छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि आर्थिक तंगी के दौरान पति को बेरोजगारी के लिए ताने देना मानसिक क्रूरता के समान है. इस आधार पर दुर्ग के 52 वर्षीय वकील को तलाक की मंजूरी दी गई. जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने अक्टूबर 2023 के पारिवारिक न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए यह निर्णय सुनाया.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने पत्नी के व्यवहार पति और बेटे को बिना कारण छोड़ना, आर्थिक कठिनाई में ताने देना, और कार्यवाही में अनुपस्थित रहना को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत क्रूरता और परित्याग का आधार माना.
जानिए क्या है पूरा मामला?
दंपति की शादी 26 दिसंबर, 1996 को भिलाई में हुई थी. उनके 19 वर्षीय बेटी और 16 वर्षीय बेटा है. कोर्ट रिकॉर्ड के अनुसार, पति ने पत्नी को पीएचडी पूरी करने और एक स्कूल में प्रिंसिपल का पद हासिल करने में सहायता की थी. हालांकि, उनके रिश्ते में तनाव तब शुरू हुआ जब पत्नी ने छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा करना शुरू किया.
मानसिक क्रूरता और परित्याग का आधार
पति के वकील ने कोर्ट में बताया कि महामारी के दौरान कोर्ट बंद होने से पति की आय रुक गई, जिसके बाद पत्नी ने उन्हें ताने दिए. अगस्त 2020 में हुए विवाद के बाद पत्नी अपनी बेटी के साथ घर छोड़कर चली गई. पति और बेटे ने उन्हें वापस लाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें ठुकरा दिया गया. 16 सितंबर, 2020 से दंपति अलग रह रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि विवाह “अपूरणीय रूप से टूट चुका है”.
हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कहा, “पति-पत्नी का व्यवहार, जिसमें मौखिक विवाद और अनुचित मांगें शामिल हैं, मानसिक क्रूरता का गठन कर सकता है, जो तलाक का आधार बनता है.” पत्नी की अनुपस्थिति और बिना उचित कारण घर छोड़ने को परित्याग माना गया.