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नीतीश कुमार 10वीं बार ले रहे थे CM पद की शपथ, प्रशांत किशोर जानें कहां कर रहे 'मौन आत्ममंथन'?

बिहार चुनाव में जन सुराज की करारी हार के बाद प्रशांत किशोर ने भितिहरवा गांधी आश्रम में मौन व्रत रखा है. इसे आत्ममंथन, हार की स्वीकारोक्ति और आने वाले समय में दोहरी मेहनत के संकल्प के रूप में देखा जा रहा है.

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Edited By: Babli Rautela
Prashant Kishor -India Daily
Courtesy: X (@iamnarendranath)

बिहार: बिहार विधानसभा चुनाव में जन सुराज के लिए मिला शून्य से भी बड़ा झटका अब चर्चाओं के केंद्र में है. प्रशांत किशोर, जिन्होंने तीन साल की लगातार मेहनत और राज्य भर में पदयात्रा के बाद अपनी नई राजनीतिक पार्टी जन सुराज को चुनाव मैदान में उतारा था, एक भी सीट नहीं जीत सके. इस करारी हार के बाद उन्होंने भितिहरवा गांधी आश्रम में एक दिन का मौन व्रत रखा.

यह मौन व्रत सिर्फ एक प्रतीकात्मक कदम नहीं बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी है. सवाल उठ रहे हैं कि यह आत्ममंथन है, हार की स्वीकारोक्ति है या बड़े बदलाव की तैयारी.

नीतीश कुमार की जीत पर प्रशांत किशोर का मौन बड़ा कॉन्ट्रास्ट

इसी दिन नीतीश कुमार ने पटना के गांधी मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तमाम एनडीए नेताओं की मौजूदगी में 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. जब पूरा राजनीतिक माहौल सत्ता के उत्सव में डूबा था, प्रशांत किशोर का मौन व्रत शांति और आत्मविश्लेषण का बिल्कुल अलग दृश्य पेश कर रहा था. मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही प्रशांत किशोर ने घोषणा कर दी थी कि वह 20 नवंबर को गांधी आश्रम में मौन तप करेंगे.

‘मैं बिहार को समझाने में नाकाम रहा’ प्रशांत किशोर

प्रशांत किशोर ने साफ कहा, 'मैं बिहार के लोगों को यह समझाने में नाकाम रहा कि उन्हें किस आधार पर वोट देना चाहिए और नई व्यवस्था क्यों जरूरी है. आपने मुझे तीन साल मेहनत करते देखा है. अब मैं उससे दोगुनी मेहनत करूंगा.' उन्होंने यह भी कहा कि पीछे हटने का सवाल ही नहीं है और यह मौन व्रत किसी अपराध का प्रायश्चित नहीं बल्कि गलतियों के आत्ममंथन का तरीका है.

जन सुराज का चुनावी डेब्यू बेहद निराशाजनक रहा, उन्हें एक भी सीट नहीं मिली और चुनावी arithmetic में पार्टी कहीं भी प्रभावी नहीं दिखी, बिहार की बड़ी आबादी तक संदेश नहीं पहुंच पाया. वहीं दूसरी ओर भाजपा 89 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. जदयू 85 सीटों के साथ उसके बाद एनडीए ने भारी जीत दर्ज कर ली है. ऐसे में प्रशांत किशोर की रणनीति और राजनीतिक भविष्य पर सवाल उठना स्वाभाविक है.