menu-icon
India Daily

बांग्लादेश में रवींद्रनाथ टैगोर की विरासत पर हमला, दंगाइयों ने पुराने घर में मचाई तोड़फोड़

बांग्लादेश के सिराजगंज जिले में स्थित रवींद्रनाथ टैगोर के ऐतिहासिक पैतृक घर को दंगाइयों ने तोड़ डाला. यह वही घर है जहां नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी विश्व प्रसिद्ध रचनाओं को लिखा था, जिनमें से ‘आमार सोनार बांग्ला’ आज बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत है.

auth-image
Edited By: Princy Sharma
Rabindranath Tagore House In Bangladesh
Courtesy: Pinterest

Rabindranath Tagore House In Bangladesh: बांग्लादेश के सिराजगंज जिले में स्थित रवींद्रनाथ टैगोर के ऐतिहासिक पैतृक घर को दंगाइयों ने तोड़ डाला. यह वही घर है जहां नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी विश्व प्रसिद्ध रचनाओं को लिखा था, जिनमें से ‘आमार सोनार बांग्ला’ आज बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत है. यह घटना पूरे देश में हैरानी और दुख का कारण बन गई है, क्योंकि यह घर साहित्य और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है.

8 जून को सिराजगंज के कचहरीबाड़ी स्थित रवींद्रनाथ टैगोर म्यूजियम में एक व्यक्ति अपने परिवार के साथ घूमने आया था. यहां पार्किंग शुल्क को लेकर देखरेख कर रहे कर्मचारियों से उसकी बहस हो गई. इसके बाद उस व्यक्ति को बंद कर दिया गया और मारपीट की गई. इस घटना से आक्रोशित स्थानीय लोग मंगलवार को सड़कों पर उतर आए और मानव श्रृंखला बना कर विरोध प्रदर्शन किया. इसके बाद भीड़ ने कचहरीबाड़ी के सभागार पर हमला कर दिया, तोड़फोड़ की और संस्था के निदेशक की पिटाई कर दी.

जांच समिति का गठन

घटना के बाद बांग्लादेश के पुरातत्व विभाग (Department of Archaeology) ने मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है. विभाग ने यह भी घोषणा की कि कचहरीबाड़ी में Visitors का प्रवेश अस्थायी रूप से रोक दिया गया है. इस पूरी स्थिति की निगरानी विभाग के द्वारा की जा रही है और समिति को पांच कार्य दिवसों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है.

कचहरीबाड़ी का ऐतिहासिक महत्व

कचहरीबाड़ी, जो राजशाही डिवीजन के शहजादपुर में स्थित है, रवींद्रनाथ टैगोर का पैतृक घर है. यहीं पर टैगोर के भीतर साहित्य और संगीत की प्रेरणा का अंकुरण हुआ. 1890 के दशक में टैगोर ने यहां अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बिताया और इस दौरान उन्होंने अपने पिता की जमींदारी का प्रबंधन भी किया. इस दौरान उनकी रचनाओं में ग्रामीण जीवन, प्रकृति और सामाजिक मुद्दों की गहरी छाप देखी जाती है.

यहां रहते हुए रवींद्रनाथ टैगोर ने पद्मा नदी के किनारे की प्रकृति से प्रेरित होकर कई कविताएं और गीत लिखे. यही वह जगह थी जहां वे अपनी संगीत साधना करते थे, जो बाद में रवींद्र संगीत का हिस्सा बना.

संस्कृति और इतिहास पर हमला

यह घटना बांग्लादेश की सांस्कृतिक धरोहर पर एक गंभीर हमला है, क्योंकि रवींद्रनाथ टैगोर ने न केवल साहित्यिक दुनिया में महत्वपूर्ण योगदान दिया, बल्कि उन्होंने बांग्लादेश और भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने को भी संजीवनी दी. टैगोर का घर, जहां उनकी रचनाएं पनपीं, आज दंगाइयों के निशाने पर है, और यह घटना पूरी दुनिया में बांग्लादेश की संस्कृति और इतिहास पर सवाल खड़ा करती है.