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India Daily

धराली आपदा के चार महीने बाद भी मलबे से निकल रही उम्मीद, दुकानदार ने खुद खोदकर ढूंढे दो लाख रुपये

खीरगंगा नदी में अचानक आई विनाशकारी बाढ़ ने कुछ ही मिनटों में पूरा कस्बा मिट्टी और पत्थरों के ढेर में बदल दिया. होटल, रेस्टोरेंट, दुकानें, घर सब कुछ मलबे के नीचे दफन हो गए. साठ से ज्यादा लोग आज भी लापता हैं.

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Edited By: Gyanendra Sharma
Dharali disaster
Courtesy: Photo-Social Media

धराली: पांच अगस्त 2025 की वह भयावह रात आज भी धराली के लोगों के लिए एक बुरा सपना बनी हुई है. खीरगंगा नदी में अचानक आई विनाशकारी बाढ़ ने कुछ ही मिनटों में पूरा कस्बा मिट्टी और पत्थरों के ढेर में बदल दिया. होटल, रेस्टोरेंट, दुकानें, घर सब कुछ मलबे के नीचे दफन हो गए.

साठ से ज्यादा लोग आज भी लापता हैं. लेकिन चार महीने बीत जाने के बाद भी इस मलबे में दबी हुई जिंदगी की आखिरी उम्मीद नहीं मरी है  न जीवित लोगों की, न उनकी मेहनत की कमाई की.

इसी उम्मीद की एक मिसाल बने हैं स्थानीय दुकानदार बलवेंद्र सिंह पंवार. अपनी दुकान के नीचे दबी दो लाख रुपये की नकदी को निकालने के लिए उन्होंने खुद जेसीबी मशीन बुलाई और पूरे पचास हजार रुपये खर्च करके मलबे की खुदाई करवाई. कई दिनों की मेहनत के बाद आखिरकार उन्हें अपनी जमापूंजी मिल ही गई. बलवेंद्र कहते हैं, “यह पैसा मेरी जिंदगी भर की कमाई था. सरकार ने खोदाई बंद कर दी थी, लेकिन मैं कैसे छोड़ देता? यह मेरे बच्चों का भविष्य था.”

बलवेंद्र अकेले नहीं हैं. कई अन्य प्रभावित परिवारों ने भी अपने दम पर मलबे में हाथ डाले हैं. कोई सोने-चांदी के जेवर ढूंढ निकाला, तो किसी को दुकान का पुराना रजिस्टर या जरूरी कागजात मिल गए. एक महिला ने बताया कि उन्हें अपनी शादी की अंगूठी और मंगलसूत्र मिला, जो मलबे में दबा हुआ था. ये छोटी-छोटी चीजें उनके लिए सिर्फ धातु या कागज नहीं, बल्कि जिंदगी की आखिरी निशानियां हैं.

 प्रशासन ने बंद कर दी थी खोदाई

बाढ़ के तुरंत बाद सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और स्थानीय प्रशासन ने बड़े पैमाने पर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया था. दर्जनों जेसीबी और पोकलेन मशीनें दिन-रात मलबा हटाती रहीं. लेकिन जब कई दिनों तक कोई जीवित व्यक्ति नहीं मिला और लापता लोगों के मिलने की संभावना न के बराबर रह गई, तो प्रशासन ने खोदाई का काम धीरे-धीरे बंद कर दिया. अधिकारियों का कहना था कि अब यह इलाका पूरी तरह असुरक्षित हो चुका है और आगे खोदाई से नया खतरा पैदा हो सकता है.

इसके बाद प्रभावितों के सामने दो रास्ते बचे  या तो सब कुछ छोड़कर आगे बढ़ जाएं, या खुद ही मलबे में हाथ डालें. ज्यादातर लोगों ने दूसरा रास्ता चुना. कोई अकेले कुदाल लेकर उतरा, तो किसी ने रिश्तेदारों और पड़ोसियों की मदद से छोटी-छोटी टीमें बनाईं. कई लोगों ने निजी जेसीबी बुक करवाई और अपनी जेब से लाखों रुपये खर्च किए.

 अब भी दबी हैं सैकड़ों जिंदगियां और करोड़ों की संपत्ति

धराली में करीब 35 होटल-रेस्टोरेंट, सैकड़ों दुकानें और दर्जनों आवासीय मकान पूरी तरह तबाह हो गए थे. अनुमान है कि मलबे के नीचे अभी भी करोड़ों रुपये की नकदी, सोना-चांदी और कीमती सामान दबा हुआ है. कई व्यापारियों के पास तो दुकानों में ही लाखों रुपये का माल और नकदी रखी थी, जो एक झटके में मिट्टी में मिल गई.

प्रभावितों का कहना है कि सरकार ने राहत पैकेज तो दिया, लेकिन वह उनकी वास्तविक क्षति का एक छोटा हिस्सा भी नहीं है. एक होटल मालिक ने बताया, “मुझे 5 लाख रुपये का मुआवजा मिला, लेकिन मेरा होटल बनाने में 2 करोड़ से ज्यादा लगे थे. अब न घर है, न रोजगार.”