आखिरकार उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल (RLD) ने एनडीए में शामिल होने की आधिकारिक घोषणा कर दी है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा और रालोद की दोस्ती से नए राजनीतिक समीकरण बनने की उम्मीद है. चौधरी चरण सिंह को मोदी सरकार के द्वारा भारत रत्न देने की घोषणा करने के बाद जयंत चौधरी का एनडीए की ओर झुकाव बढ़ गया था.
इस गठबंधन से बीजेपी को जहां किसान वोटों, जाट वोटों का लाभ मिलने की उम्मीद है, वहीं रालोद 2024 के लोकसभा चुनाव नें अपना खाता खोलना चहती है, क्योंकि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम उत्तर प्रदेश की इस पार्टी का खाता भी नहीं खुला था.
साल 2018 में सपा और रालोद के बीच कैराना उपचुनाव को लेकर दोस्ती हुई थी जो बाद में गठबंधन में बदल गई. इसके बाद सपा ने अपनी उम्मीदवार तबस्सुम हसन को रालोद के चुनाव चिह्न से मैदान में उतारा था और तबस्सुम चुनाव भी जीती थीं. अगले साल यानी 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा भी इस गठबंधन में शामिल हो गई. 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद को 3 सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिलीं, लेकिन रालोद एक भी सीट पर चुनाव नहीं जीत पाई. वहीं समाजवादी पार्टी पांच सीटों पर चुनाव जीती और बसपा 10 सीटों पर चुनाव जीती थी.
साल 2022 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा और रालोद ने मिलकर चुनाव लड़ा था. सपा ने रालोद को 33 सीटें थीं, जिसमें रालोद 9 सीटों पर जीत हासिल की.
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में रालोद अपने दम पर मैदान में उतरी, लेकिन मोदी लहर उस समय रालोद एक भी सीट नहीं जीत पाई. इसके बाद साल 2019 में सपा और रालोद ने मिलकर चुनाव लड़ा. इस चुनाव में 3 सीटों पर रालोद ने अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन एक भी सीट पर रालोद जीत नहीं दर्ज कर पाई.
अगर बीजेपी और रालोद के गठबंधन की बात करें तो रालोद के लिए यह सौदा हमेशा फायदे का रहे है. रालोद ने अभी तक सबसे अधिक लोकसभा सीटे बीजेपी के साथ गठबंधन करके ही जीती हैं. 2004 में रालोद ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर लोकसभा का चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में रालोद 10 सीटों पर लड़ी थी और 3 सीटों पर चुनाव जीती थी. इसके बाद 2009 में रालोद बीजेपी के साथ गठबंधन कर 7 सीटों पर चुनाव लड़ी, जिसमें रालोद को 5 सीटों पर जीत मिली. लेकिन 2014 और 2019 में रालोद एक भी लोकसभी सीट नहीं जीत पाई.