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Dhananjay Singh: अपहरण-रंगदारी केस में धनंजय सिंह को 7 साल की सजा, एनकाउंटर के बाद हुए थे जिंदा

Dhananjay Singh: बाहुबली नेता और पूर्व सांसद धनंजय सिंह का नाम एक बार फिर सुर्खियों में है. इंजीनियर के अपहरण और फिरौती मांगने के मामले में इस बार उनको दोषी ठहराया गया है. कोर्ट ने धनंजय सिंह को 7 साल की सजा सुनाई है.

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Pankaj Soni
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Dhananjay Singh sentenced 7 years imprisonment : बाहुबली नेता धनंजय सिंह को जौनपुर की एमपी/ एमएलए कोर्ट ने 7 साल की सजा सुनाई है. कोर्ट ने धनंजय सिंह को अपहरण-रंगदारी के मामले में यह सजा सुनाई है. 7 साल की सजा के साथ-साथ कोर्ट ने उन पर 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है. इसके पहले अपर सत्र न्यायाधीश शरद त्रिपाठी ने नमामि गंगे परियोजना के मैनेजर अभिनव सिंघल के अपहरण और रंगदारी मांगने के मामले में दोषी करार दिया था.

धनंजय सिंह 2024 का लोकसभा चुनाव पूरी ताकत के साथ लड़ना चाहते थे. उन्होंने तीन दिन पहले ही जौनपुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, लेकिन वह सलाखों के पाछे पहुंच गए हैं. उत्तर प्रदेश में धनंजय सिंह अपराधी, से माफिया और माफिया से नेता कैसे बने इसके बारे में आज हम आपको कहानी बता रहे हैं. 

चुनाव में ताल ठोंकने कौ तैयार थे धनंजय सिंह 

बाहुबली धनंजय सिंह 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने का मूड बना चुके थे. उन्होंने तीन दिन पहले ही अपने x पर लिखा था,  साथियों तैयार रहिए, लक्ष्य बस लोकसभा-73 जौनपुर’… इस ट्वीट के बाद धनंजय सिंह मैदान में मेहनत करते इससे पहले ही वह अपहरण और रंगदारी के मामले में जेल पहुंच गए हैं. अपहरण और रंगजदारी के मामले में अगर उनको 2 साल से अधिक की सजा हुई तो वह चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. 

किस मामले में पहुंच गए सलाखों के पीछे?  

बाहुबली धनंजय सिंह को जौनपुर की MP-MLA कोर्ट ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट के इंजीनियर अभिनव सिंघल के अपहरण और रंगदारी केस में दोषी करार दिया और सात साल की सजा सुनाई है. धनंजय सिंह के साथ उनके साथी संतोष विक्रम को भी कोर्ट ने दोषी करार दिया था. इनको भी सजा सुनाई गई है. 

अपराध की दुनिया में कैसे पहुंच गए धनंजय सिंह 

साल 1990 में धनंजय सिंह हाईस्कूल में पढंते थे तभी एक पूर्व शिक्षक की हत्या हुई और पहली बार धनंजय सिंह का नाम इस हत्या में आया. पुलिस इस मामले में धनंजय सिंह के खिलाफ आरोप साबित नहीं कर पाई. यहीं से उन पर आपराधिक मामलों से जुड़े आरोप लगने शुरू हुए. इससके बाद धनंजय साल 1992 में जौनपुर के तिलकधारी सिंह इंटर कॉलेज से बोर्ड की परीक्षा दे रहे थे तभी एक युवक की हत्या हुई और हत्या का आरोप उन पर लगा. इसके बाद तीन पेपर धनंजय सिंह ने पुलिस हिरासत में दिए.

यूनिवर्सिटी में पहुंचे तो आरोपों की बौछार हो गई 

इंटर पास करने के बाद स्नातक के लिए धनंजय लखनऊ यूनिवर्सिटी में पहुंचे. यहां छात्र राजनीति और सरकारी विभागों के टेंडर में वर्चस्व की होड़ में धनंजय सिंह का नाम कई गंभीर आपराधिक मामलों में जुड़ा. स्नातक पूरा करने के साथ-साथ हत्या की साजिश और प्रयास, लूट जैसे गंभीर मामलों से जुड़े आधा दर्जन मुकदमे लखनऊ के हसनगंज थाने में उनके खिलाफ दर्ज हो गए.
 

