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जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने वाली मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब, जानिए 4 हफ्ते का समय क्यों दिया?

देश के शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा, 'चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए और एक निर्वाचित सरकार सत्ता में है. पिछले छह वर्षों में, जम्मू-कश्मीर में उल्लेखनीय प्रगति हुई है.

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Edited By: Reepu Kumari
Jammu and Kashmir Statehood
Courtesy: Pinterest

Jammu and Kashmir Statehood: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग वाली याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए केंद्र को चार सप्ताह का समय दिया. मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ शिक्षाविद जहूर अहमद भट और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता अहमद मलिक द्वारा दायर याचिकाओं सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.  जिनमें जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल करने के केंद्र के आश्वासन को लागू करने का आग्रह किया गया था.

उन्होंने अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने पर सुनवाई के दौरान केंद्र द्वारा केंद्र शासित प्रदेश को राज्य का दर्जा दिए जाने के आश्वासन का हवाला दिया.

सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ, जानिए

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि पिछले साल क्षेत्र में चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए थे, लेकिन मौजूदा सुरक्षा चिंताओं और हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकवादी हमलों के मद्देनजर राज्य का दर्जा बहाल करने के मुद्दे का मूल्यांकन करने के लिए सरकार को और समय की आवश्यकता है.

देश के शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा, 'चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए और एक निर्वाचित सरकार सत्ता में है. पिछले छह वर्षों में, जम्मू-कश्मीर में उल्लेखनीय प्रगति हुई है. हालांकि, अंतिम निर्णय लेने से पहले पहलगाम हमले जैसी कुछ हालिया घटनाओं को ध्यान में रखना आवश्यक है.' उन्होंने कहा कि राज्य का दर्जा बहाल करने के मुद्दे पर जम्मू-कश्मीर प्रशासन के साथ विचार-विमर्श चल रहा है.

अनोखी समस्या

मेहता ने कहा, 'यह एक अनोखी समस्या है और इसमें व्यापक चिंताएं शामिल हैं. बेशक, यह एक गंभीर प्रतिबद्धता थी, लेकिन कई कारकों पर विचार करने की आवश्यकता है.' उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोग एक विशिष्ट कहानी फैला रहे हैं और केंद्र शासित प्रदेश की एक गंभीर तस्वीर पेश कर रहे हैं.

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि क्षेत्र को सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और उन्होंने पहलगाम आतंकवादी हमले का हवाला दिया. जहूर भट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा, 'पहलगाम उनकी निगरानी में हुआ....'

मेहता ने इस टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा, 'उनकी निगरानी क्या है? यह हमारी सरकार के अधीन है. मुझे इस पर आपत्ति है.'

शंकरनारायणन ने तर्क दिया कि केंद्र ने 2023 में राज्य का दर्जा बहाल करने के बारे में अदालत को आश्वासन दिया था और कहा, 'तब से बहुत पानी बह चुका है.'

इस पर मेहता ने पलटवार किया, 'और खून भी. यह सुप्रीम कोर्ट के सामने एक नागरिक है जो भारत सरकार को आपकी सरकार मानता है, मेरी सरकार नहीं.' शंकरनारायणन ने यह भी कहा कि इस मामले को पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ के समक्ष रखा जाना चाहिए, क्योंकि अनुच्छेद 370 पर मूल फैसला समान क्षमता वाली पीठ द्वारा सुनाया गया था. उन्होंने स्पष्ट किया कि आवेदक निरसन के मुद्दे को पुनः खोलने की मांग नहीं कर रहे थे, बल्कि केवल 'उचित समय सीमा के भीतर" संघ की प्रतिबद्धता को लागू करना चाहते थे.

दलीलों का विरोध

सॉलिसिटर जनरल ने दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि ऐसा नहीं किया जा सकता, वह भी हस्तक्षेपकर्ताओं के इशारे पर. विधायक इरफान हाफिज लोन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने तर्क दिया कि राज्य का दर्जा देने से लगातार इनकार करना संविधान के संघीय ढांचे को कमजोर करता है.

उन्होंने कहा, 'अगर किसी राज्य को इस तरह केंद्र शासित प्रदेश में बदला जा सकता है, तो संघवाद के लिए इसका क्या मतलब है? जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने एक साल पहले राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित किया था. जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बने रहने देना एक खतरनाक मिसाल कायम करता है.'

संविधान के अनुच्छेद का हवाला 

संविधान के अनुच्छेद 1, 2 और 3 का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, 'ये प्रावधान किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदलने का प्रावधान नहीं करते. केंद्र ने एक आश्वासन दिया था. संघवाद के लिए उस आश्वासन का सम्मान न करने का क्या परिणाम होगा?'

एक अन्य वकील ने कहा, 'अगर इसकी अनुमति दी जाती है, तो सरकार को असुविधा होने पर किसी भी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया जा सकता है... कल, यह उत्तर प्रदेश या तमिलनाडु भी हो सकता है. हमारे संवैधानिक इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ.'

भयावह तस्वीर बनाने का प्रयास

सॉलिसिटर जनरल ने हस्तक्षेप करते हुए वकील पर दुनिया के सामने केंद्र शासित प्रदेश की 'एक भयावह तस्वीर बनाने का प्रयास करने का आरोप लगाया. आप क्यों उत्तेजित हो रहे हैं? उन्हें अपनी दलीलें पूरी करने दीजिए, मुख्य न्यायाधीश ने मेहता से कहा, जिस पर अदालत में हल्की हंसी गूंज उठी. जम्मू स्थित वकीलों के एक समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा कि क्षेत्र के नागरिक तीव्र बेरोजगारी और विकास परियोजनाओं में ठहराव का सामना कर रहे हैं.

वकील ने कहा, 'जम्मू क्षेत्र में विकास का कोई काम नहीं हो रहा है. विधायकों का कहना है कि उनके पास स्थानीय कार्यों के लिए धन नहीं है. पहलगाम जैसी घटनाओं के बावजूद, शांति काफी हद तक बनी हुई है और पर्यटकों की आमद अच्छी है, और वैष्णो देवी यात्रा सुचारू रूप से जारी है. सुरक्षा चिंताओं को हमेशा के लिए बहाना नहीं बनाया जा सकता.' इस पर एसजी मेहता ने जवाब दिया कि क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है.

उन्होंने कहा, 'जम्मू-कश्मीर ने तरक्की की है; सब खुश हैं... 99.9 प्रतिशत लोग भारत सरकार को अपना मानते हैं. ये तर्क किसी और मंच के लिए हैं, इस अदालत के लिए नहीं.'

भट की याचिका में कहा गया है, टराज्य का दर्जा बहाल करने में देरी से जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की क्षमता में गंभीर कमी आएगी, जिससे संघवाद के विचार का गंभीर उल्लंघन होगा, जो भारत के संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है.'

लोकसभा चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न

इसमें कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए, तथा हिंसा, अशांति या सुरक्षा संबंधी किसी भी प्रकार की चिंता की कोई घटना सामने नहीं आई. याचिका में कहा गया है, 'इसलिए, सुरक्षा संबंधी चिंता, हिंसा या किसी अन्य गड़बड़ी की कोई बाधा नहीं है जो जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने/बहाली में बाधा उत्पन्न करे या रोके, जैसा कि वर्तमान कार्यवाही में भारत संघ द्वारा आश्वासन दिया गया है.'