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धामी सरकार को राज्यपाल का तगड़ा झटका, उत्तराखंड के नए धर्मांतरण कानून पर लिया ये बड़ा फैसला

उत्तराखंड का धर्म स्वतंत्रता संशोधन विधेयक 2025 राजभवन से तकनीकी कारणों के चलते लौट आया है.

Km Jaya
Edited By: Km Jaya
Governor Lieutenant General Gurmeet Singh India daily
Courtesy: @LtGenGurmit x account

देहरादून: उत्तराखंड में जबरन धर्मांतरण को लेकर धामी सरकार का सख्त रुख एक बार फिर चर्चा में आ गया है. धर्म स्वतंत्रता संशोधन विधेयक 2025 फिलहाल अटक गया है और राजभवन से सरकार को वापस भेज दिया गया है. इस घटनाक्रम के बाद राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गई है और कानून के भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. सरकार इसे अब तक का सबसे कड़ा कानून बता रही थी, लेकिन तकनीकी कारणों से इसे मंजूरी नहीं मिल पाई है.

राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने विधेयक को पुनर्विचार के संदेश के साथ लौटा दिया है. सूत्रों के अनुसार विधेयक के ड्राफ्ट में कुछ तकनीकी खामियां पाई गई हैं. इन्हीं खामियों के कारण राजभवन ने इसे तत्काल मंजूरी नहीं दी. मंगलवार को यह विधेयक विधायी विभाग को वापस भेज दिया गया.

यह विधेयक क्यों है अहम?

धामी सरकार के लिए यह विधेयक राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों नजरिए से अहम माना जा रहा है. अब सरकार के सामने दो विकल्प बचे हैं. पहला विकल्प अध्यादेश लाकर कानून को लागू करने का है. दूसरा विकल्प अगले विधानसभा सत्र में संशोधित विधेयक को दोबारा पेश कर पारित कराने का है. सरकार के वरिष्ठ अधिकारी इस पर मंथन कर रहे हैं क्योंकि पहले ही इस कानून को लेकर सख्त संदेश दिया जा चुका है.

पहली बार कब लागू हुआ यह कानून?

उत्तराखंड में धर्मांतरण कानून का सफर वर्ष 2018 से शुरू हुआ था. उस समय पहली बार धर्म स्वतंत्रता कानून लागू किया गया था. वर्ष 2022 में धामी सरकार ने इसमें संशोधन कर सजा के प्रावधानों को और कड़ा किया. अगस्त 2025 में कैबिनेट ने एक और संशोधन को मंजूरी दी. इसके बाद गैरसैंण में हुए विधानसभा सत्र में यह विधेयक पारित हुआ और राजभवन भेजा गया.

क्या है सजा का प्रावधान?

इस विधेयक को सबसे सख्त इसलिए माना जा रहा था क्योंकि इसमें कई नए प्रावधान जोड़े गए थे. छल, बल और धोखे से कराए गए धर्मांतरण पर सख्त सजा का प्रावधान किया गया. जिसके बाद अब कोई भी व्यक्ति शिकायत दर्ज करवा सकता है. पहले यह अधिकार केवल खून के रिश्तों तक सीमित था. सामान्य धर्म परिवर्तन पर तीन से दस साल तक की जेल का प्रावधान रखा गया. इसके साथ ही जिलाधिकारी को संपत्ति कुर्क करने का अधिकार भी दिया गया.

विवाह का झांसा देकर या गंभीर अपराधों के जरिए धर्मांतरण कराने पर न्यूनतम बीस साल से लेकर आजीवन कारावास और दस लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान शामिल किया गया.