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Danapur Seat: इस सीट पर सभी पार्टियों को जनता ने दिया बराबर का मौका, इस बार जेल से बीजेपी को टक्कर देंगे सिटिंग विधायक

Danapur Seat: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले हमारे लिए राज्य के सीटों और वहां के मतदाताओं के मूड को समझना बेहद जरूरी है. ऐसे में आज हम आपको दानापुर सीट के इतिाहस और यहां की जनता के मांगों और जरूरतों के बारे में बताएंगे.

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Edited By: Shanu Sharma
Danapur Seat
Courtesy: Canva

Danapur Seat: बिहार विधानसभा चुनाव में अब केवल कुछ दिनों का समय बचा है. ऐसे में हमें राज्य के सीटों की राजनीति और जनता के मनोदशा के बारे में समझना होगा. इसी क्रम में आज हम बात करेंगे राज्य की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाली दानापुर विधानसभा सीट के बारे में और समझेंगे की इस सीट का क्या इतिहास रहा है. 

दानापुर एक बार फिर से चर्चा में है. इस बार इस सीट पर खड़े उम्मीदवारों के लिए लगभग 3,74,193 वोटर्स अपने कीमती वोट डालेंगे. सबसे पहले आपको बता दें कि दानापुर में शहरी, ग्रामीण और दियारा तीनों क्षेत्र हैं. एक ओर इलाके को मेट्रो से कनेक्ट किया जा रहा है. वहीं दूसरी तरफ जल निकासी और स्वास्थ्य सेवाओं जैसी आम जरूरतें भी नहीं पूरी हो पा रही है. जिसकी वजह से इस सीट को लेकर चर्चा जारी है. 

सभी पार्टियों को जनता ने दिया मौक 

दानापुर सीट का काफी रोचक इतिहास रहा है. यहां की जनता ने सभी पार्टियों को लगभग बराबर का मौका दिया है. अब तक कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों को पांच-पांच जीत मिल चुकी है. वहीं लालू यादव की पार्टी RJD और नीतीश कुमार को भी बराबर का मौका मिला है. दानापुर के लोगों ने पार्टियों के अलावा निर्दलीय उम्मीदवार पर भी भरोसा कर के देखा है. 1985 में एक निर्दलीय उम्मीदवार ने इस सीट से बाजी मारी थी. लेकिन फिर भी उनकी उम्मीदें पूरी तरह से पूरी नहीं हो पा रही है. ऐसे में इस बार जनता अपना फैसला काफी सोच-समझ कर लेने वाली है. 

बीजेपी-आरजेडी आमने-सामने 

कांग्रेस के जगत नारायण लाल ने इसी सीट से 1957 में पहली जीत हासिल की थी. इसके बाद सोशलिस्ट पार्टी के रामसेवक सिंह ने, कांग्रेस के बुद्धदेव सिंह ने भी कई सालों तक दबदबा बनाए रखा. 1977 में रामलखन सिंह यादव जिन्हें शेरे बिहार के नाम से भी जाना जाता था, उन्होंने इसी सीट से जीत हासिल की थी. इतना ही नहीं 1995 में लालू यादव खुद इस सीट से चुनाव के लिए मैदान में उतरे और जीत भी हासिल की, हालांकि कुछ दिनों के अंदर ही उन्होंने सीट छोड़ दी. इसके बाद 2000 में बीजेपी के विजय सिंह यादव ने पहली बार इस सीट पर बाजी मारी. हालांकि उपचुनाव में वे चुनाव हार गए. जिसके बाद 2005 से 2015 तक इस सीट पर बीजेपी की ओर से आशा सिन्हा ने रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल की. हालाकि पिछले विधानसभा चुनाव में जेल में बंद RJD नेता रीतलाल यादव ने उन्हें हराकर सीट पर कब्जा किया.

अब एक बार इस सीट पर कांटे की टक्कर होने वाली है. इस बार बीजेपी की ओर से रामकृपाल यादव को टिकट मिला है. वहीं दूसरी तरफ फिर से रीत लाल यादव मैदान में खड़े हैं. अब यह देखना काफी दिलचस्प रहेगा कि क्या रीतलाल जेल के अंदर से अपना जलवा कायम रखते हैं या फिर M-Y वोटर्स को अपनी ओर खिंचते हुए रामकृपाल यादव बीजेपी की वापसी करवाते हैं.