नई दिल्ली: यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध को समाप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई बार शांति वार्ता हुई हैं, लेकिन क्षेत्रीय विवाद सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है. अमेरिकी दबाव के बावजूद यूक्रेन शांति समझौते में बिना सभी विवरणों की जांच किए किसी भी क्षेत्र को छोड़ने पर सहमत नहीं है.
राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की यूरोपीय नेताओं के साथ बैठकें कर समाधान तलाश रहे हैं, जबकि रूस पूर्वी डोनबास के लगभग पांचवें हिस्से पर कब्जे की मांग कर रहा है.
यूक्रेन-रूस वार्ता में सबसे जटिल मुद्दा क्षेत्रीय नियंत्रण है. रूस चाहता है कि यूक्रेन पूर्वी डोनबास के लगभग पांचवें हिस्से से पीछे हटे, लेकिन यूक्रेन किसी भी प्रकार की क्षेत्रीय समझौते से इनकार कर रहा है. वार्ता में यह मुद्दा बार-बार सामने आता रहा है और किसी भी समझौते का मुख्य विवाद बन गया है.
अमेरिका शांति समझौते में तेजी लाने के लिए दबाव डाल रहा है. अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि 'जल्दी, जल्दी, जल्दी' समझौता करने की मांग की जा रही है. हालांकि, यूक्रेन यह स्पष्ट कर चुका है कि किसी भी शर्त पर बिना सभी विवरणों की समीक्षा किए सहमति नहीं देगा.
राष्ट्रपति जेलेंस्की लंदन में ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर, जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज और फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से मुलाकात कर वार्ता की दिशा पर चर्चा करेंगे. इसके बाद वे ब्रसेल्स जाकर यूरोपीय संघ और नाटो नेताओं से भी बातचीत करेंगे. यह कदम यूक्रेन को रणनीतिक समर्थन और अंतरराष्ट्रीय दबाव के संतुलन में मदद करेगा.
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि युद्ध को 24 घंटे में समाप्त किया जा सकता है, लेकिन लंबी कूटनीतिक प्रक्रिया ने यह साबित किया कि समझौता इतना सरल नहीं है. यूक्रेन का कहना है कि किसी भी क्षेत्रीय समझौते का मतलब उनका आत्मसमर्पण होगा. युद्ध में पूर्वी यूक्रेन में भारी तबाही हुई है, हजारों लोग मारे गए और लाखों बेघर हुए हैं.
वार्ता की दिशा अब इस बात पर निर्भर करेगी कि रूस और यूक्रेन क्षेत्रीय विवाद को कैसे सुलझाते हैं. अंतरराष्ट्रीय दबाव और यूरोपीय नेताओं की मध्यस्थता महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. हालांकि, अमेरिका का तेजी का दबाव और रूस की सख्त मांगें शांति प्रक्रिया को चुनौती दे रही हैं.