Corporate Bond Vs Bank FD: नौकरी की अस्थिरता और भविष्य की चिंता हमें निवेश के लिए तैयार करता है. बहुत से लोग पैसों को किसी फिजिकल प्रॉपर्टी में लगाते हैं. वहीं कई लोग इसके लिए बैंक FD, शेयर बाजार, Corporate Bond, म्यूचुअल फंड, सरकारी योजनाएं जैसे निवेश विकल्प का चयन करते हैं. इनके अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं. ज्यादातर भारतीय FD यानी बैंक फिक्स डिपॉजिट में निवेश बेहतर मानते हैं. हालांकि, क्या आपको पता है कि अब कॉरपोरेट बॉन्ड में करीब 15 फीसदी का रिटर्न पा सकते हैं.
सेविंग्स के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट बेहतर ऑप्शन है. इसमें एक निश्चित ब्याज मिलता है.इसमें 7 दिनों से लेकर 10 साल तक के लिए निवेश किया जाता है. लेकिन, FD के स्थान पर कॉरपोरेट एफडी, कॉरपोरेट बॉन्ड में कुछ अतिरिक्त रिटर्न मिल सकता है. आइये जानें ये क्या है और कैसे आपको लाभ दे सकता है.
कॉर्पोरेट बॉन्ड एक तरह का लोन होता है, जिसे कंपनियां फंड पाने के लिए लेकर आती हैं. इसमें निवेशक को तय रेट से इंटरेस्ट मिलता है. मैच्योरिटी के बाद पैसा इन्वेस्टर्स को वापस कर दिया जाता है. इसके भी कई प्रकार होते हैं. इनमें निवेश पर ब्याज कितना होगा ये कंपनियों की रेटिंग पर निर्भर है.
सावधि जमा या एफडी निश्चित अवधि के लिए निश्चित ब्याज दर पर पैसा जमा करने की योजना है. इसमें बहुत ही कम जोखिम होता है. इसमें जमा राशि ब्याज के चक्रवृद्धि के कारण बढ़ती है. एफडी की पेशकश बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थान करते हैं.
परिभाषा- बॉन्ड फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट है, जो निवेशक को कर्जदाता बनाता है. इसमें रेटिंग के आधार पर भुगतान का वादा होता है. फिक्स्ड डिपॉजिट सेविंग अकाउंट की तहर है इसमें मैच्योरिटी तक निश्चित ब्याज मिलती है.
कौन जारी करता है- बॉन्ड को सरकार, निगम, कंपनियां और बैंक जारी करते हैं. वहीं FD बैंक, पोस्ट ऑफिस, एनबीएफसी द्वारा जारी की जाती है.
रिटर्न- बॉन्ड फिक्स्ड डिपॉजिट की तुलना में अधिक रिटर्न देते हैं. इसमें 8-30 फीसदी का वादा किया जाता है. आमतौर पर इसमें 15 फीसदी रिटर्न मिल जाता है. वहीं FD में 5 से 10 फीसदी के रिटर्न फिक्स्ड होते हैं. लेकिन बॉन्ड से कम होता है.
लिक्विडिटी- बॉन्ड ज्यादा लिक्विड होते हैं. इन्हें बाजार से खरीदा बेचा जा सकता है. वहीं FD एक जमा के बाद फिक्स हो जाती है. हालांकि, कुछ संस्थान जुर्माने के साथ इसे समय से पहले निकालने की परमिशन देते हैं.
क्रेडिट रेटिंग- बॉन्ड को एजेंसियों क्रेडिट रेटिंग देती हैं. ये उस संस्था की साख के बारे में बताते हैं. इससे ब्याज प्रभावित होती है. FD को क्रेडिट रेटिंग नहीं दी जाती है. ये बैंक या संस्थानों के अपने फंड होते हैं.
ट्रांजैक्शन- बॉन्ड कारोबार बॉन्ड बाजार में होता है. इसे ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म से एक्सेस किया जा सकता है. वहीं फिक्स्ड डिपॉजिट बैंकों, कॉरपोरेट्स खुद पेश करते हैं. इसे ऑनलाइन या व्यक्तिगत रूप खोला जा सकता है.
निवेश की रकम- बॉन्ड में मिनिमम निवेश 10 हजार हो गया है. वहीं FD में निवेश की रकम संस्थानों पर निर्भर करती है.
टैक्स- बॉन्ड में निवेशक की स्लैब रेट पर टैक्स लगता है. हालांकि एक साल के बाद बेचने पर लिस्टेड बॉन्ड पर 10% टैक्स लगता है. वहीं FD में भी टैक्स देना पड़ता है.
गारंटी- बॉन्ड के निवेश में कोई गारंटी नहीं होती ये बाजार और क्रेडिट के आधार पर होता है. वहीं FD में रकम की गारंटी बैंक नियम के 5 लाख की गारंटी के अंतर्गत आता है.