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कागजों में फल-फूल रहा हिंदी मीडियम में MBBS, जमीन में धूल फांक रहा, 2025–26 में एक भी एडमिशन नहीं

छत्तीसगढ़ सरकार की हिंदी-माध्यम एमबीबीएस योजना को बड़ा झटका लगा है. नए सत्र 2025–26 में एक भी छात्र ने हिंदी-माध्यम एमबीबीएस नहीं चुना. विशेषज्ञों का मानना है कि अंग्रेजी मेडिकल शब्दावली और करियर चिंताओं से छात्र हिचक रहे हैं.

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Edited By: Sagar Bhardwaj
Not a single registration for Hindi medium MBBS in Chhattisgarh in 2025–26
Courtesy: unsplash

पिछले वर्ष छत्तीसगढ़ सरकार ने चिकित्सा शिक्षा को हिंदी में उपलब्ध कराने का निर्णय लेकर ग्रामीण और हिंदीभाषी छात्रों को बड़ा विकल्प दिया था. उम्मीद थी कि छात्र अपनी मातृभाषा में मेडिकल पढ़ाई को अपनाएंगे और भाषा की बाधा दूर होगी लेकिन इस वर्ष स्थिति उलट गई. 2025–26 सत्र में हिंदी-माध्यम एमबीबीएस में एक भी दाखिला नहीं हुआ. यह सवाल सामने खड़ा हो गया है कि क्या छात्र खुद ही हिंदी में मेडिकल पढ़ाई से बच रहे हैं, या व्यवस्था में कोई गहरी कमी है.

 2025–26 में शून्य नामांकन

छत्तीसगढ़ के 14 सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में लगभग 2,000 एमबीबीएस सीटें हैं. पिछले सत्र में केवल दो छात्रों ने हिंदी-माध्यम विकल्प चुना था. इस वर्ष यह संख्या बिल्कुल शून्य हो गई. अधिकारियों ने बताया कि मांग न होने के कारण हिंदी कक्षाएं पूरी तरह रोक दी गई हैं.

अंग्रेजी शब्दावली बनी सबसे बड़ी बाधा

विशेषज्ञ मानते हैं कि मेडिकल शिक्षा में अंग्रेजी शब्दावली का प्रभुत्व छात्रों की सबसे बड़ी चिंता है. पूर्व आईएमए रायपुर अध्यक्ष डॉ. राकेश गुप्ता ने इसे अव्यावहारिक बताया. उनका कहना है कि सभी मानक मेडिकल किताबें अंग्रेजी में हैं और छात्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बने रहना चाहते हैं.

 हिंदीभाषी पृष्ठभूमि के बावजूद हिचकिचाहट

दिलचस्प यह है कि एमबीबीएस में प्रवेश लेने वाले लगभग 70% छात्र हिंदीभाषी माहौल से आते हैं, लेकिन वे भी अंग्रेजी पाठ्यक्रम ही चुनते हैं. छात्रों को डर है कि हिंदी माध्यम भविष्य की परीक्षाओं और करियर संभावनाओं को सीमित कर सकता है.

सरकारी बोली- विकल्प उपलब्ध, निर्णय छात्र का

निदेशक चिकित्सा शिक्षा डॉ. यू.एस. पैकरा का कहना है कि सरकार ने हिंदी सामग्री उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी निभा दी है. अब यह पूरी तरह छात्र का चुनाव है कि वह किस भाषा में पढ़ना चाहता है. उनका मानना है कि भाषा को बाधा नहीं बनना चाहिए.

राजनीतिक विवाद और पड़ोसी राज्य का अनुभव

इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी भी शुरू हो गई है. कांग्रेस नेताओं ने इसे जल्दबाजी भरा कदम बताया, जबकि भाजपा ने कहा कि हिंदी माध्यम केवल विकल्प था, बाध्यता नहीं. वहीं पड़ोसी मध्य प्रदेश में हिंदी-माध्यम एमबीबीएस को सीमित लेकिन लगातार समर्थन मिल रहा है, हालांकि वहां भी शब्दावली और भविष्य की चुनौतियां समान बनी हुई हैं.