Bihar Election: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के नामांकन की अंतिम तिथि गुजर चुकी है, लेकिन महागठबंधन के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे का घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा. इसी बीच, पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव के पुत्र शांतनु यादव ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) पर विश्वासघात का गंभीर आरोप लगाते हुए खुली बगावत का ऐलान कर दिया है. उन्होंने कहा कि पिता की राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए वे किसी की चाक-चौबंद की जरूरत महसूस नहीं करते.
शांतनु यादव ने सोशल मीडिया के जरिए अपनी नाराजगी जाहिर की है. उन्होंने एक पोस्ट में लिखा, "हम राजनीति के मैदान में शोर मचाने या झांसे देने के लिए नहीं उतरे हैं. पिताजी की विरासत को मजबूती से आगे बढ़ाएंगे, चाहे हालात जैसा भी हो. " यह बयान मधेपुरा विधानसभा सीट से टिकट न मिलने की कड़वाहट को दर्शाता है, जहां शरद यादव ने दशकों तक अपना राजनीतिक किला मजबूत किया था. आरजेडी ने इस सीट पर किसी अन्य उम्मीदवार को नामित करने का फैसला लिया है, जिससे शांतनु को गहरा झटका लगा है. उन्होंने कहा, 'हम राजनीति में झाल बजाने नहीं आए हैं, पिता की विरासत को आगे बढ़ाएंगे.'
'षड्यंत्र इनके खिलाफ जनता रचेगी'
शांतनु यादव के बाद कांग्रेस नेता और उनकी बहन सुभाषिनी शरद यादव की भी प्रतिक्रिया आई है. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, 'जो अपने खून के नहीं हुए, वो दूसरों के क्या सगे होंगे. जो अपने ही परिवार के वफादार नहीं, वो किसी और के लिए कैसे भरोसेमंद हो सकते हैं? ये विश्वासघात की पराकाष्ठा और उनकी असहजता का उत्कृष्ट उदाहरण है. जो षड्यंत्र इन्होंने रचा है, अब वही षड्यंत्र इनके खिलाफ जनता रचेगी.' हालांकि इसमें उन्होंने किसी नेता का नाम नहीं लिया.
विलय का वादा और टूटा भरोसा
शरद यादव, जो जननायक जनता दल (लोकतांत्रिक) के संस्थापक थे, ने 2023 में अपनी पार्टी का आरजेडी में विलय कर दिया था. यह फैसला समाजवादी विचारधारा को मजबूत करने के उद्देश्य से लिया गया था. विलय के समय लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव ने शांतनु को मधेपुरा से चुनाव लड़ाने का आश्वासन दिया था. शांतनु ने बताया कि पिता के निधन (जनवरी 2023) के बाद उन्होंने मधेपुरा क्षेत्र में सक्रियता बढ़ाई और ग्रामीण स्तर पर जनसंपर्क अभियान चलाया. लेकिन अब, जब नामांकन का समय समाप्त हो चुका है, वह वादे पर खरा न उतरते हुए आरजेडी के फैसले से आहत हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद महागठबंधन की आंतरिक कलह को और गहरा सकता है. मधेपुरा यादव बहुल क्षेत्र है, जहां शरद यादव का लंबे समय तक प्रभाव रहा. 2019 के लोकसभा चुनाव में शरद यादव खुद आरजेडी के टिकट पर यहां से लड़े थे, हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा. शांतनु की बगावत से न केवल आरजेडी का वोट बैंक प्रभावित हो सकता है, बल्कि विपक्षी दल भाजपा-जदयू गठबंधन को फायदा पहुंचाने का खतरा भी पैदा हो गया है.