menu-icon
India Daily

लाल किला नहीं 'काला किला' कहिए, 17वीं सदी में बने इस ऐतिहासिक स्मारक को लील रहा दिल्ली का वायु प्रदूषण

हैरिटेज जर्नल में प्रकाशित भारत-इटली अध्ययन के मुताबिक, लाल किले की दीवारें काली पड़ रही हैं, क्योंकि प्रदूषण और भारी धातुओं के कण इसके बलुआ पत्थर को नष्ट कर रहे हैं.

auth-image
Edited By: Sagar Bhardwaj
Can India stop Delhis Red Fort from turning black due to air pollution
Courtesy: @touristinindia india daily

दिल्ली न्यूज: दिल्ली का ऐतिहासिक लाल किला, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, वायु प्रदूषण के कारण काला पड़ रहा है. भारत-इटली द्वारा की गई एक स्टडी के अनुसार, प्रदूषक और भारी धातुएं लाल बलुआ पत्थर की दीवारों को नष्ट कर रही हैं. यह स्टडी केवल लाल किले के संरक्षण की जरूरत को रेखांकित नहीं करती, बल्कि दिल्ली की बिगड़ती हवा और इसके सांस्कृतिक धरोहरों पर पड़ने वाले प्रभाव को भी उजागर करती है. एक्सपर्ट तत्काल संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिए कदम उठाने की मांग कर रहे हैं, ताकि यह ऐतिहासिक धरोहर अपनी पहचान खोने से बच सके.

काली पड़ रही हैं लाल किले की दीवार

दिल्ली का लाल किला, जिसे मुगल सम्राट शाहजहां ने 17वीं सदी में बनवाया था, भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है. लेकिन आज यह ऐतिहासिक स्मारक एक नए खतरे का सामना कर रहा है और वो है वायु प्रदूषण. एक हालिया भारत-इटली अध्ययन ने खुलासा किया है कि लाल किले की दीवारें काली पड़ रही हैं, क्योंकि प्रदूषण और भारी धातुओं के कण इसके बलुआ पत्थर को नष्ट कर रहे हैं. यह खबर केवल एक स्मारक की कहानी नहीं, बल्कि दिल्ली की जहरीली हवा और इसके सांस्कृतिक खजाने पर पड़ने वाले असर की चेतावनी है.

दीवारों पर जम रही जिप्सम औ धूल की परत

हैरिटेज जर्नल में प्रकाशित भारत-इटली अध्ययन के मुताबिक, लाल किले की दीवारों पर जमा काली परत प्रदूषकों और भारी धातुओं का परिणाम है. ये कण, जो वाहनों और औद्योगिक धुएं से निकलते हैं, बलुआ पत्थर के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया करते हैं. इससे दीवारों पर जिप्सम और धूल की परत जम रही है, जो पत्थर को कमजोर कर रही है. अध्ययन बताता है कि यह प्रक्रिया न केवल रंग को फीका कर रही है, बल्कि दीवारों में दरारें भी पैदा कर रही है, जो स्थायी नुकसान का संकेत है.

कभी यमुना नदी के किनारे हुआ करता था लाल किला

1639 से 1648 के बीच बने लाल किले का स्थान कभी यमुना नदी के किनारे था, लेकिन आज यह दिल्ली की व्यस्त सड़कों और औद्योगिक क्षेत्रों से घिरा है. सड़कों से उठने वाला धुआं और पास के कारखानों से निकलने वाला प्रदूषण लगातार इस स्मारक को प्रभावित कर रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण के कण पत्थर की सतह को खुरदरा बना रहे हैं, जिससे इसकी प्राकृतिक चमक और मजबूती खतरे में है. भारी पर्यटक आवागमन और रखरखाव की कमी ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है.

हर साल सर्दियों में जहरीली हो जाती है दिल्ली की हवा

हर साल सर्दियों में दिल्ली की हवा बेहद जहरीली हो जाती है. पराली जलाने, वाहनों के धुएं और औद्योगिक उत्सर्जन के कारण हवा में प्रदूषक कणों की मात्रा बढ़ जाती है. दीपावली के दौरान आतिशबाजी से स्थिति और खराब हो जाती है. हाल के आंकड़ों के अनुसार, 2022 से 2024 के बीच दिल्ली में दो लाख से अधिक लोग प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के कारण अस्पताल में भर्ती हुए, जबकि 22 लाख बच्चों के फेफड़ों को नुकसान पहुंचा. यह हवा न केवल लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है, बल्कि स्मारकों को भी नष्ट कर रही है.

तत्काल संरक्षण की जरूरत

पर्यावरण वैज्ञानिक और संरक्षण विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर तुरंत कदम नहीं उठाए गए, तो लाल किला अपनी ऐतिहासिक पहचान खो सकता है. विशेषज्ञ सख्त उत्सर्जन नियंत्रण, नियमित सफाई और संरक्षण कार्यों की मांग कर रहे हैं. साथ ही, दिल्ली की हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक, जो हर साल एक व्यक्ति द्वारा 5,600 कणों तक सांस के जरिए शरीर में जाता है, भी चिंता का विषय है. लाल किले की स्थिति भारत की सांस्कृतिक धरोहर को बचाने की तत्काल जरूरत को दर्शाती है. अगर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो यह “लाल किला” सचमुच “काला किला” बन सकता है.