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धर्मस्थल को कंलकित करने की रची जा रही है सोची समझी साजिश! यहां जानें कैसे मंदिर की विरासत को किया जा रहा तबाह?

कर्नाटक के ऐतिहासिक श्री क्षेत्र धर्मस्थल मंदिर पर हाल ही में कुछ बेबुनियाद आरोपों के जरिए उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने की कोशिश हुई है. ‘अनन्या भट्ट’ नामक एक कथित लापता छात्रा का मामला और पूर्व ठेकेदार के दावों ने सोशल मीडिया पर सनसनी फैलाई, लेकिन जांच में इन दावों के समर्थन में कोई साक्ष्य या आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं मिले.

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Edited By: Kuldeep Sharma
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Courtesy: web

सदियों से श्री क्षेत्र धर्मस्थल आस्था, दान और सेवा का प्रतीक रहा है. लेकिन हाल के महीनों में इसकी पवित्रता पर अभूतपूर्व हमला हुआ है. वह भी किसी साबित हुए अपराध से नहीं, बल्कि एक सुनियोजित झूठ और भ्रामक सूचनाओं के जाल के जरिए.

सबसे प्रमुख उदाहरण है तथाकथित ‘अनन्या भट्ट’ केस, एक सनसनीखेज सोशल मीडिया कहानी, जिसमें दावा किया गया कि कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज की एक छात्रा 2003 में धर्मस्थल में लापता हो गई थी और उसका मामला प्रभावशाली ताकतों द्वारा दबा दिया गया. यह कहानी तब दोबारा चर्चा में आई जब एक व्हिसलब्लोअर, जो 1995 से 2014 तक धर्मस्थल में स्वच्छता ठेकेदार था, ने दावा किया कि उसे आपराधिक गतिविधियों से जुड़े शवों को नष्ट करने के लिए मजबूर किया गया था. हाल ही में उसने कथित दफन स्थलों का दोबारा दौरा किया, कंकालों की तस्वीरें लीं और इन्हें अधिकारियों को सौंपा, जिससे SIT जांच शुरू हुई.

गलत सूचनाओं के जरिए बनाया गया निशाना

श्री क्षेत्र धर्मस्थल जो कर्नाटक का एक धार्मिक संस्थान है, की प्रतिष्ठा को गलत सूचनाओं के जरिए निशाना बनाया गया, खासकर ‘अनन्या भट्ट’ केस में लगाए गए अप्रमाणित आरोपों के जरिए. इनमें पूर्व स्वच्छता ठेकेदार और कार्यकर्ता महेश शेट्टी थिमारोडी शामिल हैं. हालांकि, इन आरोपों को सबूतों और ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अभाव में खारिज कर दिया गया है.

कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज के रिकॉर्ड में नहीं है नाम

इसके बाद सुजाता भट्ट नाम की एक महिला सामने आईं, जिन्होंने खुद को अनन्या की मां बताया. उन्होंने दशकों की चुप्पी तोड़ते हुए अपनी बेटी के लापता होने को व्हिसलब्लोअर के दावों से जोड़ने की कोशिश की. लेकिन तथ्य कुछ और कहते हैं. कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज के रिकॉर्ड में ‘अनन्या भट्ट’ नाम की कोई छात्रा कभी दर्ज ही नहीं हुई. कोई विश्वसनीय गवाह नहीं है, न ही कोई प्रमाणित दस्तावेज, और न ही 2003 के पुलिस या मीडिया अभिलेखों में इस तरह का कोई मामला दर्ज है.

इस कहानी को और फैलाने में सबसे बड़ा योगदान रहा कार्यकर्ता महेश शेट्टी थिमारोडी का, जिनका धर्मस्थल प्रशासन से विवाद का लंबा इतिहास रहा है. उनका आक्रामक अभियान, जो खुद को जन आंदोलन के रूप में पेश करता है, दरअसल अविश्वास, भ्रम और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा रहा है. एक नाराज और अनुशासनहीनता के आरोप झेल चुके पूर्व ठेकेदार के दावों से कोई विश्वसनीयता नहीं जुड़ती, लेकिन डिजिटल युग में ये आरोप तथ्यों की जांच से भी तेज फैल जाते हैं.

बड़े पैमाने पर फैलाया गया भ्रम

यह मामला सिर्फ एक गढ़ी हुई कहानी से बड़ा है. जब अप्रमाणित दावे बार-बार दोहराए और साझा किए जाते हैं, तो सदियों पुरानी संस्थाओं का मूल्यांकन सबूतों से नहीं, बल्कि वायरल नाराजगी से किया जाने लगता है. धर्मस्थल की छवि को सच से नहीं, बल्कि एक बड़े पैमाने पर फैलाए गए भ्रामक अभियान से नुकसान पहुंचाया जा रहा है, जो जनता की सरलता और सोशल मीडिया की तेजी पर निर्भर है.