हाल के महीनों में अमेरिका और ब्रिक्स देशों के बीच व्यापारिक तनाव तेजी से बढ़ा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने न केवल इन देशों पर भारी आयात शुल्क लगाए हैं, बल्कि उन्हें “अमेरिका-विरोधी” तक कह दिया है. ट्रंप का साफ कहना है कि ब्रिक्स देशों की डॉलर के इस्तेमाल को खत्म करने की कोशिशें अमेरिका बर्दाश्त नहीं करेगा.
भारत और चीन को खास तौर पर निशाना बनाते हुए उन्होंने रूस से तेल खरीदने के चलते अतिरिक्त शुल्क और प्रतिबंध लगाने की धमकी भी दी है.
2 अप्रैल को ट्रंप ने अपने ‘लिबरेशन डे टैरिफ़’ की घोषणा की थी. इसके बाद से अमेरिका ने कई देशों के खिलाफ कड़ा व्यापारिक रुख अपनाया और ब्रिक्स भी उनकी सूची में शामिल हो गया. ब्रिक्स का नाम पांच मूल सदस्य देशों, ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के पहले अक्षरों से बना है. 2009 में ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन ने मिलकर BRIC समूह बनाया था, जिसमें 2010 में दक्षिण अफ्रीका शामिल हुआ और यह BRICS बन गया.
आज ब्रिक्स में 10 सदस्य हैं, लेकिन अमेरिका ने इस बार सीधे इन पांच संस्थापक देशों पर टैरिफ लगाया है. औपचारिक तौर पर इन कदमों की वजह “व्यापार घाटा” बताई गई है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह केवल आर्थिक फैसला नहीं, बल्कि राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति भी है.
चीन- टैरिफ वॉर में अमेरिका के निशाने पर सबसे पहले और सबसे ज्यादा निशाने पर चीन रहा. चीन उन शुरुआती देशों में था, जिस पर ट्रंप ने भारी शुल्क लगाया. अप्रैल में टैरिफ 145% तक पहुंच गए थे, जिन्हें बाद में घटाकर 30% किया गया. वजह लंबे समय से चला आ रहा व्यापार विवाद और रूस से बड़े पैमाने पर तेल खरीद है.
वहीं चीन की अर्थव्यवस्था ब्रिक्स समूह में सबसे बड़ी है. 2023 में इसकी जीडीपी $18.3 ट्रिलियन रही और 2024 में 5% की ग्रोथ भी दर्ज की गई. चीन का औद्योगिक उत्पादन और निर्यात क्षमता अमेरिका के लिए सीधी प्रतिस्पर्धा पैदा करते हैं. हालांकि, चीन अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड्स का बड़ा धारक है, जिससे अमेरिका उसके खिलाफ कठोर कदम उठाने से बचता है.
भारत- भारत भी ट्रंप प्रशासन के निशाने पर रहा है. जब भारत अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर सहमत नहीं हुआ, तो ट्रंप ने 25% शुल्क लगा दिया गया. इसके बाद, रूस से तेल खरीदने को लेकर 25% अतिरिक्त “ऐड वैलोरम ड्यूटी” भी जोड़ दी गई, जिसे सेकेंडरी सैंक्शन कहा जाता है. नतीजतन, भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर कुल 50% शुल्क लगा दिया गया है.
2024 में भारत ने अपनी कुल तेल जरूरतों का लगभग 41% रूस से आयात किया था. यह अमेरिका की नाराजगी की बड़ी वजह बनी.
वहीं भारत की अर्थव्यवस्था $3.4 ट्रिलियन की है, और 2024 में 6.5% की ग्रोथ के साथ यह दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था है. भारत ‘मेक इन इंडिया’ और PLI स्कीम जैसी नीतियों से घरेलू उत्पादन और निर्यात बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. साथ ही, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स पर काम जारी है, ताकि अमेरिकी टैरिफ के असर को संतुलित किया जा सके.
रूस- रूस को अप्रैल के ‘लिबरेशन डे टैरिफ़’ से छूट मिली, क्योंकि उस पर पहले से ही अमेरिका के कड़े प्रतिबंध लागू हैं. 2024 में अमेरिका और रूस का आपसी व्यापार केवल $3.5 अरब का था. लेकिन, रूस से तेल खरीदने वाले देशों जैसे भारत, चीन और तुर्की पर अमेरिका द्वारा सेकेंडरी सैंक्शन के जरिए दबाव बनाया जा रहा है.
प्रतिबंधों के बावजूद रूस की जीडीपी $2.2 ट्रिलियन है. रूस की सबसे बड़ी ताकत ऊर्जा संसाधन हैं उसमें भी खासकर तेल और गैस. रूस ब्रिक्स देशों के लिए ऊर्जा आपूर्ति का अहम केंद्र है, जो अमेरिका की चिंता का बड़ा कारण है.
