Swiggy Viral Post: तमिलनाडु के कोयंबटूर से सोशल मीडिया यूजर ने ऑनलाइन खरीदारी के साइड इफेक्ट के बारे में बताया है. सुंदर नाम के एक व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर दो बिल शेयर किया. जिसमें एक बिल ऑनलाइन ऑर्डर का था, वहीं दूसरा बिल सीधा रेस्टोरेंट से खरीदने के बाद मिला था.
सुंदर ने बताया कि उसने फूड डिलीवरी ऐप स्विगी से खाना ऑर्डर किया था. जिस रेस्टोरेंट से खाना आर्डर किया गया, वह रेस्टोरेंट से केवल दो किलोमीटर दूर स्थित था. इस पूरे ऑर्डर के लिए उसने स्विगी को कुल 1473 रुपये दिए. वहीं जब उस व्यक्ति बिल्कुल वहीं खाना रेस्टोरेंट से सीधा लिया, तो उसे केवल 810 रुपये ही देने पड़े. उसने दोनों की कीमतों में लगभग 80 प्रतिशत का अंतर बताया. स्विगी यूजर ने दावा किया कि ऐप की वजह से लगभग 80 प्रतिशत उसे ज्यादा देना पड़ा.
स्विगी ग्राहक ने अपने पूरे ऑर्डर के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि उसने 10 पराठे, चिकन 65, चिकन लॉलीपॉप और चिकन थोक्कू बिरयानी मंगवाया था. इसके लिए उसने डिलवरी और प्लेटफॉर्म फीस के साथ 1473 रूपये दिए. वही दुकान पर इसी खाने के लिए केवल 810 रुपये देने पड़े. उसने कहा कि पराठे की कीमत में उसे लगभग 15 रुपये का अंतर था. वहीं चिकन 65 में कम से कम 90 रुपये का अंतर दिखा.
सुंदर द्वारा शेयर किए गए पोस्ट पर लोगों ने भी अपना रिप्लाई दिया है. एक एक्स यूज़र ने यूजर के दावे का विरोध करते हुए लिखा कि आप ऐसे व्यवहार कर रहे हैं जैसे यह आप पर थोपा गया हो. यह एक खुला बाजार है जहां आप ही चुन सकते हैं. अगर आप आराम चुनते हैं तो आपको कीमत चुकानी होगी, कोई एकाधिकार नहीं हैं. सभी सेवाओं की जांच करें, जो आपको ठीक लगे, वही पसंद करें. वहीं दूसरे यूजर ने लिखा कि मैं गलत हो सकता हूं, लेकिन मुझे लगता है कि ऑनलाइन कीमतें रेस्टोरेंट ही तय करते हैं? स्विगी ऊपर से शुल्क जोड़ सकता है, लेकिन मेन्यू आइटम की कीमतों में मालिक द्वारा हेरफेर होने की संभावना है.
Hey @Swiggy, please explain. Why does ordering food in the app, 81% expensive than buying the same food from the same outlet, just 2kms away. Is this the real cost of convenience ? The extra that I have to pay to get the food delivered is INR 663. pic.twitter.com/rvLghtJJ3H
— Sunder (@SunderjiJB) September 7, 2025
ऑनलाइन फूड ऑर्डर सिस्टम के बारे में बात करते हुए एक यूजर ने लिखा कि फिलहाल फ़ूड डिलीवरी पूरी तरह से स्विगी और ज़ोमैटो के नियंत्रण में है. सेलुलर टेलीकॉम की तरह एकाधिकार. वे इसलिए शुल्क ले रहे हैं क्योंकि वे ले सकते हैं. ओएनडीसी उनसे दूर-दूर तक प्रतिस्पर्धा नहीं कर रहा है. रेस्टोरेंट अपना डिलीवरी सिस्टम बनाने में नाकाम हो रहे हैं. तो फिर विकल्प क्या है? वहीं स्विगी केयर्स के एक प्रतिनिधि ने इन सवालों का जवाब देते हुए कहा कि हम अपनी सेवाओं में पारदर्शिता बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं. ऑनलाइन और ऑफलाइन कीमतें अलग-अलग हो सकती हैं क्योंकि यह रेस्टोरेंट का पूर्ण विवेकाधिकार है.