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Chhath Puja 2024: डूबते सूर्य को आज दिया जाएगा अर्घ्य, क्या इस दिन का महत्व

Chhath Puja 2024: छठ पूजा, सूर्य षष्ठी, छठ पर्व और डाला पूजा के नाम से जाना जाने वाला यह महापर्व चार दिन तक मनाया जाता है. इस वर्ष यह 5 नवंबर से शुरू हुआ है और आज इसका तीसरा दिन है. आज संध्या अर्घ्य है. यह बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है.

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Edited By: India Daily Live
Chhath Puja 2024
Courtesy: Freepik

Chhath Puja 2024: छठ पूजा, जिसे सूर्य षष्ठी, छठ, छठी, छठ पर्व, डाला पूजा, प्रातिहार और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है, चार दिनों का त्योहार है जो धार्मिक परंपराओं के साथ मनाया जाता है. इस वर्ष छठ पूजा 5 नवंबर से शुरू हुई और 8 नवंबर को समाप्त होगी. बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह खासतौर पर मनाई जाती है और नेपाल में भी लोग इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं.

संध्या अर्घ्य 2024: शुभ मुहूर्त और सूर्यास्त का समय

ड्रिक पंचांग के अनुसार, छठ पूजा के तीसरे दिन, 7 नवंबर को संध्या अर्घ्य का शुभ मुहूर्त है:

  • षष्ठी तिथि: 7 नवंबर को रात 12:41 से 8 नवंबर को रात 12:34 तक

  • सूर्योदय: सुबह 6:17 बजे

  • सूर्यास्त: शाम 5:42 बजे

  • संध्या अर्घ्य 2024: शहरों के अनुसार सूर्यास्त का समय (7 नवंबर)

किस जगह कब होगा सूर्यास्त:

  • नई दिल्ली: 5:32 PM

  • पटना: 5:04 PM

  • रांची: 5:07 PM

  • कोलकाता: 4:56 PM

  • मुंबई: 6:02 PM

  • अहमदाबाद: 5:58 PM

  • हैदराबाद: 5:42 PM

  • जयपुर: 5:40 PM

  • लखनऊ: 5:19 PM

  • रायपुर: 5:24 PM

  • चेन्नई: 5:40 PM

  • चंडीगढ़: 5:30 PM

  • शिमला: 5:28 PM

  • भुवनेश्वर: 5:09 PM

छठ पूजा का महत्व और अनुष्ठान:

छठ पूजा सूर्य देव और षष्ठी देवी (छठी मैया) को समर्पित होती है. चार दिनों के इस त्योहार में श्रद्धालु कठिन 36 घंटे का व्रत रखते हैं, जिसमें पानी का भी त्याग करते हैं. व्रत रखने वाले लोग संतान और परिवार की भलाई के लिए सूर्य देव और छठी मैया से आशीर्वाद मांगते हैं.

तीसरे दिन का अनुष्ठान: संध्या अर्घ्य

संध्या अर्घ्य के दिन, श्रद्धालु शाम के समय नदी या तालाब के किनारे इक्ट्ठा होते हैं और बांस की टोकरी (सूप) में गन्ना, नारियल, केला और ठेकुआ जैसे प्रसाद चढ़ाते हैं. सूप को हाथ में लेकर, कमर तक पानी में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. यह जीवन के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है.

इस महापर्व के आखिरी दिन, उषा अर्घ्य, जो 8 नवंबर को सूर्योदय के समय दिया जाता है, के बाद प्रसाद को सबसे पहले व्रतधारी ग्रहण करते हैं और फिर परिवार और दोस्तों में बांटते हैं. यह त्योहार जीवन का उत्सव है, जिसमें सूर्य देव और छठी मैया का आभार व्यक्त किया जाता है.