पिथौरागढ़: उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित आदि कैलाश सिर्फ एक ऊंचा पर्वत नहीं, बल्कि शिवभक्तों की अटूट आस्था, अद्भुत प्राकृतिक खूबसूरती और रहस्यमयी परंपराओं का अनोखा संगम है. इसे छोटा कैलाश भी कहा जाता है, क्योंकि इसका स्वरूप कैलाश मानसरोवर से काफी मिलता-जुलता है. भारत-तिब्बत सीमा के पास लगभग 4940 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह पवित्र पर्वत कुमाऊं हिमालय की गोद में एक स्वर्ग जैसा प्रतीत होता है.
यहां तक पहुंचने की यात्रा भले ही कठिन मानी जाती हो, लेकिन हर कदम पर मिलने वाले नजारे आपकी थकान पल भर में गायब कर देते हैं. घने जंगलों, बर्फ से ढकी घाटियों, कल-कल बहते झरनों और उम्मीद से भी ज्यादा खूबसूरत रास्तों के बीच चलना अपने-आप में एक आध्यात्मिक अनुभव बन जाता है. यात्रा के दौरान आने वाले पार्वती सरोवर और गौरीकुंड को बेहद पवित्र माना जाता है, जहां श्रद्धालु भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा कर मनोकामनाएं मांगते हैं.
सुबह की पहली किरण जब आदि कैलाश की सफेद चोटी पर पड़ती है, तो ऐसा लगता है जैसे दूसरी दुनिया का कोई दिव्य प्रकाश धरती पर उतर आया हो. आसपास बसे गुंजी, कुटी और नाबी गांव न सिर्फ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए, बल्कि अपनी भोटिया संस्कृति और सरल जीवनशैली के लिए भी मशहूर हैं. यहां के लोग अतिथि को देवता मानते हैं और उनकी नम्रता हर यात्री के दिल पर गहरी छाप छोड़ देती है. कैलाश पर्वत के पास जाकर मन शांत और शरीर को आराम मिलता है.
लेकिन आदि कैलाश को सबसे खास बनाता है इससे जुड़ा एक गहरा रहस्य अब तक कोई भी इंसान इस पर्वत की चोटी पर नहीं चढ़ पाया. स्थानीय मान्यता के अनुसार, यह पर्वत स्वयं भगवान शिव का निवास है और इसकी चोटी पर कदम रखना देवभूमि की मर्यादा को लांघने जैसा माना जाता है. इसी आस्था के कारण यह पर्वत आज भी अप्राप्य और पूरी तरह पवित्र माना जाता है. अगर आप प्रकृति की गोद में शांति, रोमांच और आध्यात्मिक ऊर्जा को महसूस करना चाहते हैं, तो आदि कैलाश की यात्रा आपके जीवन का सबसे अद्भुत और दिव्य अनुभव बन सकती है.