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'कपड़े उतारो और पहचान दिखाओ', ट्रांसजेंडर सर्वे पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने लगाई रोक

Karnataka High Court: कर्नाटक हाईकोर्ट ने ट्रांसजेंडर सर्वे में ‘स्ट्रिप सर्च’ पर रोक लगाते हुए कहा कि यह अपमानजनक और मानव गरिमा का उल्लंघन है. अदालत ने सरकार को सर्वे स्वैच्छिक रखने, गोपनीयता सुनिश्चित करने और डेटा सुरक्षा पर शपथपत्र दाखिल करने के निर्देश दिए. अगली सुनवाई 5 दिसंबर को होगी.

Karnataka High Court
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Karnataka High Court: कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को ट्रांसजेंडर समुदाय की पहचान के लिए चल रहे सर्वे में ‘स्ट्रिप सर्च’ (कपड़े उतरवाकर जांच) की प्रक्रिया अपनाने से रोक लगा दी है. अदालत ने कहा कि यह तरीका न केवल अपमानजनक है बल्कि मानव गरिमा का उल्लंघन भी करता है. मुख्य न्यायाधीश विभू बखरू और न्यायमूर्ति सी.एम. पूनाचा की खंडपीठ ने यह आदेश अनीता ह्यूमेनिटेरियन फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया. 

याचिकाकर्ता संस्था ने कहा था कि सर्वे के दौरान ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अस्पतालों में अन्य ट्रांसजेंडर कर्मियों द्वारा कपड़े उतरवाकर जांच के लिए मजबूर किया जा रहा है. संस्था ने यह भी तर्क दिया कि ऐसे सर्वे की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि अधिकांश ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के पास पहले से ही पहचान पत्र मौजूद हैं.

'कपड़े उतरवाने की प्रक्रिया सही नही' - कोर्ट 

अदालत ने अंतरिम आदेश में सरकार और सर्वे टीम को निर्देश दिया कि प्रतिभागियों को सर्वे की स्वैच्छिक प्रकृति के बारे में स्पष्ट रूप से बताया जाए. साथ ही कहा कि फिलहाल, प्रतिवादियों को स्ट्रिप सर्च या कपड़े उतरवाने की किसी भी प्रक्रिया से रोका जाता है. सर्वे के दौरान प्राप्त सभी जानकारियों को गोपनीय रखा जाए और किसी भी तीसरे पक्ष को न दिया जाए.

अदालत ने समाज कल्याण विभाग को यह भी निर्देश दिया कि वह तीन कार्यदिवसों के भीतर शपथपत्र (affidavit) दाखिल करे, जिसमें यह बताया जाए कि सर्वे के दौरान एकत्र किए गए डेटा की गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं.

अपमानजनक व्यवहार पर मिलेगा मुआवजा

अनीता ह्यूमेनिटेरियन फाउंडेशन की याचिका में यह भी मांग की गई है कि सितंबर से शुरू हुए ट्रांसजेंडर जनगणना कार्यक्रम को पूरी तरह बंद किया जाए, क्योंकि यह संविधान द्वारा प्रदत्त समानता और स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन है. साथ ही, अब तक एकत्र किए गए आंकड़ों को किसी भी रूप में सार्वजनिक न किया जाए और उन्हें सुरक्षित रूप से नष्ट किया जाए.

संस्था ने यह भी अनुरोध किया कि जिन ट्रांसजेंडर या जेंडर डाइवर्स व्यक्तियों को स्ट्रिप सर्च या अपमानजनक व्यवहार का सामना करना पड़ा है, उनके लिए मुआवजा फंड बनाया जाए और राज्य सरकार समुदाय से औपचारिक माफी मांगे.

संस्था की प्रमुख डॉ. अनीता प्रसाद ने पहले सोशल मीडिया पर कहा था कि यह सर्वे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और देवदासी प्रणाली से बाहर आए लोगों को अपमानजनक जांच और सवालों का सामना करने पर मजबूर कर रहा है.

उन्होंने बताया कि सर्वे में ट्रांसजेंडर पुरुषों, नॉन-बाइनरी और जेंडरफ्लूइड पहचानों को भी नजरअंदाज किया गया है. अदालत के आदेश के बाद डॉ. प्रसाद ने कहा कि यह “मानव गरिमा और न्याय के लिए ऐतिहासिक क्षण” है. इस मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर को निर्धारित की गई है.