सेवा के लिए वनवास में रह रहे थे, तब उनकी मुलाकात एक नागवंश की स्त्री से हुई. महिला ने बताया कि उसके पुत्र को पक्षीराज गरुड़ को बलि स्वरूप देना होगा.
जीमूतवाहन ने निडर होकर कहा, 'मां, चिंता मत कीजिए. आज आपके बेटे को कुछ नहीं होगा. उसकी जगह मैं खुद बलि दूंगा.' वे लाल कपड़े में लिपटकर बलि स्थल पर लेट गए. गरुड़ ने उन्हें नाग समझ लिया, लेकिन जब सच्चाई जानी तो जीमूतवाहन की निःस्वार्थ भावना से प्रभावित हुए और वचन दिया कि वे अब कभी नागों से बलि नहीं लेंगे. तभी से संतानों की रक्षा के लिए जीमूतवाहन की पूजा और जितिया व्रत की परंपरा शुरू हुई.
नर्मदा नदी किनारे एक चील और सियारन रहते थे. दोनों ने महिलाओं को जितिया व्रत करते देखा और व्रत रखने का निश्चय किया. चील ने पूरे नियम से व्रत निभाया, जबकि सियारन भूख न सह पाने के कारण चोरी से भोजन कर बैठी. अगले जन्म में वे दोनों राजा के घर बहनें बनीं. बड़ी बहन (सियारन) के बच्चे बार-बार मर जाते थे, जबकि छोटी बहन (चील) के बच्चे स्वस्थ रहते थे. ईर्ष्या के बाद भी बड़ी बहन सफल नहीं हुई. अंततः गलती मानकर जब उसने भी नियम से जितिया व्रत किया, तब जाकर उसे संतान सुख और बच्चों की लंबी उम्र का आशीर्वाद मिला.
महाभारत काल में अश्वत्थामा ने पांडवों के पांच पुत्रों की हत्या कर दी और अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भस्थ शिशु को भी नष्ट करने का प्रयास किया. लेकिन भगवान कृष्ण ने अपने दिव्य बल से उस मृत शिशु को पुनः जीवन दिया. उस बालक का नाम 'जीवित्पुत्रिका' रखा गया. माना जाता है कि तभी से संतान की रक्षा और लंबी आयु के लिए जितिया व्रत की परंपरा प्रचलित हुई.