Uttarkashi Cloudburst : भूंकप आए तो अलर्ट, सुनामी की चेतावनी, मगर बादल फटने का कोई क्लू क्यों नहीं?

वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि तेज बहाव ने घरों को माचिस की तीलियों की तरह बहा दिया. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और गृह मंत्री अमित शाह ने इस त्रासदी पर दुख जताया और राहत कार्य तेज करने के निर्देश दिए.

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Reepu Kumari

Uttarkashi Cloudburst 2025: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में 5 अगस्त को बादल फटने की भयंकर घटना ने न सिर्फ जनजीवन को तबाह कर दिया, बल्कि विज्ञान की सीमाओं को भी उजागर कर दिया. महज 34 सेकंड में आई विनाशकारी बाढ़ ने दर्जनों घर बहा दिए, जिसमें अब तक 4 लोगों की मौत और 50 से अधिक के लापता होने की पुष्टि हुई है. राहत कार्य में NDRF, SDRF, सेना और ITBP की टीमें जुटी हुई हैं.

धराली गांव, जो कि गंगोत्री धाम के नजदीक एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, मंगलवार दोपहर 1:55 बजे अचानक बादल फटने से तबाह हो गया. खीर गंगा नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ा और मलबे के साथ बहते पानी ने पूरी मार्केट और कई घरों को निगल लिया.

वीडियो भयावह

वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि तेज बहाव ने घरों को माचिस की तीलियों की तरह बहा दिया. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और गृह मंत्री अमित शाह ने इस त्रासदी पर दुख जताया और राहत कार्य तेज करने के निर्देश दिए.

विज्ञान की हार: क्यों नहीं मिल पाता क्लाउडबर्स्ट का अलर्ट?

भूकंप, तूफान और सुनामी जैसे बड़े आपदाओं की भविष्यवाणी करने वाला विज्ञान बादल फटने जैसे लोकल इवेंट की सटीक चेतावनी देने में असमर्थ क्यों है?

छोटे क्षेत्र, कम समय

क्लाउडबर्स्ट आमतौर पर 20–30 वर्ग किमी क्षेत्र में होती है, और महज कुछ मिनटों में 100 मिमी से ज्यादा बारिश गिरती है. इतनी कम अवधि और सीमित क्षेत्र के लिए सटीक रडार सिस्टम की आवश्यकता होती है.

जटिल स्थलाकृति

हिमालयी क्षेत्र की भौगोलिक संरचना और तेजी से बदलती स्थानीय जलवायु भविष्यवाणी को बेहद कठिन बना देती है.

तकनीकी संसाधनों की कमी

भारत में घने डॉपलर रडार नेटवर्क और हाई-रिजॉल्यूशन सैटेलाइट सिस्टम की कमी है. मौजूदा रडार सिर्फ भारी बारिश की चेतावनी दे सकते हैं, न कि सटीक स्थान और समय की जानकारी.

जलवायु परिवर्तन की भूमिका

विशेषज्ञ मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण बादल फटने की घटनाएं डेढ़ गुना बढ़ गई हैं. नमी से भरे बादल हिमालय में अटक रहे हैं, जिससे बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाएं आम हो गई हैं. धराली जैसी आपदाएं यह बताती हैं कि सिर्फ चेतावनी नहीं, नीति स्तर पर गंभीर बदलाव की जरूरत है.