Humans can smell better than dogs: आम तौर पर माना जाता है कि कुत्तों की सूंघने की शक्ति इंसानों से कहीं ज्यादा होती है. उनकी अतिसंवेदनशील नाक विभिन्न प्रकार की गंधों का पता लगा सकती हैं, जिन्हें हम महसूस नहीं कर पाते. लेकिन, अगर सोशल मीडिया क्रिएटर कृष अशोक की बात मानी जाए, तो आम धारणा के विपरीत, इंसानों की नाक हमारे चार-पैर वाले दोस्तों से बेहतर प्रदर्शन कर सकती है.
हाल ही में इंस्टाग्राम पर पोस्ट की गई एक रील में वे कहते हैं, 'कुत्ते और अधिकांश जानवर बाहरी वातावरण से महक सूंघने में बहुत माहिर होते हैं. वास्तव में, एक लंबे थूथन वाले कुत्ते का सिर कुछ अणुओं के सबसे छोटे निशान को सूंघने के लिए बना होता है. लेकिन यहां पेच है, कुत्ते सांस छोड़ते समय बहुत अच्छी तरह से सूंघ नहीं पाते.'
लखनऊ के मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में वरिष्ठ ईएनटी सलाहकार डॉ. मनोज मिश्रा कहते हैं, 'शारीरिक और कार्यात्मक अंतर के कारण इंसानों और कुत्तों की सूंघने की क्षमता काफी अलग होती है. कुत्तों को उनकी असाधारण सूंघने की शक्ति के लिए जाना जाता है, उनके पास लगभग 30 करोड़ घ्राण रिसेप्टर्स होते हैं, जबकि इंसानों में केवल 60 लाख होते हैं. इसके अतिरिक्त, कुत्तों के मस्तिष्क का वह भाग जो महक का विश्लेषण करने के लिए समर्पित होता है, वह आनुपातिक रूप से इंसानों की तुलना में 40 गुना बड़ा होता है. इससे कुत्तों को 100,000 गुना कम सांद्रता में भी महक का पता लगाने में मदद मिलती है.'
हालांकि, वह कृष अशोक की बात से भी सहमत हैं, जो हाल के शोध का हवाला देते हुए कहते हैं कि इंसानों की सूंघने की शक्ति पहले के विचार से कहीं ज्यादा मजबूत होती है. मनुष्य एक ट्रिलियन (दस लाख करोड़) विभिन्न गंधों के बीच अंतर कर सकते हैं, जो कि पहले अनुमानित 10,000 से कहीं अधिक है.
डॉ. मिश्रा बताते हैं, 'कुछ खास तरह की गंधों, जैसे कि ट्रैकिंग से जुड़ी महक या ड्रग्स या विस्फोटकों जैसे पदार्थों का पता लगाने में कुत्ते बेहतर हैं, वहीं इंसान खाने और पर्यावरणीय खतरों से जुड़ी खास गंधों के प्रति अधिक संवेदनशील साबित हुए हैं.'
डॉ. मिश्रा कहते हैं कि रि ट्रोनेजल ओल्फेक्शन से तात्पर्य भोजन और पेय पदार्थ का सेवन करते समय सांस छोड़ने के दौरान महक का पता लगाना होता है. यह तब होता है जब मुंह में भोजन से निकलने वाले महक पदार्थ नासोफैरिंक्स से होते हुए नाक में घ्राण उपकला तक पहुंचते हैं.
यह प्रक्रिया स्वाद की अनुभूति को काफी बढ़ा देती है, क्योंकि यह जीभ पर स्थित स्वाद रिसेप्टर्स के साथ मिलकर पूरा स्वाद अनुभव प्रदान करती है. रि ट्रोनेजल ओल्फेक्शन इंसानों को भोजन में विभिन्न प्रकार के स्वादों और सुगंधों का पता लगाने में सक्षम बनाता है, जो हमारे पाक अनुभवों और विभिन्न स्वादों की सराहना का एक महत्वपूर्ण पहलू है.
डॉ. मिश्रा के अनुसार, इंसानों की खास सुगंधों को पहचानने की क्षमता में कई कारक योगदान करते हैं:
घ्राण कनिका और घ्राण प्रांतस्था (Olfactory Bulb and Cortex): भले ही इंसानों का ऑलफैक्टरी बल्ब कुत्तों की तुलना में आकार में छोटा होता है, लेकिन यह मुश्किल न्यूरल कनेक्शनों के कारण गंधों की एक विशाल श्रृंखला को संसाधित करने में अत्यधिक कुशल होता है.
रिसेप्टर्स की संख्या (Number of Receptors): इंसानों में लगभग 400 विभिन्न प्रकार के घ्राण रिसेप्टर्स होते हैं, जो विभिन्न प्रकार के रासायनिक यौगिकों का पता लगाने की अनुमति देते हैं.
सांस्कृतिक और संज्ञानात्मक कारक (Cultural and Cognitive Factors): इंसानों को सांस्कृतिक मायनों में और महक को अलग करने की सोच का लाभ भी मिलता है, जो खाने में मसालों जैसी मुश्किल गंधों के बीच अंतर करने की हमारी क्षमता को बढ़ाता है.
डॉ. मिश्रा विस्तार से बताते हैं, "एक बंद नाक सूंघने की शक्ति को काफी कमजोर कर सकती है, जो बदले में स्वाद और महक की अनुभूति को प्रभावित करती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि हम जो कुछ स्वाद के रूप में अनुभव करते हैं उसका एक बड़ा हिस्सा वास्तव में रि-ट्रोनेजल ओल्फेक्शन के माध्यम से महक सूंघने की हमारी क्षमता से आता है. जब नाक बंद हो जाती है, तो इन महक पदार्थों के घ्राण रिसेप्टर्स तक पहुंचने का मार्ग बाधित हो जाता है, जिससे कुल मिलाकर स्वाद का अनुभव कमजोर हो जाता है."
दिलचस्प बात यह है कि वह बताते हैं कि अस्वस्थ महसूस करने वाले लोगों के लिए खिचड़ी या चिकन सूप जैसे भोजन अधिक स्वादिष्ट होते हैं क्योंकि इनमें अक्सर तेज, सुखदायक महक और स्वाद होते हैं जिन्हें कम सूंघने की शक्ति के साथ भी महसूस किया जा सकता है. "यह भोजन आमतौर पर पचने में भी आसान होता है और पेट के लिए सुखदायक होता है, जो इंद्रियों को अत्यधिक प्रभावित किए बिना पोषण प्रदान करता है."
यह साफ है कि महक की दुनिया मुश्किल और आकर्षक है. मनुष्य और कुत्ते दोनों ही महक का पता लगाने में अद्वितीय क्षमता रखते हैं, लेकिन हमारी क्षमता अलग-अलग तरीकों से विकसित हुई है. भविष्य के रिसर्च से इस बारे में हमारी समझ और भी गहरी हो सकती है कि मनुष्य और जानवर गंध का पता लगाने और उसका जवाब कैसे देते हैं.