share--v1

Make in India होने के बावजूद क्यों सस्ते नहीं हो रहे iPhone, वजह जान रह जाएंगे हैरान

Why iphone is not getting cheaper: हाल ही में एक स्टडी ने लोगों को हिला कर रख दिया था जिसमें बताया गया था कि भारत में Iphone का इस्तेमाल करने वाले ज्यादातर लोग लोअर मीडियम या फिर अपर मीडियम क्लास से ताल्लुक रखते हैं. ये लोग इसे स्टेटस सिंबल और शो ऑफ के लिए रखते हैं जबकि जो अमीर हैं वो आज भी एंड्रायड पर अपना भरोसा बरकरार रखे हुए हैं.

auth-image
India Daily Live

Why iPhone is not getting cheaper: दुनिया भर में अमेरिकी कंपनी IPhone के बने स्मार्टफोन्स का क्रेज एक अलग स्तर पर देखने को मिलता है, यही वजह है कि जब भी कोई नया वैरिएंट लॉन्च होता है वो प्री-बुकिंग में ही आउट ऑफ ऑर्डर हो जाता है. भारत में भी लोगों के बीच इसको लेकर एक अलग लेवल का क्रेज है जिसके चलते अब इस Apple ने भारत में ही अपना मैन्यफैक्चरिंग हब शुरू कर दिया है.

भारत सरकार के इस सराहनीय कदम के चलते न सिर्फ iPhone को देश में ही असेंबल किया जा रहा है बल्कि दुनिया के बाकी देशों में निर्यात भी किया जा रहा है. लेकिन इस बीच आईफोन यूजर्स के जेहन में एक अहम सवाल खड़ा होता है कि भारत में मैन्युफैक्चरिंग होने के बावजूद iPhone सस्ते क्यों नहीं हो रहे हैं और ऐसा क्या कारण है जिसके चलते iPhone की कीमतों में कमी की उम्मीद काफी कम नजर आती है. आइए, इसके पीछे के कारणों को गहराई से समझते हैं:

आयात शुल्क का जाल (Web of Import Duties): कहानी सिर्फ असेंबलिंग की नहीं है. iPhone के अधिकांश महत्वपूर्ण कलपुर्जों का आयात अभी भी चीन से होता है. भारत सरकार इन आयातित उपकरणों पर लगभग 20% सीमा शुल्क लगाती है.  इसका सीधा मतलब है कि भले ही फोन को भारत में असेंबल किया जाता है, फिर भी कलपुर्जों की लागत अंतरराष्ट्रीय बाजार मूल्य पर ही रहती है. भारत में असेंबलिंग का फायदा सिर्फ यही है कि इससे रोजगार के अवसर तो बढ़ते हैं, लेकिन लागत में कोई खास कमी नहीं आती.

करों का बोझ (Burden of Taxes): सिर्फ आयात शुल्क ही नहीं, बल्कि भारत में बिकने वाले iPhones पर 18% GST और कुछ अन्य शुल्क भी लगते हैं.  ये अतिरिक्त कर लागत को सीधे बढ़ा देते हैं, जिसका असर सीधे तौर पर फोन की अंतिम कीमत पर पड़ता है. 

मुद्रा विनिमय दर का खेल (Currency Exchange Rate Fluctuations): अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपए की विनिमय दर भी एक महत्वपूर्ण कारक है.  यदि डॉलर मजबूत होता है, तो Apple को भारत में iPhones की कीमतें बनाए रखने के लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं.  यह लागत अंततः उपभोक्ताओं को ही चुकानी पड़ती है.

लाभ का गणित (Profit Margin Matters): Apple एक प्रॉफिट अर्निंग कंपनी है और स्वाभाविक रूप से वह अपने उत्पादों पर एक निश्चित प्रॉफिट डिफरेंस मेनटेन रखना चाहती है.  भारत में उत्पादन शुरू करने से भले ही उसे कुछ लागत संबंधी फायदे मिलें, लेकिन वह अपने प्रॉफिट डिफरेंस को बनाए रखने के लिए उसकी कीमतों में बहुत अधिक कटौती करने में संकोच कर सकती है. 

अंतरराष्ट्रीय बाजार का आईना (Reflection of Global Market): अमेरिका जैसे देशों में, जहां iPhone का मूल निर्माण होता है, वहां बिक्री मूल्य में आयात शुल्क शामिल नहीं होता है.  साथ ही, इन देशों में कर की दरें भारत से कम हो सकती हैं.  इसलिए, स्वाभाविक रूप से वहां iPhones आम तौर पर भारत से सस्ते होते हैं. 

भारत की तुलना में 40 फीसदी सस्ता होता है आईफोन

आईफोन की बात करें तो भारत की तुलना में अमेरिका में 40 फीसदी सस्ती दर पर मिलता है. जहां अमेरिका में आईफोन 15 के बेस मॉडल का प्राइस  799 डॉलर (करीब 66,426 रुपये ) है तो वहीं भारत में इसी मॉडल की प्राइस 79,900 रुपये है.

भले ही iPhone को भारत में असेंबल किया जाता है, लेकिन लागत को प्रभावित करने वाले कई कारक हैं.  आयात शुल्क, अन्य कर और शुल्क, मुद्रा विनिमय दर और Apple का अपना लाभ मार्जिन मिलकर यह तय करते हैं कि भारत में iPhone की कीमतें अंतर्राष्ट्रीय बाजार के अनुरूप ही रहेंगी.  उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में जैसे-जैसे भारत में अधिक कलपुर्जों का निर्माण होता है, लागत कम हो सकती है और इससे भविष्य में iPhone की कीमतों में कमी आने की संभावना बन सकती है.

Also Read