ब्राज़ील- ब्राज़ील पर पहले 2 अप्रैल को 10% शुल्क लगाया गया था, लेकिन पिछले हफ्ते इसे बढ़ाकर 50% कर दिया गया. दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका का ब्राज़ील के साथ कोई व्यापार घाटा नहीं है. इसकी असल वजह राजनीतिक मानी जा रही है. दरअसल, अमेरिका ब्राज़ील के पूर्व राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो की गिरफ्तारी को “राजनीतिक उत्पीड़न” मानता है. बोल्सोनारो पर नजरबंदी का आदेश देने वाले जज ने पिछले साल एलन मस्क के X प्लेटफॉर्म को अस्थायी रूप से बंद कर दिया था, जिससे वॉशिंगटन नाराज हुआ.
हालांकि ब्राज़ील की अर्थव्यवस्था कृषि और खनिज संसाधनों पर आधारित है और यह लैटिन अमेरिका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. ब्रिक्स में इसकी भूमिका ऊर्जा और खाद्य आपूर्ति में अहम है.
दक्षिण अफ्रीका- दक्षिण अफ्रीका पर अमेरिका ने 30% शुल्क लगाया है. रिश्ते तब बिगड़े जब ट्रंप ने वहां की सरकार पर “श्वेत अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव” का आरोप लगाया. इस साल की शुरुआत में अमेरिका ने कुछ श्वेत अफ्रीकी शरणार्थियों का स्वागत भी किया, जिन्होंने “व्हाइट नरसंहार” से भागने का दावा किया था.
वहीं दक्षिण अफ्रीका की अर्थव्यवस्था की जीडीपी आकार का छोटा है, लेकिन यह प्लेटिनम और अन्य कीमती धातुओं का बड़ा निर्यातक है, जिनकी रणनीतिक अहमियत काफी है.
अमेरिका की जीडीपी (2023) के अनुसार $27.36 ट्रिलियन है जो विश्व अर्थव्यवस्था का लगभग 25% है. इसके साथ ही 2024 में 2.5% के रेट से ग्रो कर रही है. अमेरिका ऊर्जा उत्पादन की 70% घरेलू जरूरत खुद पूरी करता है और वैश्विक मुद्रा में डॉलर का दबदबा भी है. अमेरिका की जीडीपी में निर्यात का योगदान सिर्फ 11% है.
वहीं ब्रिक्स देशों की संयुक्त रूप से कुल जीडीपी (2023) के अनुसार $26.6 ट्रिलियन डॉलर है. ब्रिक्स में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन की है, जो $18.3 ट्रिलियन है और 5% की दर से ग्रो कर रही है.
वहीं ब्रिक्स में दूसरे नंबर पर भारत की अर्थव्यवस्था है, जो $3.4 ट्रिलियन है, जिसका ग्रोथ रेट 6.5% है. भारत विश्व की सबसे तेज ग्रो करने वाली अर्थव्यवस्था भी है.
$2.2 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था के साथ रूस ब्रिक्स देशों में तीसरे नंबर पर है. रूस की जीडीपी में प्रमुख योगदान उसके ऊर्जा निर्यात से है. ब्रिक्स देशों में रूस पर सबसे ज्यादा ऊर्जा की निर्भरता का भार है.
संयुक्त रूप से देखें तो ब्रिक्स देश आर्थिक आकार में अमेरिका के बराबर पहुंचने के करीब हैं. चीन की औद्योगिक क्षमता, भारत की तेज़ ग्रोथ, और रूस के ऊर्जा संसाधन अगर पूरी तरह तालमेल में काम करें, तो आने वाले दशक में अमेरिका को कड़ी टक्कर दी जा सकती है. लेकिन इसके बाद भी फिलहाल तीन बड़ी चुनौतियां ब्रिक्स को कमजोर करती हैं.
1. ऊर्जा निर्भरता- अमेरिका के पास ऊर्जा संकट झेलने की ज्यादा क्षमता है. वहीं ब्रिक्स देशों की अर्थव्यवस्था पर तेल और गैस की कीमतों में उतार-चढ़ाव से सीधा असर होता है.
2. आंतरिक मतभेद – सदस्य देशों के बीच राजनीतिक और आर्थिक नीतियों पर कई मुद्दों पर सहमति नहीं है.
3. डॉलर का वर्चस्व – डी-डॉलरीकरण की कोशिशें जारी हैं, लेकिन अभी वैश्विक व्यापार और वित्त में डॉलर की पकड़ मजबूत है.
ब्रिक्स के पास अमेरिका की बराबरी करने की सामूहिक क्षमता है, लेकिन इसके लिए आंतरिक मतभेद मिटाना, ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना और डॉलर के विकल्प को मजबूती से लागू करना जरूरी होगा. जब तक यह नहीं होता, अमेरिका की आर्थिक और रणनीतिक बढ़त बनी रहेगी.
हालांकि ट्रंप का यह टैरिफ अभियान केवल आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश भी देता है. ब्रिक्स के पांच संस्थापक देशों पर एक साथ कार्रवाई कर, अमेरिका ने दिखा दिया है कि वह डॉलर की वैश्विक पकड़ को चुनौती देने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाने में पीछे नहीं हटेगा. लेकिन खेल अभी खत्म नहीं हुआ है.