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गोरखपुर की खाली जमीनें बनीं अवैध बस्तियों का ठिकाना, 50,000 से ज्यादा लोग रह रहे हैं छुप-छुपकर

गोरखपुर में अनजान परिवार तेजी से बसते जा रहे हैं. स्थानीय जमीन मालिक खाली प्लॉट किराए पर देकर उन्हें झुग्गी-झोपड़ियां बनाने दे रहे हैं. प्रति झोपड़ी ₹1,000 से ₹4,000 किराया लिया जाता है.

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Edited By: Princy Sharma
Gorakhpur India Daily
Courtesy: Pinterest

गोरखपुर: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में रहने वाले अनजान परिवारों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. स्थानीय जमीन मालिक इन ग्रुप्स को अपनी खाली जमीन किराए पर दे रहे हैं, जिससे वे अस्थायी झोपड़ियां और झुग्गी-झोपड़ी जैसी बस्तियां बना रहे हैं. बताया जाता है कि हर झोपड़ी का किराया ₹1,000 से ₹4,000 प्रति महीना है और अनुमान है कि शहर के अलग-अलग हिस्सों में 50,000 से ज्यादा ऐसे लोग रह रहे हैं.

सिर्फ इंदिरा नगर इलाके में ही, लगभग 6,000 लोग अपने परिवारों के साथ बस गए हैं. इनमें से ज्यादातर लोग कबाड़ इकट्ठा करने वाले के तौर पर काम करते हैं और कचरा इकट्ठा करने के लिए अलग-अलग मोहल्लों में घूमते हैं. कुछ लोग ठेकेदारों के जरिए कंस्ट्रक्शन का काम भी करते हैं और काम की जगहों पर अस्थायी रूप से रहते हैं. 

वोटर लिस्ट में नहीं है शामिल

उनके नाम वोटर लिस्ट में शामिल नहीं हैं और उनमें से कई लोग पहचान के तौर पर कोलकाता या असम के आधार कार्ड दिखाते हैं. यह जानकारी एक ग्राउंड इन्वेस्टिगेशन के दौरान सामने आई. स्थानीय लोगों का कहना है कि हरबर्ट तटबंध इलाके में सबसे पहले मुंशी नाम का एक युवक आया था. वह वहां बस गया और फिर कई और लोगों को ले आया और आखिरकार राप्ती नदी के रास्ते के पास एक अवैध बस्ती बना ली. मुंशी अब ऑटो चलाता है, लेकिन उसके लाए हुए ज्यादातर लोग अभी भी कबाड़ इकट्ठा करने का काम करते हैं.

झोपड़ी का कितना किराया है?

बताया जाता है कि इस इलाके का जमीन मालिक हर महीने हर झोपड़ी से ₹2000 किराया लेता है. पहले, इनमें से कई परिवार सीधे तटबंध पर रहते थे, लेकिन सड़क चौड़ीकरण के काम के कारण वे नदी और आस-पास के गांवों के करीब चले गए. राप्ती नदी के पास रहने वाले परिवार कहते हैं कि वे झोपड़ियां बनाने और इकट्ठा किया हुआ कबाड़ रखने की जगह के लिए ₹4,000 प्रति महीना देते हैं.

कैसी है इन लोगों की भाषा 

एक महिला ने रिपोर्टर्स को बताया कि ज्यादातर निवासी एक ही भाषा बोलते हैं और एक जैसी जीवनशैली अपनाते हैं. पुरुष सुबह जल्दी हाथगाड़ी लेकर निकल जाते हैं, जबकि महिलाएं दोपहर में बड़े-बड़े बोरे लेकर निकलती हैं. वे रात को देर से इकट्ठा किया हुआ कबाड़ लेकर लौटती हैं.

अवैध बिजली कनेक्शन 

जब एक रिपोर्टर ने एक निवासी से बात की, तो उसने अपना नाम समद बताया, लेकिन अपने बैकग्राउंड या परिवार के बारे में कोई भी जानकारी देने से मना कर दिया. इसी तरह की बस्तियां तारामंडल रोड पर GDA ऑफिस के पास फुटपाथ पर भी मिलीं. परिवारों ने सड़क किनारे अवैध रूप से झोपड़ियां बना ली हैं, लेकिन उनके पास टीवी और बिजली के उपकरण भी हैं. बताया जाता है कि निवासी पड़ोसियों से या अवैध बिजली कनेक्शन के जरिए बिजली का इस्तेमाल करते हैं.

इंदिरा नगर बस्ती के एक और युवक ने बताया कि वह और हजारों अन्य लोग कई सालों से वहां रह रहे हैं और जमीन मालिक को किराया दे रहे हैं. वे ज्यादातर कबाड़ इकट्ठा करने, मजदूरी और दूसरे छोटे-मोटे काम करते हैं. महेवा बांध के पास, एक और ग्रुप जमीन मालिक की इजाजत से एक बगीचे वाले इलाके में रह रहा है. बताया जाता है कि वह बिजली समेत ₹5,000 प्रति झोपड़ी का किराया लेता है. उसका दावा है कि सभी निवासियों के पास कोलकाता के आधार कार्ड हैं और उनकी कॉपी उसे और पुलिस को जमा की गई हैं.

50000 हजार से ज्यादा लोग दे रहें किराया

खोरबार-AIIMS इलाके में, रामपुर भगता के पास और सहारा स्टेट के गेट नंबर 4 के पास, लगभग 100 लोगों का एक और ग्रुप एक बंद पड़े स्कूल की बिल्डिंग के अंदर रह रहा है. संजित नाम के एक स्थानीय निवासी के अनुसार, स्कूल दो कबाड़ इकट्ठा करने वालों को किराए पर दिया गया था, जो बाद में और लोगों को ले आए. ये सभी निवासी मिलकर हर महीने ₹50,000 से ₹60,000 किराया देते हैं.

संजित ने यह भी बताया कि इनमें से कुछ लोग पहले उसके घर के बगल में एक खाली प्लॉट पर रहते थे. प्लॉट के मालिक ने उनके लिए टिन के शेड बनवाए थे, लेकिन बार-बार होने वाले झगड़ों के कारण उसे पुलिस में शिकायत करनी पड़ी. इसके बाद पुलिस ने उन्हें उस इलाके से हटा दिया. शहर में कई दूसरी जगहों पर भी ऐसी ही स्थितियां बताई गई हैं.