'कोविड में भी जली थी पराली फिर क्यों था आसमान नीला...' दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण को लेकर CJI की गुगली में फंसी केंद्र सरकार!

सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली-NCR प्रदूषण पर सुनवाई के दौरान CJI सूर्यकांत ने पूछा कि कोविड में भी पराली जली थी, फिर भी आसमान नीला था. अदालत ने वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित स्थायी समाधान की जरूरत बताई.

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Kuldeep Sharma

दिल्ली-NCR की हवा एक बार फिर जहरीले स्तर पर पहुंचते ही मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, जहां CJI सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान पराली बहस को नया मोड़ दिया. 

उन्होंने सवाल उठाया कि कोविड-19 के दौरान भी किसानों ने पराली जलाई थी, लेकिन तब आसमान साफ और नीला था, जबकि अब प्रदूषण खतरनाक स्तर पर है. अदालत ने कहा कि यह मसला सिर्फ दो महीनों का नहीं बल्कि वर्षभर निगरानी की मांग करता है और समाधान केवल वैज्ञानिक विश्लेषण से ही निकलेगा.

कोर्ट की सख्त टिप्पणी और शुरुआत में उठे सवाल

सुनवाई की शुरुआत में ही CJI सूर्यकांत ने केंद्र से पूछा कि प्रदूषण से निपटने के लिए अल्पकालिक योजना क्या है. सरकार की ओर से बताया गया कि हलफनामे में सभी स्रोतों का श्रेणीवार योगदान दर्ज है. अदालत ने कहा कि यह सिर्फ मौसमी समस्या नहीं बल्कि निरंतर निगरानी का विषय है और अब इसे नियमित रूप से सूचीबद्ध किया जाएगा.

कोविड काल से तुलना और पराली पर नया प्रश्न

CJI ने चर्चा को नया आयाम देते हुए कहा कि कोविड में भी किसानों ने पराली जलाई थी, लेकिन तब आसमान नीला था. उन्होंने कहा कि हर बार पराली को दोष देना आसान है, जबकि किसानों की नीतिगत भागीदारी सीमित है. अदालत ने साफ किया कि पराली न राजनीतिक बहस बने, न किसी पर बोझ.

किसानों पर बोझ नहीं, तकनीक से हो समाधान

CJI सूर्यकांत ने कहा कि किसानों को जागरूक बनाने और आवश्यक मशीनें उपलब्ध कराने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि किसी एक समूह को दोषी ठहराकर समस्या हल नहीं होगी. बिना वैज्ञानिक डेटा के किसी योजना की प्रभावशीलता तय नहीं की जा सकती. अदालत ने पूछा कि वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार प्रमुख प्रदूषण स्रोत कौन है.

निर्माण धूल और वाहन प्रदूषण पर भी सवाल

जस्टिस बागची ने निर्माण स्थलों की निगरानी पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि भले ही निर्माण गतिविधि पर प्रतिबंध लगा हो, लेकिन यह जानना जरूरी है कि जमीन पर पालन कितना हुआ. केंद्र ने अदालत को आश्वस्त किया कि हलफनामे में वाहन प्रदूषण, उद्योगों के उत्सर्जन और निर्माण धूल का पूरा ब्यौरा शामिल है.

अनुमान नहीं, ठोस समाधान

CJI ने कहा कि अदालत का काम केवल टिप्पणी करना नहीं बल्कि वह मंच देना है जहां विशेषज्ञ वैज्ञानिक समाधान तैयार कर सकें. उन्होंने कहा कि अदालत किसी स्रोत को पहले से दोषी नहीं मानेगी और न ही हाथ पर हाथ रखकर बैठेगी. उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रदूषण समस्या का हल अनुमान से नहीं बल्कि विशेषज्ञों की निष्पक्ष रिपोर्ट से मिलेगा.