Mewar Tradition On Dhanteras: पीली मिट्टी बन जाती है सोना! मेवाड़ की धनतेरस परंपरा की अद्भुत कहानी; जानें क्यों है खास
Mewar Tradition On Dhanteras: धनतेरस पर राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में महिलाएं सूर्योदय से पहले नदी तट से पीली मिट्टी लाकर घर में रखती हैं. मान्यता है कि यह वही मिट्टी है, जिसमें भगवान धन्वंतरि के अमृत की बूंदें गिरी थीं. इस परंपरा को निभाने से सुख, समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है.
Mewar Tradition On Dhanteras: देशभर में दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से हो चुकी है, लेकिन राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में यह दिन केवल धन के प्रतीक नहीं, बल्कि आस्था और पवित्रता का उत्सव बन जाता है. राजस्थान के मेवाड़ अंचल के राजसमंद जिले के कांकरोली और आसपास के इलाकों में धनतेरस की सुबह एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जिसमें सुहागिन महिलाएं सूर्योदय से पहले नदी तट से 'पीली मिट्टी' लाकर उसे साक्षात धन मानती हैं.
यह परंपरा सदियों पुरानी है और हर पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक श्रद्धा के साथ सौंपी जाती है. महिलाएं अंधेरा रहते ही ब्रह्म मुहूर्त में नदी या जलाशय के किनारे पहुंचती हैं, वहां विधिवत पूजा करती हैं और पीली मिट्टी को कलश या तगारी में भरकर घर लाती हैं. यह मिट्टी सोने-चांदी के समान पवित्र मानी जाती है और इसे घर में रखने से सुख, समृद्धि और आरोग्य बना रहता है.
समुद्र मंथन के दौरान हुए प्रकट
स्थानीय मान्यता के अनुसार, जब समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे, तब उनके स्वर्ण कलश से अमृत की कुछ बूंदें धरती पर गिरी थीं. कहा जाता है कि वे अमृत की बूंदें इस मिट्टी में समा गईं और इसे पवित्र बना गईं. इसलिए मेवाड़ की महिलाएं इसे 'धन्वंतरि भगवान का आशीर्वाद' मानकर घर लाती हैं.
घर लाने से होते हैं ये फायदे
कांकरोली की श्रद्धालु ने मीडिया से बातचीत में बताया कि यह मिट्टी सिर्फ धूल नहीं बल्कि 'अमृत की बूंदें' हैं. उनके अनुसार, 'इसे घर लाने से पूरे साल सुख-समृद्धि बनी रहती है और घर में रोग नहीं आते.' वहीं बुजुर्ग सुन्दर बाई कहती हैं कि यह परंपरा हमारी पहचान है. इसे निभाने से हमारे घर की लक्ष्मी कभी रूठती नहीं. इस मिट्टी का उपयोग धनतेरस की शाम लक्ष्मी पूजन में भी किया जाता है. ग्रामीण इलाकों में आज भी इससे आंगन और रसोई के चूल्हे को लीपा जाता है. यह न केवल शुद्धिकरण का प्रतीक है बल्कि धन और स्वास्थ्य का भी प्रतीक माना जाता है.
दीपोत्सव की शुरुआत
उन्होंने बताया कि दीपोत्सव की शुरुआत इतनी पवित्र परंपरा से हो, तो पूरा त्योहार शुभ और मंगलमय हो जाता है. मेवाड़ की यह परंपरा बताती है कि भारतीय संस्कृति में धन का अर्थ केवल सोना या चांदी नहीं, बल्कि मिट्टी, स्वास्थ्य, और प्रकृति से जुड़ा हुआ समृद्ध जीवन है. यही कारण है कि यहां की पीली मिट्टी हर धनतेरस पर आस्था का अमृत कलश बन जाती है.