नई दिल्ली: छठ पूजा का दूसरा दिन ‘खरना’ बेहद पवित्र माना जाता है. यह दिन व्रती महिलाओं के लिए आत्मशुद्धि और संयम का प्रतीक होता है. इस दिन वे पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं और शाम को सूर्यदेव को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं. पूजा के दौरान मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ियों से गुड़ की खीर और रोटी बनाकर छठी मैया को भोग लगाया जाता है.
खरना की रस्म न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि इसका वैज्ञानिक आधार भी है. गुड़ की खीर और रोटी ऊर्जा और पोषक तत्वों से भरपूर होती है, जो व्रती को अगले 36 घंटे के निर्जला उपवास के लिए शक्ति प्रदान करती है. इस दिन व्रती मन, कर्म और विचार से शुद्ध होकर सूर्य और छठी मैया की आराधना करती हैं.
छठ पूजा का दूसरा दिन ‘खरना’ पवित्रता और आत्मशुद्धि का प्रतीक माना जाता है. इस दिन व्रती महिलाएं सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक निर्जल व्रत रखती हैं. शाम को सूर्यदेव को अर्घ्य देकर और छठी मैया को प्रसाद अर्पित करने के बाद व्रत का पारण किया जाता है. इस दिन बनाए गए प्रसाद को परिवार और समाज के लोगों के साथ साझा किया जाता है, जिससे एकता और सामूहिकता का संदेश मिलता है.
खरना के दिन व्रती महिलाएं मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ियों से गुड़ की खीर और रोटी बनाती हैं. धार्मिक मान्यता है कि छठी मैया को गुड़ की खीर अत्यंत प्रिय है. इसमें प्रयुक्त दूध और चावल चंद्रमा का प्रतीक हैं, जबकि गुड़ सूर्य का प्रतीक माना जाता है. यह संयोजन सूर्य और चंद्रमा की ऊर्जा का संतुलन दर्शाता है, जो छठ पूजा का मुख्य भाव है.
गुड़ की खीर सिर्फ प्रसाद नहीं, बल्कि शरीर के लिए पौष्टिक आहार भी है. इसमें मौजूद गुड़, दूध और चावल शरीर को आवश्यक पोषक तत्व और ऊर्जा प्रदान करते हैं. यह खीर लंबे उपवास के बाद शरीर को ताकत देती है. वहीं गुड़ में मौजूद आयरन और मिनरल्स रक्त शुद्ध करने में मदद करते हैं. इसी कारण इसे पवित्र और ऊर्जा देने वाला भोजन माना जाता है.
व्रती महिलाएं सुबह स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करती हैं. घर को साफ कर मिट्टी का चूल्हा बनाया जाता है. आम की लकड़ियों से प्रसाद पकाया जाता है. शाम को सूर्यदेव को जल अर्पित करने के बाद गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद छठी मैया को अर्पित किया जाता है. पूजा के बाद व्रती इस प्रसाद से व्रत का पारण करती हैं.
खरना आत्मसंयम, शुद्धता और भक्ति का प्रतीक है. इस दिन व्रती मन, वचन और कर्म से शुद्ध होकर छठी मैया की कृपा प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं. यह दिन व्रती को अगले 36 घंटे के निर्जला उपवास के लिए मानसिक और शारीरिक शक्ति प्रदान करता है. साथ ही यह सामाजिक सद्भाव और पारिवारिक एकता का प्रतीक भी है.
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