पुलिस ने 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया

साल 1997 में BSP नेता मायावती के शासनकाल में बन रहे अंबेडकर पार्क से जुड़े लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव की ठेकेदारी के विवाद में हत्या कर दी गई. हत्या का आरोप एक बार फिर धनंजय सिंह पर लगा और अपराध जगत में धनंजय सिंह का नाम तब तेजी से उभरा. इसके बाद धनंजय फरार हो गए. तब सरकार ने उन पर 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया.

एनकाउंटर में धनंजय को मार गिराने का दावा

 हत्या के मामले में आरोपी धनंजय सिंह फरार चल रहे थे और पुलिस उनकी तलाश कर रही थी. पुलिस ने फरार धनंजय सिंह और उनके तीन साथियों को 1998 में भदोही में एनकाउंटर में मार गिराने का दावा किया. पुलिस ने इसके लिए खुशियां मनाईं और खूब तारीफ बटोरी. बाद में खुलासा हुआ कि एनकाउंटर में मारे गए चारों युवक निर्दोष थे. इस प्रकरण में 22 पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ, जो अब भी जिला सत्र न्यायालय में लंबित है.


एनकाउंटर के बाद धनंजय सिंह ने कोर्ट में किया सरेंडर 

यूपी पुलिस ने 1998 में धनंजय सिंह को एनकाउंटर में मार गिराने का दावा किया था. लेकिन 1999 में धनंजय सिंह ने कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया. इसके बाद राजनीति गरमा गई सवाल खड़ा हुआ कि एनकाउंटर में मारे गए धनंजय कैसे जिंदा हो गया. इस मामले में 22 पुलिसकर्मियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ. इस दौरान धनंजय का नाम 1997 में राजधानी के चर्चित लॉ मार्टिनियर कॉलेज के असिस्टेंट वॉर्डन फ्रेड्रिक गोम्स हत्याकांड और हसनगंज थाना क्षेत्र में हुए संतोष सिंह हत्याकांड में भी जुड़ा. उन पर लखनऊ यूनिवर्सिटी के छात्र नेता अनिल सिंह वीरू की हत्या की कोशिश जैसे आरोप भी लगे.

निर्दलीय चुनाव जीतकर बने विधायक

अपराध की दुनिया में नाम कमाने के बाद धनंजय सिंह ने राजनीति में किस्मत आजमाने का मन बनाया. धनंजय सिंह 2002 में रारी विधानसभा क्षेत्र से पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीतकर विधायक बने. 2007 में उन्हें JDU से टिकट मिला और वह विधानसभा पहुंचे. 2008 में धनंजय सिंह JDU छोड़कर बसपा में शामिल हो गए. 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने उन्हें जौनपुर से टिकट दिया और पहली बार धनंजय सिंह सांसद बने, लेकिन बसपा से उनके संबंध ज्यादा समय तक नहीं चले. मायावती ने 2011 में उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में पार्टी से निकाल दिया. इसके बाद से धनंजय सिंह नेपथ्य में हैं.

तीन शादियां की, पहली ने आत्महत्या की, दूसरी से तलाक 

धंनजय सिंह जौनपुर के सिकरारा थाना क्षेत्र के बंसफा गांव के रहने वाले हैं. इनकी पत्नी श्रीकला सिंह वर्तमान में जौनपुर की जिला पंचायत अध्यक्ष हैं. धनंजय सिंह का निजी जीवन भी काफी उथल-पुथल भरा रहा है. उन्होंने तीन शादियां कीं. उनकी पहली पत्नी ने शादी के नौ महीने बाद ही आत्महत्या कर ली थी. दूसरी पत्नी डॉ. जागृति सिंह घरेलू नौकरानी की हत्या के आरोप में नवंबर 2013 में गिरफ्तार हुई थीं. इस मामले में सबूत मिटाने के आरोप में धनंजय सिंह भी नामजद हुए थे. हालांकि बाद में जागृति से उनका तलाक हो गया. 2017 में धनंजय सिंह ने दक्षिण भारत के एक बड़े कारोबारी परिवार से ताल्लुक रखने वालीं श्रीकला रेड्डी से तीसरी शादी कर ली.