नई दिल्ली: भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने वर्ल्ड कप का खिताब पाने नाम कर इतिहास रच दिया है. लेकिन इस जीत में अहम भूमिका निभाने वाली प्रतीका रावल को पदक नहीं मिला. हरमनप्रीत कौर की अगुवाई वाली टीम ने नवी मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में महिला विश्व कप के फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को हराकर चैंपियन का ताज अपने नाम कर लिया.
रावल ने भारत के लिए अहम प्रदर्शन किया और स्मृति मंधाना के बाद महिला टीम के लिए दूसरी सबसे ज्यादा रन बनाने वाली खिलाड़ी रहीं. कुल मिलाकर, वह प्रतियोगिता में चौथी सबसे ज्यादा रन बनाने वाली खिलाड़ी हैं. 25 वर्षीय इस खिलाड़ी ने छह पारियों में 51.33 की औसत से 308 रन बनाए, जिसमें न्यूजलैंड के खिलाफ क्वार्टर फाइनल में लगाया गया शतक भी शामिल है.
टीम के लिए बेहतरीन प्रदर्शन करने और कल रात जश्न का हिस्सा होने के बावजूद, रावल के गले में अपनी साथियों की तरह कोई पदक नहीं था. ऐसा इसलिए है क्योंकि बांग्लादेश के खिलाफ चोटिल होने के बाद, भारत को उनकी जगह शेफाली वर्मा को टीम में शामिल करना पड़ा, जो फाइनल में प्लेयर ऑफ द मैच (POTM) रहीं. ICC के नियमों के अनुसार, विजेता का पदक केवल 15 सदस्यीय टीम को ही दिया जाता है, यानी शेफाली को पदक मिला, प्रतीका को नहीं.
हालांकि, यह सलामी बल्लेबाज को व्हीलचेयर पर बैठकर जीत का जश्न मनाने से नहीं रोक पाया. भारतीय खिलाड़ियों ने सुनिश्चित किया कि चोट के बावजूद वह यूरोफिया से न चूकें.
प्रतीका की कहानी 2003 के पुरुष क्रिकेट विश्व कप में जेसन गिलेस्पी जैसी है, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया के लिए चार मैच खेले और आठ विकेट लिए. हालांकि उन्हें एड़ी में चोट लग गई और वे प्रतियोगिता के बीच में ही बाहर हो गए और उनकी जगह नाथन ब्रेकन को शामिल किया गया. इसके लिए उन्हें विजेता का पदक नहीं मिला.
प्रतीक के उलट, ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज को अपने साथियों के साथ जीत का जश्न मनाने का मौका भी नहीं मिला, यह एक निराशा थी जिसे उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा.
गिलेस्पी ने कहा था कि एडिलेड में, मैंने ईस्ट टेरेस स्थित ऑयस्टर बार में फा इनल मैच देखा. दक्षिण ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के कुछ खिलाड़ी वहां मौजूद थे, और मालिक जेसन बर्नार्डी ने हमारी बहुत अच्छी देखभाल की. दिक्कत यह थी कि हर कोई पूरी रात मुझे परेशान करता रहा, 'डिज़ी, तुम्हें वहाँ होना चाहिए था! और मैं सोच रहा था, 'अरे नहीं, शुक्रिया.'
उन्होंने कहा कि मैंने कुछ बियर पी, कुछ ऑयस्टर खाए और कुछ खिलाड़ियों से बातें कीं, लेकिन मैं मैच खत्म होने से पहले ही वहां से चला गया क्योंकि मैं वहां मिल रही तवज्जो से थोड़ा ऊब गया था. मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था और यह भी कि मैं जोहान्सबर्ग में नहीं खेल रहा था. आखिरकार मुझे घर पर ही मैच देखना पड़ा. इस बार चोटिल होने का दूसरा सबसे मुश्किल पहलू यही था, आप एक ऐसे टूर्नामेंट में इतिहास रचने से चूक रहे हैं जो हर चार साल में एक बार ही आता है.