उस्मान हादी को कवि काजी नजरुल इस्लाम की कब्र के पास क्यों दफनाया गया? अब छिड़ गई तीखी बहस
ढाका विश्वविद्यालय परिसर में 1976 में विद्रोही बंगाली कवि काजी नजरुल इस्लाम को जिस मस्जिद के पास दफनाया गया था, उसी स्थान के पास अब छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी को भी सुपुर्द-ए-खाक किया गया है.
नई दिल्ली: बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हाल ही में हुई एक घटना ने पूरे देश में बहस और हलचल पैदा कर दी है. ढाका विश्वविद्यालय परिसर में 1976 में विद्रोही बंगाली कवि काजी नजरुल इस्लाम को जिस मस्जिद के पास दफनाया गया था, उसी स्थान के पास अब छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी को भी सुपुर्द-ए-खाक किया गया है. करीब 50 साल बाद वहां किसी दूसरे व्यक्ति का दफनाया जाना अपने आप में असाधारण माना जा रहा है. हादी की हत्या को एक सुनियोजित साजिश बताया जा रहा है.
ढाका में सैलाब उमड़ पड़ा
शनिवार को हादी के अंतिम संस्कार के दौरान ढाका में लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा. आसपास के शहरों और कस्बों से हजारों लोग राजधानी पहुंचे. हादी को काजी नजरुल इस्लाम की कब्र के ठीक बगल में दफनाया गया, जिसे लेकर देश में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं.
शेख हसीना की सत्ता को हटाने में बड़ी भूमिका निभाई
शरीफ उस्मान हादी शेख हसीना विरोधी छात्र संगठन 'इंकलाब मंच' के प्रमुख चेहरों में से एक थे और इसके प्रवक्ता भी थे. जुलाई-अगस्त 2024 के आंदोलन के दौरान यह मंच उभरकर सामने आया था, जिसने शेख हसीना की सत्ता को हटाने में बड़ी भूमिका निभाई थी. 32 वर्षीय हादी उस आंदोलन के दौरान युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हो गए थे. वे अपनी रैलियों और भाषणों में अक्सर काजी नजरुल इस्लाम की 'विद्रोही' कविताओं की पंक्तियां पढ़ते थे, जिससे युवाओं में जोश और गुस्सा भर जाता था.
अवामी लीग के कट्टर आलोचक
हादी भारत के बांग्लादेश की राजनीति में बढ़ते प्रभाव और शेख हसीना की अवामी लीग के कट्टर आलोचक थे. वे खुले तौर पर भारत विरोधी बयान देते थे और फरवरी 2026 में होने वाले आम चुनाव में ढाका-8 सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. 12 दिसंबर को जब वे बैटरी से चलने वाले रिक्शा से जा रहे थे, तभी अज्ञात हमलावरों ने उन पर गोली चला दी. इलाज के लिए उन्हें सिंगापुर ले जाया गया, लेकिन वहां उनकी मौत हो गई.
बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए
हादी की मौत के बाद ढाका और अन्य शहरों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए. कई जगह हिंसा और तोड़फोड़ भी हुई. भारत विरोधी नारे लगाए गए और कुछ सांस्कृतिक व मीडिया संस्थानों को भी निशाना बनाया गया. हालात को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था बेहद सख्त कर दी गई. अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने स्वयं हादी की नमाज-ए-जनाजा में भाग लिया और भावुक शब्दों में उन्हें श्रद्धांजलि दी.
मोहम्मद यूनुस का भावुक संबोधन
जनाजे के दौरान मोहम्मद यूनुस ने भावुक शब्दों में हादी को श्रद्धांजलि दी. उन्होंने कहा कि हजारों लोग यहां मौजूद हैं और देश ही नहीं, विदेशों में बसे बांग्लादेशी भी हादी के बारे में जानने को उत्सुक हैं. यूनुस ने कहा कि हादी ने विनम्रता, गरिमा और लोकतांत्रिक तरीके से राजनीति करने का रास्ता दिखाया. उन्होंने यह भी कहा कि हादी का उदाहरण बांग्लादेश की राजनीतिक संस्कृति को नई दिशा देगा.
देश में तीखी बहस छिड़ी
वहीं, हादी को काजी नजरुल इस्लाम के बगल में दफनाए जाने को लेकर देश में तीखी बहस छिड़ गई है. कुछ लोग इसे राजनीतिक फैसला बता रहे हैं, जबकि समर्थक हादी को एक क्रांतिकारी नेता के रूप में देख रहे हैं. शरीफ उस्मान हादी का जन्म 1993 में झालोकाठी जिले में हुआ था.
ढाका विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान ही वे छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए थे. आज उनकी कब्र काजी नजरुल इस्लाम के पास होने के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या बांग्लादेश में उन्हें भी उसी स्तर का प्रतीक बनाने की कोशिश की जा रही है. यही वजह है कि हादी की विरासत और उनकी भूमिका को लेकर देश में बहस और गहरी होती जा रही है.
नारों में दिखा राजनीतिक गुस्सा
हालांकि दफन की प्रक्रिया सीमित लोगों तक ही रही, लेकिन जनाजे की नमाज में शामिल होने के लिए हजारों लोगों को अनुमति दी गई. भीड़ में राजनीतिक नारों की गूंज सुनाई दी. 'ढाका ही ढाका रहेगा' और 'हादी का खून बेकार नहीं जाएगा' जैसे नारे लगाए गए. ये नारे साफ तौर पर सरकार और व्यवस्था के खिलाफ बढ़ते असंतोष को दर्शा रहे थे.
हत्या, जांच और अंतरराष्ट्रीय तनाव
शरीफ उस्मान हादी को 12 दिसंबर को ढाका में गोली मारी गई थी. इलाज के लिए उन्हें सिंगापुर ले जाया गया, जहां गुरुवार को उनकी मौत हो गई. पुलिस का दावा है कि संदिग्धों की पहचान हो चुकी है और वे भारत भाग सकते हैं. इस बयान के बाद भारत-बांग्लादेश के बीच कूटनीतिक तनातनी भी सामने आई. यह सब 12 फरवरी को होने वाले संसदीय चुनाव से ठीक पहले हुआ है, जिससे माहौल और संवेदनशील हो गया है.
पूर्व मंत्री का बड़ा दावा
शेख हसीना सरकार में मंत्री रह चुके मोहिबुल हसन चौधरी ने बड़ा दावा करते हुए कहा है कि हादी को गोली किसी बाहरी ने नहीं बल्कि उसके ही करीबी ने मारी थी. उनके अनुसार, गोली चलाने वाला हादी के हथियारबंद गैंग से जुड़ा व्यक्ति था. चौधरी ने यह भी आरोप लगाया कि इस हिंसा के पीछे अंतरिम सरकार के दो बड़े राजनीतिक उद्देश्य हैं.