President Emmanuel Macron: फ़्रांस की राजनीति में इस हफ्ते बड़ा उलटफेर देखने को मिला है. राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अपने पूर्व प्रधानमंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू को दोबारा प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया है और यह फैसला उनके पद से इस्तीफा देने के मात्र चार दिन बाद लिया गया है. यह घटनाक्रम तब हुआ जब देश में एक हफ्ते से राजनीतिक अस्थिरता और सत्ता समीकरणों में भारी उथल-पुथल चल रही थी.
शुक्रवार देर रात राष्ट्रपति मैक्रों ने एलीसी पैलेस में एक आपात बैठक बुलाई, जिसमें उन्होंने प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं से मुलाकात की है. हालांकि, रिपोर्टों के अनुसार इस बैठक में अति-दक्षिणपंथी और अति-वामपंथी नेताओं को शामिल नहीं किया गया. बैठक के कुछ ही घंटों बाद यह घोषणा की गई कि सेबेस्टियन लेकोर्नू एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेंगे.
अपनी पुनर्नियुक्ति पर रिएक्ट करते हुए सेबेस्टियन लेकोर्नू ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा, 'मैं इस मिशन को ‘कर्तव्य के नाते’ स्वीकार करता हूं. मेरा लक्ष्य वर्ष के अंत तक फ़्रांस को बजट प्रदान करना और नागरिकों के दैनिक जीवन से जुड़ी समस्याओं को हल करना है.'
उन्होंने आगे कहा, 'हमें इस राजनीतिक संकट का अंत करना होगा, जो फ़्रांस के लोगों को परेशान कर रहा है. यह अस्थिरता हमारे देश की छवि और हितों के लिए हानिकारक है.'
दिलचस्प बात यह है कि लेकोर्नू ने दो दिन पहले ही कहा था कि वह 'नौकरी के पीछे नहीं भाग रहे' और उनका 'मिशन पूरा हो चुका है.' लेकिन अब, राष्ट्रपति मैक्रों के अनुरोध पर उन्होंने फिर से वही पद संभाल लिया है. यह कदम स्पष्ट रूप से दिखाता है कि मैक्रों अपने विश्वसनीय सहयोगी पर एक बार फिर भरोसा जताना चाहते हैं.
एलिसी पैलेस की ओर से जारी बयान में कहा गया, 'राष्ट्रपति ने सेबेस्टियन लेकोर्नू को सरकार बनाने का काम सौंपा है.' बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, मैक्रों के दल ने यह भी संकेत दिया है कि लेकोर्नू को पूर्ण स्वतंत्रता दी गई है ताकि वे नई कैबिनेट का गठन कर सकें. रॉयटर्स के अनुसार, लेकोर्नू की प्राथमिक जिम्मेदारी अब सोमवार तक अगले वित्त वर्ष का बजट फ्रांसीसी संसद में पेश करने की है. यह कार्य उनके सामने सबसे बड़ी परीक्षा साबित हो सकता है, क्योंकि हाल के महीनों में सरकार को विपक्ष से कड़ा विरोध झेलना पड़ा है.
लेकोर्नू ने कुछ ही दिन पहले अपने मंत्रिमंडल की घोषणा के बाद इस्तीफ़ा दे दिया था, जिससे वे पिछले दो वर्षों में पाँचवें प्रधानमंत्री बन गए जिन्होंने पद छोड़ा. उनके इस्तीफे ने फ्रांस की राजनीति में गहरा संकट पैदा कर दिया था, जिसके चलते निवेशकों और अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के बीच भी अनिश्चितता का माहौल बन गया.